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Blog / 12 Feb 2019

(Daily News Scan - DNS) यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income)

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(Daily News Scan - DNS) यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income)


मुख्य बिंदु:

पिछले कुछ सालों से UBI स्कीम चर्चा में है। अलग अलग पार्टियों और राज्य सरकारों की ओर से इसे लागू किए जाने की कोशिशें चल रही हैं। बीते दिनों सिक्किम की सत्तारूढ़ पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी SDF ने वहां होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र जारी किया है । इस घोषणापत्र में SDF ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी UBI को शामिल करने का फैसला किया है और कहा कि यदि पार्टी सत्ता में वापस आती है, तो 2022 तक इस योजना को लागू कर दिया जायेगा। इसके अलावा विपक्ष की कांग्रेस पार्टी ने भी कहा है कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे नागरिकों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम दिए जाने का नियम बनाएंगे।

DNS में आज हम यूनिवर्सल बेसिक इनकम के बारे में बताएंगे साथ ही अंतरिम बजट में सरकार की ओर से लागू किए पार्शियल बेसिक इनकम से जुड़े ज़रूरी पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर चल रही अलग अलग चर्चाओं को दरकिनार करते हुए केंद्र की NDA सरकार ने अपने अंतरिम बजट में इस योजना को एक तरीके से लागू कर दिया है। मौजूदा केंद्र सरकार भी UBI पर लम्बे वक़्त से विचार कर रही थी। केंद्र सरकार ने इसके लिए अलग-अलग मंत्रालयों से उनकी राय मांगी थी। जिसमें यूनिवर्सल बेसिक इनकम को कैसे लागू किया जाए, किन किन लोगों को इसके दायरे में लाया जाए और साथ ही यदि इस स्कीम को लागू किया जाता है तो इसकी न्यूनतम इनकम क्या हो ? केंद्र सरकार ने इन्हीं सब सवालों के लिए अपने अलग अलग मंत्रालयों से सुझाव मांगे थे।

1 फरवरी को संसद में पेश किए गए बजट के दौरान सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि नाम की एक योजना शुरू की है, जोकि UBI स्कीम का ही हिस्सा है। भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम का सुझाव लंदन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने दिया था। प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने पहले ऐसे शख़्स थे जिन्होंने इसे भारत में लाये जाने का सुझाव दिया था।

बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क के मुताबिक़ यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम के तहत सरकार देश के हर नागरिक को बिना किसी शर्त के एक तयशुदा रकम देती है। जिसका मतलब होता है कि अगर ये योजना लागू हो रही है तो सरकार देश के सभी वयस्क नागरिक को एक निश्चित रकम समय - समय पर देती रहेगी। बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क के बारे में आपको बताएं तो ये कुछ बौद्धिक लोगों का एक संगठन है जो कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम दिए जाने की वकालत करते हैं।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम की ये सुविधा अगर सिर्फ कुछ खास तबकों जैसे कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को ही दिया जाय तो इसे पार्शियल बेसिक इनकम कहा जाता है। सरकार ने अपने अंतरिम बजट में किसानों को जो सहायता राशि देने की घोषणा की है वो पार्शियल बेसिक इनकम का ही हिस्सा है। जिसमें 2 हेक्टेयर से काम ज़मीन वाले किसानों को सालाना 6 हज़ार रूपये दिए जायेंगे।

ग़ौरतलब है कि साल 2016-17 के आर्थिक सर्वे में भी यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू किए जाने की सिफारिश की गई थी। इस आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर 40 से अधिक पेजों का एक खाका तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू किए जाने के बाद भारत में मौजूद ग़रीबी को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। क्यूंकि नागरिकों के लिए बनाई जाने वाली कल्याणकारी योजनाएं उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रही हैं, जिसके कारण भी UBI को सार्थक कदम बताया गया था।

