(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है ब्लू फ्लैग? (What is Blue Flag Certification?)
हाल ही में, पर्यावरण मंत्रालय ने समुद्री तटों के रेग्युलेशन से जुड़े नियमों में कुछ नरमी बरतने का फ़ैसला लिया है। इस फ़ैसले का मक़सद समुद्र के किनारे कुछ ख़ास ज़गहों पर बुनियादी ढांचे के निर्माण को बढ़ावा देना है। यानी अब भारत के बीचेज पर पोर्टेबल टॉयलेट ब्लॉक, प्राथमिक इलाज़, बैठने के लिए सीटों की व्यवस्था और सीसीटीवी कैमरे जैसी सुविधाएँ बढ़ाई जाएंगी। अभी तक तटीय विनियमन क्षेत्र यानी CRZ नियमों के तहत, बीच पर इस तरह की गतिविधियों की अनुमति नहीं थी। CRZ नियमों में ढील देकर, इसके ज़रिये, इन समुद्री तटों यानी बीचेज के लिए ‘ब्लू फ्लैग’ दर्ज़ा पाना अब और आसान हो जाएगा।
डीएनएस में आज हम आपको ‘ब्लू फ्लैग’ टैग के बारे में बताएँगे और साथ ही, इसके दूसरे पहलुओं से भी आपको रूबरू कराएँगे।
‘ब्लू फ्लैग’ किसी भी समुद्री तट यानी बीच को दिया जाने वाला एक ख़ास क़िस्म का प्रमाण-पत्र होता है जो ‘फ़ाउंडेशन फॉर इनवॉयरमेंटल एजुकेशन’ नाम के एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन द्वारा दिया जाता है। इस संगठन का मक़सद पर्यावरणीय जागरुकता के ज़रिए सतत विकास को बढ़ावा देना है। डेनमार्क के कोपनहेगन शहर स्थित इस संगठन द्वारा ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफ़िकेट की शुरुआत साल 1985 में की गई थी। ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफिकेशन के अलावा इस संस्था ने चार और कार्यक्रम चला रखे हैं - जिनमें इको-स्कूल्स, यंग रिपोर्टर्स फॉर द एनवायरनमेंट, लर्निंग फॉर फॉरेस्ट और ग्रीन की इंटरनेशनल शामिल हैं।
ब्लू फ्लैग मानकों के तहत समुद्र तट को पर्यावरण और पर्यटन से जुड़े 33 शर्तों को पूरा करना होता है।
इन शर्तों को चार व्यापक वर्गों में बाँटा गया है, जिनमें
(i) पर्यावरण शिक्षा और सूचना
(ii) नहाने वाले पानी की गुणवत्ता
(iii) पर्यावरण प्रबंधन और
(iv) सुरक्षा समेत अन्य सेवाएं शामिल हैं।
अगर किसी समुद्री तट को ब्लू फ्लैग का सर्टिफिकेट मिल जाता है तो इसका मतलब वो बीच प्लास्टिक मुक्त, गंदगी मुक्त और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी सुविधाओं से लैस है। साथ ही, वहां आने वाले सैलानियों के लिए साफ पानी की मौजूदगी, अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक पर्यटन सुविधाएँ और समुद्र तट के आसपास पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी जैसी सुविधाएँ भी चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए।
भारत ने ‘ब्लू फ्लैग’ मानकों के मुताबिक अपने समुद्र तटों को विकसित करने का पायलट प्रोजेक्ट दिसंबर 2017 में शुरु किया था। इस प्रोजेक्ट के तहत सभी तटीय राज्यों से 13 समुद्री तटों को ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफिकेट के लिये चुना गया है। इस परियोजना के दो मूल मक़सद हैं। पहला, भारत में लगातार गंदगी और प्रदूषण के शिकार होते समुद्र तटों को इस समस्या से निजात दिलाकर इनका पर्यावास दुरुस्त करना और दूसरा, सतत विकास और पर्यटन सुविधाओं को बढ़ाकर भारत में इको फ्रेंडली पर्यटन विकसित करना है। इन भारतीय तटों को मिलने वाला ‘ब्लू फ्लैग टैग’ न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में पहली बार होगा। उड़ीसा के कोणार्क तट पर मौजूद चंद्रभागा बीच ‘ब्लू फ्लैग’ टैग पाने वाला भारत का पहला बीच है।
भारत में, समुद्री तटों को ‘ब्लू फ्लैग’ के मानकों के मुताबिक विकसित करने का काम ‘सोसायटी फॉर इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट’ यानी SICM नाम की संस्था कर रही है। SICM पर्यावरण मंत्रालय के मातहत काम करती है।
समुद्र तटों को पर्यावरण हितैषी बनाने के लिये ब्लू फ्लैग कार्यक्रम को फ्रांस के पेरिस से शुरू किया गया था और लगभग दो साल के भीतर ही यूरोप के क़रीब सारे समुद्र तटों को इस तमगे से लैस कर दिया गया। साल 2001 में इसका दायरा दक्षिण अफ्रीका तक पहुंच गया, हालांकि एशिया महाद्वीप में अभी तक इस तरह के बीचेज नहीं थे।
अभी तक दुनिया भर के 44 देशों के लगभग 4500 समुद्र तट और बोट ऑपरेटर्स ‘ब्लू-फ्लैग’ नेटवर्क से जुड़ चुके हैं। 566 ‘ब्लू फ्लैग’ बीचेज के साथ स्पेन पहले स्थान पर क़ाबिज़ है।