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Blog / 19 Jun 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों हुआ लोनार झील का पानी लाल (Why did Water of LONAR LAKE Become Red)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों हुआ लोनार झील का पानी लाल (Why did Water of LONAR LAKE Become Red)



हम इंसानों के लिए प्रकृति के रहस्य हमेशा से ही कोतुहल के विषय बने रहे हैं. इसकी एक पहेली हम सुलझाते हैं तो दूसरी सामने आ जाती है. कई बार कुछ ऐसा होता है कि जिन पर यकीन करना ही मुश्किल हो जाता है. इस बार ऐसा ही कुछ हुआ है महाराष्ट्र के विश्व प्रसिद्ध लोनार झील में. इस झील का पानी रातोंरात बदल कर गुलाबी हो गया. लोग इस घटना से काफी हैरान हैं.

डीएनएस में आज हम समझेंगे कि यह पूरा मामला क्या है और साथ ही जानेंगे कि इस बारे में विशेषज्ञों का क्या कहना है……

लोनार झील महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से तकरीबन 500 किलोमीटर दूर बुलढाणा जिले में मौजूद है. पर्यटन स्थल होने के नाते पर्यटक इसे खासा पसंद करते हैं. लगभग 1.2 किलोमीटर के औसत व्यास वाली इस झील का पानी खारा है और इसका पीएच 10.5 है. झील की पानी की सतह से करीब 1 मीटर नीचे ऑक्सीजन मौजूद नहीं है. यह झील एक अधिसूचित राष्ट्रीय भौगोलिक धरोहर स्मारक है और इसके पानी की रंगत बदलने से आम लोगों और वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसमें काफी बढ़ गई है.

इस बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं है जब झील के पानी का रंग बदला हो, लेकिन इस बार यह बदलाव एकदम साफ नजर आ रहा है. इनमें से कुछ विशेषज्ञों ने अंदाजा लगाया कि झील में हेलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनीला सेलिना नाम के कवक की मौजूदगी की वजह से पानी का रंग लाल हो गया है. दरअसल निसर्ग तूफान के चलते महाराष्ट्र में काफी बारिश हुई थी, जिससे हेलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनीला सेलिना कवक झील की तली में बैठ गए लिहाजा पानी का रंग लाल हो गया. हालांकि पानी के रंग में बदलाव के कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं और पूरी तरह जांच के बाद ही इसका पता चल पाएगा. गौरतलब है कि ईरान की एक झील का पानी भी लवणता के चलते एक बार लाल रंग का हो गया था.

लोनार झील का निर्माण कैसे हुआ इस बारे में विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस जगह पर एक बड़े उल्का पिंड गिरने की वजह से इस झील का निर्माण हुआ. जो उल्कापिंड इस जगह पर पृथ्वी से टकराया होगा वह करीब दस लाख टन का रहा होगा लेकिन टकराने के बाद वह पिंड कहां चला गया इसके बारे में अभी तक कुछ भी पता नहीं चला. कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस झील का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट के चलते हुआ होगा. लेकिन यह धारणा इस आधार पर गलत साबित हुई कि यदि ज्वालामुखी से इस झील का निर्माण हुआ तो झील की गहराई महज 150 मीटर ही क्यों है यानी यह गहराई काफी ज्यादा होनी चाहिए थी. बता दें कि कुछ साल पहले नासा के वैज्ञानिकों ने बताया था कि यह झील बेसाल्टिक चट्टानों से बनी है और इस तरह की झील मंगल की सतह पर पाई जाती है क्योंकि झील के पानी के रासायनिक गुण वहां के झीलों के रासायनिक गुणों से मिलते जुलते हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि साल 2006 में यह झील सूख गई थी और उस वक्त पानी की जगह झील में नमक देखा गया था. इसके अलावा, दूसरे खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए टुकड़े नजर आए थे लेकिन कुछ ही वक्त बाद यहां बारिश हुई और झील फिर से भर गई. बेहद रहस्यमयी इस झील के बारे में पता लगाने के लिए नासा से लेकर दुनियाभर की तमाम वैज्ञानिक एजेंसियां जुटी रहती हैं. स्मिथसोनियन संस्था, संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण, सागर विश्वविद्यालय और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला ने इस जगह का काफी अध्ययन किया है.

झील के पानी का रंग बदलने से आसपास के इलाकों से बड़ी तादाद में लोग इसे देखने पहुंच रहे हैं. जहां कुछ लोग इसके पीछे की वैज्ञानिक वजह का पता लगाने की कवायद में जुटे हैं तो वहीं अफवाहों ने भी जोर पकड़ना शुरू कर दिया है. इस झील की एक खास बात और है कि यहां कई प्राचीन मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं. इनमें दैत्यसूदन मंदिर भी शामिल है. यह मंदिर भगवान विष्णु सूर्य दुर्गा और नरसिम्हा को समर्पित है इसकी बनावट खजुराहो के मंदिरों के समान है.

एक हालिया शोध से पता चला है कि यह झील लगभग पांच लाख सत्तर हज़ार साल पुरानी है यानी यह झील रामायण और महाभारत के काल में भी मौजूद रही होगी. झील का जिक्र कई पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है. कहा जाता है कि ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी इस झील का जिक्र है. इसके अलावा पद्म पुराण और आईन-ए-अकबरी में भी इसका उल्लेख आया है.