किसी भी बड़ी योजना को लागू करने से पहले उसका परीक्षण करना ज़रूरी होता है। जिससे उस योजना के संभावित परिणामों के बारे में पता लगाया जा सके। UBI को भी लागू करने से पहले सरकार ने उसका एक टेस्ट कराया था। UBI का ये टेस्ट मध्य प्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर किया गया था, जिसके नतीजे काफी बेहतर रहे।

वहां पर इस स्कीम का फायदा उठाने वाले लोगों के जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानसिक ख़ुशी जैसे क्षेत्रों में काफी सुधार देखा गया। इंदौर के 8 गांवों की क़रीब 6,000 की आबादी के बीच ये प्रयोग किया गया । ये प्रयोग 2010 से 2016 के बीच किया गया था। UBI के तहत वयस्क पुरुषों और महिलाओं को 500 और नाबालिग बच्चों को हर महीने 150 रुपया दिया गया था। पिछले 5 सालों तक UBI स्कीम का लाभ उठाने वाली इस आबादी के अधिकतर लोगों ने अपनी आय भी बढ़ा ली है। जिसके बाद UBI स्कीम के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता ने देश भर में UBI को लागू लिए जाने की मांग को बढ़ा दिया है।

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक़ भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने पर जीडीपी का क़रीब 3 से 4 फीसदी खर्च आएगा, जबकि मौजूदा वक़्त में सरकार जीडीपी का 4 से 5 फीसदी सब्सिडी पर खर्च कर रही है। ये सब्सिडी केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही कुल 950 योजनाओं में खर्च की जाती है। इतने बड़े खर्च के बावजूद भी भारत में एक बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे ज़िन्दगी बिताने पर मज़बूर है। ऐसे हालात में, सब्सिडी के औचित्य पर सवाल उठाना लाज़िमी है साथ ही UBI स्कीम को इसके विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

आइये अब जानतें हैं कि इस स्कीम के लागू होने से क्या लोगों को इससे कितना फायदा होगा और कितना नुकसान ?

भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जो 12 करोड़ से अधिक किसानों को UBI स्कीम के दायरे में ला रहा है। UBI को भारत में लागू किए जाने के पीछे मकसद ये है कि देश के सभी नागरिकों को एक निश्चित धनराशि उपलब्ध कराई जाए। ताकि देश के सभी नागरिक अपना जीवनयापन आराम से कर सकें। कुछ विशेषज्ञों ने UBI स्कीम का समर्थन किया है। जिसमें उनका मानना है कि भारत जैसे भ्रष्ट और सामाजिक रूप से पिछड़े देश में सभी नागरिकों को उनके जीवनयापन के लिए एक निश्चित राशि दी जानी ज़रूरी है।

UBI स्कीम के ज़रिए बैंक खतों में जब पैसे भेजे जाते हैं तो इससे किसी भी परिवार की आय बढ़ती है , जिससे बड़े स्तर पर लोगों को फायदा पहुँचता है। भारत में UBI को लागू करना एक क्रांतिकारी कदम होगा। साथ ही ये स्कीम ग़रीबी दूर करने के मामले में भी मील का पत्थर साबित हो सकती है।

मौजूदा वक़्त में देश में काम करने वाली महिला श्रमिकों की संख्या काफी कम है। देश में असंगठित क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा होने के कारण महिला श्रमिकों का शोषण हो रहा है। लेकिन UBI स्कीम के ज़रिए जब उनके अकाउंट में पैसे भेजे जायेंगे तो इससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति बदल सकती है। साथ ही महिलाओं के आर्थिक रूप से मज़बूत होने से महिला और पुरुष के लिंगानुपात में भी समानता आएगी। इस लिहाज से यूनिवर्सल बेसिक इनकम के ज़रिए महिला सशक्तीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा। जिसका समाज पर काफी बेहतर प्रभाव पड़ेगा।

