Home > DNS

Blog / 20 Aug 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है सोलो पौधा? (What is Solo Plant?)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है सोलो पौधा? (What is Solo Plant?)


मुख्य बिंदु:

बीते दिनों प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370 को लेकर राष्ट्र के नाम एक सम्बोधन किया था। संबोधन में जम्मू कश्मीर क्षेत्र से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र को इससे होने वाले फायदों से भी लोगो को रूबरू कराया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने लद्दाख क्षेत्र में पाए जाने वाले एक औषधीय पौधे सोलो का भी ज़िक्र किया। उन्होंने ने कहा कि ये पौधा हाई ऐल्टिट्यूड पर रहने वालों और बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात सुरक्षा बलों के लिए संजीवनी का काम करता है। साथ ही ये कम ऑक्सिजन वाली जगहों में भी इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे तमाम पौधे, हर्बल प्रॉडक्ट जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में मौजूद हैं। अनुच्छेद 370 के हटने से अब इन सभी औषधीय पौधों की पहचान होगी और उन्हें बिक्री के योग्य बनाया जायेगा जिससे यहां के किसानों को फायदा लाभ होगा।

प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन में इस पौधे का ज़िक्र होने के बाद से ही ये पौधा सुर्ख़ियों में बना हुआ है। इसलिए आज के DNS में आपको इसी सोलो पौधे के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इसके औषधीय गुणों के बारे में।

सोलो पौधा इसे आप जड़ी - बूटी या औषधीय पौधा भी कह सकते हैं। हालाँकि सोलो पौधे का वैज्ञानिक नाम रोडियोला Rhodiola है लेकिन लद्दाख क्षेत्र में ये पौधा सोलो नाम से ही जाना जाता है। भारत के लद्दाख क्षेत्र ही पाए जाने वाले इस पौधे के पीछे कारण ये है कि सोलो पौधा सिर्फ 15 से 18 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई वाले ठंडे क्षेत्रों में ही पाए या उगाए जा सकते हैं। लद्दाख क्षेत्र में ये पौधे मुख्य रूप से तीन जगहों पर पाए जाते हैं जिसमें खारदुंग-ला, चांगला और पेज़िला इलाके शामिल हैं। हालाँकि भारत के लद्दाख क्षेत्र के अलावा ये पौधे साइबेरिया में भी पाए जाते हैं।

सोलो पौधे की मुख्य रूप से तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें सोलो कारपो यानी सफेद, सोलो मारपो यानी लाल और पीले रंग में पाई जाने वाली सोलो सेरपो प्रजातियां शामिल हैं। डिफ़ेंस इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाई एल्टिट्यूड एंड रिसर्च (DIHAR) के मुताबिक़ इस पौधे में बहुत अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं।

सोलो पौधे में सीकोंडरी मेटाबोलाइट्स और फायटोएक्टिव तत्व पाएं जाते हैं, जो काफी विशेष हैं। इस पौधे से बनी औषधियों के ज़रिए भूख न लगने जैसी दिक़्क़ते, याददाश्त सम्बन्धी समस्या और डिप्रेशन जैसी बीमारी को दूर किया जा सकता है। इसके अलावा ये पौधा ज़्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में सांस लेने में होने वाली परेशानियों को दूर करने में काफी सहायक होता है। आयुर्वेदिक जानकारों के मुताबिक़ इस पौधे की के ज़रिए शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढालने में भी काफी मदद मिलती है। इसी आधार पर प्रधानमंत्री ने कम ऑक्‍सीजन वाली ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात भारतीय सेना के जवानों के लिए सोलो पौधे को संजीवनी बताया था।

हिमालय की ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले लोग लम्बे वक़्त से सोलो पौधे का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। लद्दाख के स्थानीय लोग इस पौधे के पत्तेदार हिस्सों का इस्तेमाल सब्जी के रूप में करते आए हैं जिसे ‘तंगथुर’ कहते हैं। ये व्यंजन यहां के स्थानीय लोगों के बीच काफी मशहूर भी है। सोलो पौधा यहां रहने वाले लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत बना कर उनके न्यूरॉन्स की रक्षा करता है और इन्हें कम ऑक्सीजन वाली हिमालय की ऊँची चोटियों पर रहने के क़ाबिल बनाता है।

वैज्ञानिकों के भी मुताबिक़ ये पौधा कम ऑक्‍सीजन वाले ऊंचे क्षेत्रों में रोगप्रतिरोधक प्रणाली को बेहतर रखने और रेडियोएक्टिव प्रभाव से बचाने में मददगार है। इसके अलावा इस पौधे से बनी औषधि अवसाद को कम करने और भूख बढ़ाने में भी लाभकारी है। साथ ही इस पौधे की एडेप्टोजेनिक क्षमता सियाचिन जैसे मुश्किल क्षेत्रों में जवानों के डिप्रेशन से बचाने और भूख कम लगने की समस्‍या के इलाज में भी फायदेमंद होती है। DIHAR संस्थान में इस पौधे पर बीते 10 सालों से शोध चल रहा है। साथ ही यहां के वैज्ञानिक इस पौधे के व्यावसायीकरण के बारे में भी योजना बना रहे हैं।