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Blog / 27 Nov 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है गोल्डन राइस? (What is Golden Rice?)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है गोल्डन राइस? (What is Golden Rice?)


1990 के दशक के उत्तरार्ध में, जर्मन वैज्ञानिकों ने चावल का एक आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म विकसित किया जिसे गोल्डन राइस कहा जाता है। गोल्डन राइस या सुनहले चावल को विटामिन ए की कमी से लड़ने में सक्षम होने का दावा किया गया था, जो बच्चों में अंधेपन का प्रमुख कारण है और खसरा जैसी संक्रामक बीमारियों के कारण मौत का कारण बन सकता है। हाल में ही बांग्लादेश इस किस्म के चावल को उगाने की मंजूरी देने वाला पहला देश बन सकता है। ढाका ट्रिब्यून ने हाल ही में नोबेल विजेता सर रिचर्ड जॉन रॉबर्ट्स के हवाले से कहा कि बांग्लादेश गोल्डन राइस को उगाने पर फैसला लेगा। एक शोध के मुताबिक़ बांग्लादेश में, 21 प्रतिशत से अधिक बच्चों में विटामिन ए की कमी है। बांग्लादेश में जिस गोल्डन राइस को उगाने की बात की जा रही है, वह फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है। संस्थान के अनुसार, यह चावल की किस्म पारंपरिक किस्म से अधिक महंगी नहीं होगी।

गोल्डन राइस जी॰एम॰ तकनीक से बनी धान की ऐसी किस्म है जिसमें समुचित मात्रा में 'विटामिन-ए' मौजूद है, और इसका रंग हल्दी जैसा है।

एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के कई देशों में रहने वाले गरीब लोग अपना पेट चावल खाकर भरते हैं। उनके आहार में पर्याप्त फल-सब्जी, दूध और मांसाहार का अभाव रहता है। इसका सीधा नतीजा यह होता है कि उनके शरीर में विटामिन-ए की भारी कमी हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे के अनुसार चावल पर गुजारा करने वाले 26 देशों के 40 करोड़ से ज्यादा लोगों में विटामिन-ए की कमी है, जिसके कारण प्रतिवर्ष ~5 लाख बच्चे रतौंधी या अंधेपन का शिकार हो जाते हैं और ~10 लाख बच्चे मर जाते हैं। विटामिन-ए मनुष्य व अन्य प्राणियों के समुचित विकास के लिए आवश्यक है। यह आंखों की ज्योति को बनाये रखने, हड्डियों की वृद्धि, मांसपेशियों की मजबूती और रक्त में कैल्सियम का स्तर सही बनाये रखने में मदद करने के साथ-साथ हमें विभिन्न रोगाणुओं से लड़ने की ताकत भी देता है। मनुष्य और दूसरे स्तनधारी जीव स्वयं विटामिन-ए का निर्माण नहीं कर सकते लेकिन वे इसे दूध व मांसाहार से प्राप्त करते हैं या फिर लाल-नारंगी-पीले रंग की सब्जियों या फलों (शकरकंद, गाजर, नारंगी, आम आदि) में मौजूद 'बीटा कैरोटिन' को विटामिन-ए में बदलकर इस कमी को पूरा करते हैं।

वैज्ञानिक बहुत सालों तक धान की ऐसी किस्म की खोज में लगे रहे जिसके चावल में बीटा कैरोटिन पाया जाता हो, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। अत: ब्रीडिंग के जरिए धान की ऐसी किस्म तैयार नहीं की जा सकती जो बीटा कैरोटिन से भरपूर हो। 1990 के दशक में इंगो पोट्रराइकस ने जैव-तकनीकी की सहायता से बीटा कैरोटिन युक्त चावल को विकसित करने का प्रोजेक्ट शुरू किया था। पौधों में बीटा कैरोटिन बनाने की प्रक्रिया में आठ जैव-रसायानिक क्रियाएं होती हैं जो चार एंजाइमों की मदद से संपन्न होती हैं। चावल में बीटा कैरोटिन बनाने के लिए अधिकतर तत्व मौजूद हैं, लेकिन उसके भीतर तीन जीन काम नहीं करते।

सन 2000 में पोट्रराइकस और उनके सहयोगी पीटर बेयर ने डेफोडिल पौधे से दो जीन (फायोटिन सिन्थेज व लायकोपिन सायक्लेज) और जीवाणु इरवीनिया से फायोटिन डिसेचुरेज जीन को क्लोन किया। इन तीन जीनों को जैव-प्रौद्योगिकी की तकनीक से धान के भीतर डालकर उन्होंने जी॰एम॰ धान की गोल्डन राइस वैरायटी बनाई। इस किस्म के एक किलोग्राम चावलों में ~8 मिलीग्राम बीटा कैरोटिन पाया जाता है जिससे इनका रंग पीला-सुनहरा दिखता है। यदि मनुष्य इस धान को खाए तो उनके शरीर के भीतर बीटा कैरोटिन से विटामिन-ए बन जाता है।

विभिन्न देशों के कई सरकारी शोध संस्थानों की भागीदारी से कई स्थानीय धान की किस्मों जैसे भारत में मुख्य रूप से उगाए जाने वाला IR64, बांग्लादेश का 'बोरो', फिलीपीनी PSB, RC 82 आदि में भी बीटा कैरोटिन बनाने की क्षमता को विकसित किया गया। जी॰एम॰ धान की इन किस्मों पर कई तरह के टेस्ट और परीक्षण के बाद वे हानिरहित पाए गए हैं।

विटामिन ए एक वसा में घुलनशील विटामिन है जो नज़र , त्वचा, हड्डियों और शरीर के अन्य ऊतकों के लिए अच्छा माना जाता है दरअसल में विटामिन ए दो प्रकार के होते हैं

  • प्री फॉर्म्ड विटामिन ए: इसे रेटिनॉल भी कहा जाता है, यह प्रायः जानवरों के उत्पादों में पाया जाता है। दूध, अंडे, मांस, पनीर, यकृत, हलिबूट मछली का तेल, क्रीम और गुर्दे हैं।
  • प्रो-विटामिन ए: यह पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों जैसे फलों और सब्जियों में पाया जाता है। विटामिन-ए का सबसे आम प्रकार बीटा-कैरोटीन है जो एक कैरोटीनॉयड है और पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों में गहरा रंग पैदा करता है।

विटामिन ए की वजह से शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं जिनमे से मुख्य हैं रतौंधी, गले छाती और पेट में संक्रमण का खतरा, फॉलिक्युलर हाइपर केराटोसिस, कटी फटी और सूखी त्वचा का कारण
प्रजनन संबंधी समस्याएं बच्चों के विकास में देरी।

विटामिन ए की कमी बाल मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण है, अकेले भारत में 35 लाख बच्चे विटामिन ए की कमी से जूझ रहे हैं जबकि बीते दस साल में इससे संबंधित बीमारी से 1.4 लाख बच्चे मर चुके हैं।पर, विडंबना यह है कि कोई देश गोल्डन राइस के उत्पादन के लिए तैयार नहीं है। इसकी मुख्य वजह यह है कि यह जीएम क्रॉप है। कृषि क्षेत्र से जुड़े कई गैरसरकारी संगठन इसके विरोध में हैं। भारत और अन्य विकासशील देशों में जहाँ चावल लोगों का मुख्य खाद्य पदार्थ है और कुपोषण एक बड़ी समस्या है वहां पर गोल्डन राइस इन स्वस्थ्य जनित समस्याओं से निपटने में एक वरदान साबित हो सकता है ।