इसके अलावा इस समय क़रीब 90 % से ज़्यादा लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। जिसमें इंडिविजुअल, 2-4 या ज़्यादा से ज़्यादा 10 लोगों से कम की संख्या में काम करने वाले श्रमिकों की एक बड़ी संख्या है। सरकार अकेले या फिर 10 से कम लोगों की संख्या में काम करने वाली कंपनियों पर नज़र नहीं रखती। जिसके कारण इन जगहों पर काम करने वाले लोग अपने भविष्य के लिए ज़रूरी धनराशि जमा नहीं कर पाते हैं। साथ ही इन्हें पेंशन, बीमा और स्वास्थ्य से जुड़े फायदे भी नहीं मिल पाते हैं।

अगर UBI स्कीम लागू की जाती है तो निश्चित तौर पर इस तरह से काम करने वाले लोगों को फायदा होगा। इस स्कीम के ज़रिये ये लोग भी बैंकों से जुड़ेंगे।

जिससे वित्तीय समावेशन को प्रक्रिया को भी साकार करने में आसानी होगी। इन सब के दौरान ही आम लोगों को बैंक से कर्ज भी मिल सकेगा जिससे मांग और आपूर्ति में तेजी आएगी और देश का विकास भी होगा। इस योजना का एक सकारात्मक पहलू ये भी है कि इसकी मदद से ग़रीब तबकों को आर्थिक और सामाजिक रूप से मज़बूती तो मिलेगी ही मिलेगी साथ ही सरकार की ओर से दी जा रही मौजूदा सब्सिडी जोकि बिचौलिये और अन्य कारणों से लोगों तक पहुँच पाती है उस पर भी लगाम लगेगी।

टेक्नोलॉजी के बढ़ने से इंसानों के काम और उनकी आय में कमी आ रही है। ऐसे में UBI स्कीम इस समस्या से निपटने में काफी मददगार साबित हो सकती है। अगर पिछले साल के कुछ आंकड़ों पर नजर डाले तो भारत 2018 में वैश्विक भूख सूचकांक यानि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर था। तो वहीं मानव विकास सूचकांक यानि एचडीआई की 189 देशों की सूची में भी भारत 130वें नंबर पर रहा । इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी भारत 195 देशों की सूची में 145वें पायदान पर है। इन सब आंकड़ों से देश के लोगों का औसत जीवन स्तर ज़ाहिर होता है, और शायद इसीलिए भी UBI की ज़रूरत महसूस की जा रही है।

हालांकि UBI को लागू करने को लेकर कुछ विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। दूसरे विशेषज्ञों का मानना है कि UBI से लोगों में काम करने को लेकर उत्साह कम हो सकता है। UBI से होने वाले नुकसान के पक्ष में विशेषज्ञों का कहना है कि - इस स्कीम के लागू होने से लोगों को जो मुफ्त पैसा मिलेगा वो उन्हें आलसी बना सकता है। जिससे लोग काम करने से इतरायेंगे।

मुफ्त में पैसा मिलने से जो लोग काम कर रहे हैं वे भी काम करने से परहेज करने लगेंगे जिससे काम करने वाले लोगों की संख्या में कमी आ सकती है। मुफ्त का पैसा मिलने से लोगों में फिजूलखर्ची की भी आदत आ सकती है। इसके अलावा लोगों में नशा और जुआ खेलने की इच्छा भी बढ़ सकती है।

इस योजना को लागू करने से बैंकों पर काम का दबाव बढ़ेगा। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र पहले से ही मानव संसाधन की कमी का सामना कर रहा है। इसके अलावा ये पूरी व्यवस्था सही तरीके से काम कर सके इसके लिए भी देश में बैंकों की तकनीकी प्रणाली को अपडेट करने के लिए भारी-भरकम रक़म की दरकार होगी।

