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Blog / 29 Jan 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) वाकाटक वंश (Vakatak Dynasty)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) वाकाटक वंश (Vakatak Dynasty)


हाल ही में नागपुर के समीप रामटेक तालुका में नागरधन की खुदाई में वाकाटक वंश से जुड़े जीवन,धार्मिक और व्यापार से जुड़े तथ्य मिले हैं ।

वाकाटक वंश ने तीसरी और पांचवी शताब्दी के बीच मध्य और दक्षिण भारत के भागों पर राज्य किया । खुदाई में 1500 साल पुराने मिली एक सील से रानी प्रभावती गुप्त के शासन के बारे में समझने में मदद मिलेगी ।

नागरधन नागपुर जिले में एक बड़ा गाँव है । पुरातत्ववेत्ताओं ने यहाँ स्थित एक स्थल का उत्खनन सं २015-18 के बीच किया । आज मौजूद गाँव पुराने गाँव के ठीक ऊपर स्थित है । मौजूदा गाँव के दक्षिण में मौजूद था नागरधन किला जिसे एक गोंड राजा के शासन काल में बनवाया गया था और फिर इसे नागपुर के भोसले राजाओं द्वारा नवीनीकृत करवाया गया ।

वाकाटक वंश के राजा शैव थे और मध्य भारत में इन्होने तीसरी और पांचवी शताब्दी के दौरान राज किया लेकिन इसके बावजूद इनके बारे में बहुत कम जानकारी हासिल है। जो भी जानकारी इस वंश के बारे में है वो विदर्भ क्षेत्र से मिले साहित्य और ताम्रपत्रों के आधार पर है। ऐसा माना जाता है की वाकाटक के पूर्वी भाग की राजधानी नदीवर्धन हुआ करती थी । बाद में उत्खनन से मिले साक्ष्यों के आधार पर ये साबित हुआ की इनकी राजधानी नागरधन थी ।

विद्यां और पुरातत्व वेत्ता जिन्होंने पूर्व में इस स्थान का उत्खनन किया उन्होंने इसका दस्तावेज़ी करण ठीक से नहीं किया था । उत्खनन विभाग महारष्ट्र सरकार दकन कॉलेज और पुणे के कॉलेज के संयुक्त रूप से किये गए उत्खनन में वाकाटक जीवन शैली के कुछ नए तथ्यों को उजागर किया गया है । खुदाई से न सिर्फ इस वंश के राजाओं के धार्मिक समबनधों के बारे में जानकारी मिली है बल्कि इस वंश के शासनकाल के दौरान घरों , राजा के महलों , सिक्कों मोहरों और व्यापार आदि की भी जानकारी भी मिली है ।

ये पहली बार है जब नागरधन की खुदाई में मिट्टी की बनी मोहरें मिली हैं । अंडे के आकार की मोहरे उस युग की है जब वाकाटक वंश में प्रभावतीगुप्त का शासन चलता था । इस मोहर पर ब्राह्मी लिपि में प्रभावतीगुप्त का नाम उकेरा हुआ मिला है इसके साथ ही मोहरों पर शंख की भी आकृति गुदी हुई मिली है । मोहरों पर शंख की आकृति से ये पता चलता है की वाकाटक वंश वैष्णव धर्म को मानता था ।

रानी प्रभावती गुप्त के द्वारा ताम्रपत्रों से पता चलता है की उनकी वंशावली की शुरुआत गुप्तों से हुई थी और उनके पितामह समुद्रगुप्त जबकि उनके पिता का नाम चन्द्रगुप्त द्वितीय था । इन चिन्हों से ये पता चलता है की प्रभावतीगुप्त एक प्रभावशाली महिला शासक थीं ।

चूँकि वाकाटक वंश के लोग ईरान से और भूमध्यसागर के ज़रिये व्यापार करते थे इसलिए विद्वानों का मानना है की इन मोहरों का प्रयोग व्यापार के लिए आधिकारिक तौर पर शाही फरमान के तौर पर किया जाता था।

वाकाटक वंश के शासकों ने अपने समकालीन कई अन्य राजवंशों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे । इनमे से एक मुख्य वैवाहिक सम्बन्ध शक्तिशाली गुप्त वंश की प्रभावतीगुप्त के साथ किया गया सम्बन्ध था। ऐसा माना जाता है की उत्तर में राज कर रहे गुप्त वंश की ताक़त वाकाटक वंश से कई गुने ज्यादा थी।

वाकाटक शासक रुद्रसेना II से विवाह के बाद प्रभावतीगुप्त को महरानी बनाया गया । लेकिन रुद्रसेन की अचानक हुई मृत्यु ने प्रभावतीगुप्त को इस वंश की पहली महिला शासक बना दिया जिसके बाद उनका कद और ऊंचा हो गया जिसका पता वाकाटक की राजधानी नागरधन से प्रभावती गुप्त के नाम से जारी की गयी मोहरों से चलता है।

रानी प्रभावतीगुप्त ने 10 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद उनके पुत्र प्रवरसेन II ने सत्ता संभाली।

नागरधन की शुरुआत की खुदाई से प्राप्त चीज़ों में चीनी मिट्टी के बर्तन , कांच की बालियां , कटोरे और गमले , एक मिट्टी का मंदिर और टैंक एक हिरन का चित्रण करने वाला पत्थर , और टेराकोटा की चूड़ियां मिली हैं।