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Blog / 21 Jun 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सूर्य ग्रहण में क्या है रिंग ऑफ़ फायर (What is Ring of Fire during Solar Eclipse)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सूर्य ग्रहण में क्या है रिंग ऑफ़ फायर (What is Ring of Fire during Solar Eclipse)



इस साल का पहला सूर्य ग्रहण और साल का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण आज दिखाई दिया...चांद के पृथ्वी और सूरज के बीच आने से ग्रहण होना कोई अनोखी बात नहीं है लेकिन इस बार की यह खगोलीय घटना बेहद खास रही ...दरअसल, इस बार चांद सूरज को पूरी तरह से ढका नहीं बल्कि सूरज उसके पीछे से झांकता रहा ....यह नजारा आग के चमकदार छल्ले जैसा नजर आने लगा और इसलिए इसे 'रिंग ऑफ फायर' का नाम दिया गया है।

आज DNS चलिए इस 'रिंग ऑफ फायर' के बारे में...यह हमारे देश में कहाँ कहाँ देखने को मिला...और एक नज़र में यह भी समझेंगे की सूर्यग्रहण कैसे लगता है....और उसके प्रकारों के बारे में...

इस साल का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण 21 जून यानी आज देखने को मिला.....इस केस में रिंग ऑफ फायर पर धरती वायुमंडल का भी असर पड़ेगा....जब तक चांद और सूरज दोनों सबसे ऊंचे अपवर्तन (High Refraction) तक नहीं पहुंचेंगे, ग्रहण साफ नहीं होगा...इस ग्रहण को अफ्रीका और एशिया में साफ-साफ देखा गया...इसके अलावा, दक्षिणपूर्व यूरोप, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भी आंशिक ग्रहण दिखाई दिया....

जैसा एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने कहा था 'दोपहर के करीब, उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में सूर्य ग्रहण एक सुंदर वलयाकार रूप (अंगूठी के आकार का) में दिखा...

इस बार चांद की धरती से दूरी इस खास खगोलीय घटना का कारण बनेगी... दरअसल, चांद इस वक्त पृथ्वी से सबसे दूर (apogee) है....इसलिए वह पूरी तरह से सूरज को ढक नहीं पाया...इस दौरान सूर्य का लगभग 88 फीसदी भाग चंद्रमा की वजह से दिखाई नहीं देगा. इस वजह से सूर्य के किनारे रिंग की तरह दिखाई दिए.... इसे ही रिंग ऑफ फायर कहते हैं... इससे पहले साल 2019 में अंतिम सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर को पृथ्वी के पूर्वी गोलार्ध पर दिखाई दिया....बता दें यह सूर्य ग्रहण भारत, सऊदी अरब, कतर, मलेशिया, ओमान, सिंगापुर, श्रीलंका, मारियाना द्वीप और कुछ अन्य स्थानों पर दिखाई दिया...

वहीँ इस बार का सूर्यग्रहण का वलयाकार रूप उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में दिखाई दिया...इन राज्यों के भीतर भी कुछ प्रमुख स्थान रहे जहां से स्पष्ट पूर्ण ग्रहण दिखा जिनमें देहरादून, कुरुक्षेत्र, चमोली, जोशीमठ, सिरसा, सूरतगढ़ शामिल हैं ,.... देश के बाकी हिस्सों से, यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखाई दिया....

ये भारत के राजस्थान पहुंचने से पहले दक्षिणी सूडान, इथोपिया, यमन, ओमान, सऊदी अरब, हिंद महासागर और पाकिस्तान से होकर गुजरा....भारत के बाद तिब्बत, चीन और ताइवान के लोग इसे देख पाएंगे... प्रशांत महासागर के बीच पहुंचकर ये समाप्त हो गया...

वैज्ञानिकों के लिये यह दिन किसी बडे उत्सव से कम महत्व नहीं रखता...इस दिन वैज्ञानिकों को शोध करने के नवीन अवसर प्राप्त होते है। कई बार लम्बे समय तक ऎसे समय का इन्तजार करते है। क्योंकि ब्रह्माण्ड को समझने में सूर्य ग्रहण के दिन का खास प्रयोग किया जाता है...

दरअसल में सूर्य ग्रहण एक तरह की खगोलीय घटना है जिसमे चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूरी तरह से अथवा आंशिक रूप से चन्द्रमा द्वारा ढक जाता है

चन्द्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या थोड़े भाग के ढ़के जाने की वजह से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण व वलयाकार या कुण्डलाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।

पूर्ण सूर्य ग्रहण क्या होता है?

पूर्ण सूर्य ग्रहण की घटना उस समय घटित होती है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी करीब रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चाँद पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है जिसकी वजह से सूर्य की रोशनी धरती तक नहीं पहुँच पाती है और धरती पर अँधेरा छा जाता है । इस तरह बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण क्या होता है?

आंशिक सूर्यग्रहण की घटना में चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आता है कि सूर्य का कुछ ही भाग धरती से दिखाई नहीं देता है अर्थात चाँद , सूरज के केवल कुछ हिस्से को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण के प्रभाव में तथा कुछ भाग ग्रहण से अछूता रहता है इस तरह के ग्रहण को आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं

आंशिक और पूर्ण सूर्या ग्रहण के इतर वलयाकार सूर्य ग्रहण की घटना में चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है इससे चाँद सूरज को इस प्रकार से ढकता है, कि सूरज का केवल बीच का हिस्सा ही छाया के प्रभाव में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का हिस्सा प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है। इसे रिंग ऑफ़ फायर के नाम से भी जाना जाता है....

सीधे तौर पर इस खगोलीय घटना का असर हमारी आंखों पर पड़ता है।दरसल में ग्रहण के समय सूर्य की किरणों की तीव्रता और निकलने वाली तरंगें हमारी रेटिना को प्रभावित करती हैं जिससे हमारी आँखों को नुक्सान पहुँचता है ....सूर्य ग्रहण के दौरान नंगी आंखों से सूर्य को देखना आंखों को प्रभावित कर सकता है। ऐसा करने से रेटिना को स्थायी नुकसान हो सकता है, और सबसे खराब स्थिति में, यह अंधापन भी पैदा कर सकता है।

नासा का कहना है कि सूर्य को केवल एक पूर्ण ग्रहण के दौरान नग्न आंखों का उपयोग करके सुरक्षित रूप से देखा जा सकता है, जबकि आंशिक और कुंडलाकार सूर्य ग्रहणों के दौरान, सूर्य को उचित उपकरण और तकनीकों के बिना नहीं देखा जाना चाहिए। यह देखने के लिए उचित तरीकों और उपकरणों का उपयोग नहीं करने से स्थायी आंखों की क्षति या गंभीर दृश्य हानि हो सकती है, यह कहते हैं। सुरक्षा उपकरणों में ग्रहण के चश्मे और दूरबीन, दूरबीन और कैमरों को शामिल करने के लिए उपयुक्त सौर फिल्टर का उपयोग करना शामिल है..।