इस स्कीम को लागू करने में एक समस्या ये भी है कि आखिर किन किन लोगों को इसमें शामिल किया जाय।क्यूंकि सचमुच में इस स्कीम की ज़रूरत किसे है इसका चयन कर पाना सरकार के लिए मुश्किल कार्य होगा। इस प्रक्रिया को लागू करने में भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलने की आशंका रहेगी। बिना ज़रूरत वाला भी कोई व्यक्ति भी इस योजना का लाभ लेने में सफल हो सकता है।

एक कैलक्युलेशन के मुताबिक नागरिकों को सब्सिडी देने पर सरकार को GDP का क़रीब 3.7 प्रतिशत खर्च करना होता है, जबकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पर 0.9 प्रतिशत तक की लागत आने का अनुमान है। ऐसे में लागत बढ़ने से पैसों का इंतजाम करना सरकार के लिए मुश्किल भरा होगा। इन सब के अलावा भारत में अशिक्षा और ग़रीबी का दायरा बहुत बड़ा है। देश में कम पढ़े लिखे लोगों की एक बड़ी फौज होने के कारण वे इस योजना से मिलने वाले लाभ को अपना अधिकार समझने लगेंगे जिससे देश के कार्यबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

सबसे बड़ा नुकसान काम करने वाले लोगों की कमी से होगा जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। काम-धंधों की रफ्तार कम होने से सामानों के निर्माण की गति धीमी होगी जिससे मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा होगा और इस कारण देश का विकास प्रभावित होने की आशंका रहेगी।

हमारे पुरुष प्रधान समाज में सरकार द्वारा महिलाओं को जो बुनियादी आय दी जाएगी, उस पर भी संभव है कि पुरूषों का नियंत्रण हो जाए। इसके अलावा यूबीआई से मजदूरी की दर बढ़ने के कारण महँगाई भी बढ़ सकती है।

UBI के सभी पहलुओं को समझने के बाद, जो सबसे ज़रूरी सवाल खड़ा होता है वो ये कि इतने बड़े स्कीम के लिए पैसा कहाँ से आएगा। क्योंकि एक आंकड़े के मुताबिक, यूबीआई को यदि वास्तव में यूनिवर्सल रखना है तो उसके लिये जीडीपी का 10 फीसदी खर्च करना होगा। इसके अलावा यदि सरकार बजट को कम रखने के लिए इसे सिर्फ कुछ ख़ास तबकों के लिये लाने की कोशिश करेगी तो इस स्थिति में इस योजना को यूनिवर्सल कहना ठीक नहीं होगा। ये सिर्फ पार्शियल बेसिक इनकम ही रहेगा।

साथ ही जब आप बेसिक इनकम की बात करते हैं तो सवाल ये भी है कि क्या लोगों को ऐसा कोई कानूनी अधिकार भी दिया जायेगा? क्यूंकि इस स्कीम में बिना किसी कानूनी प्रावधान के सामाजिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं रहेगी।

इसके अलावा जिस बेसिक इनकम की चर्चा हो रही है उसमें ‘बेसिक आय’ का स्तर क्या होना चाहिए, यानी वह कौन-सा अमाउंट होगा जिससे व्यक्ति अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सके? अगर पार्शियल बेसिक इनकम की ही बात किया जाय तो यहाँ पर एक और सवाल खड़ा होता है जो कि आंकड़ों से जुड़ा है। और वो ये कि गरीबी रेखा की कोई सर्वमान्य परिभाषा तय नहीं है। तेंदुलकर फॉर्म्युले में 22 फीसदी आबादी को गरीब बताया गया था जबकि सी. रंगराजन फॉर्म्युले ने 29.5 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। ऐसे में इस योजना के लाभार्थियों को चिन्हित करना एक मुश्किल काम होगा।

इस योजना से फायदा और नुकसान दोनों होने की संभावना है। भारत जैसे बड़े और विविधता से परिपूर्ण देश में इसे लागू कराना आसान नहीं है।

भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने के लिए संसाधनों की व्यापक मात्र में ज़रूरत होगी जिसके लिए मौजूदा सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि को बंद करना पड़ सकता है।