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Blog / 27 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सुमन दिवस (Suman Diwas)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सुमन दिवस (Suman Diwas)



देश का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीति से त्रस्त था ही, लेकिन देशी रियासतों के नवाबों और राजाओं ने भी जनता पर दमन और शोषण का कहर ढा रखा था। जब युद्ध के बहाने भारत देश की मासूम प्रजा को लूटा जा रहा था, ऐसे समय में उत्तराखंड राज्य में जन्म लिया था एक ऐसे वीर ने...जिसने ना सिर्फ अंग्रेजों के बल्कि रियासती अत्याचारों के खिलाफ जनक्रान्ति कर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया.....श्री देव सुमन....

आज यानी 25 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है....चलिए आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें फिर से याद करें.... जिनके बलिदान दिवस को उत्तराखंड राज्य में ‘सुमन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

श्रीदेव सुमन का जन्म उत्तराखंड के टिहरी राज्य में हुआ था। ये वही टिहरी है, जहाँ पर आज एशिया का सबसे ऊँचा बाँध स्थित है। इस विशाल जलाशय को इन्हीं श्रीदेव सुमन के नाम पर ‘श्रीदेव सुमन सागर’ के नाम से भी जाना जाता है..

श्रीदेव सुमन का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब जनता राजशाही को ही आखिरी फरमान समझती थी....25 मई, 1915 को श्रीदेव सुमन ने टिहरी के ही जौल गाँव में जन्म हुआ....श्रीदेव सुमन का बचपन का नाम था श्रीदत्त बडोनी....

टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे, लेकिन यहाँ की हर कार्यवाही में उनका खुला हस्तक्षेप था...जैसा कि कुछ इतिहासकार भी लिखते हैं; राजपरिवार अंग्रेजों के एहसानों तले इस कदर डूबा हुआ था कि 1857 सत्तावन की क्रांति के दौरान अंग्रेजों को छुपने के लिए अपने राजमहल के द्वार खोल दिए और खुद लोगों के घरों और जंगलों में दिन गुजारते गए...बदले में अंग्रेजों ने भी खूब कृपा बरसाई...

30 दिसम्बर, 1943 तैंतालीस से 25 जुलाई, 1944 चौवालिस तक 209 दिन सुमन ने टिहरी की नारकीय जेल में बिताए। इस दौरान इन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर जब इन पर मुकदमा दायर किया गया तो इन्होंने अपनी पैरवी स्वयं की और लिखित बयान दिया....उन्होंने कहा “हाँ, मैंने प्रजा के खिलाफ लागू काले कानूनों और नीतियों का हमेशा विरोध किया है। मैं इसे प्रजा का जन्मसिद्ध अधिकार मानता हूँ।”

लेकिन, इस सबके बावजूद झूठे मुकदमे और फर्जी गवाहों के आधार पर 31 जनवरी, 1944 चवालीस को दो साल का कारावास और 200 रुपया जुर्माना लगाकर इन्हें सजायाफ्ता मुजरिम बना दिया गया। इस दुर्व्यवहार के विरोध में सुमन ने 29 फरवरी से 21 दिन का उपवास प्रारम्भ कर दिया, जिससे जेल के कर्मचारी कुछ झुके, लेकिन उनकी बात महाराजा से नहीं करवाई गई। श्रीदेव सुमन लगातार माँग करते रहे कि उनकी बातें राजा तक पहुँचाई जाएँ, लेकिन बदले में उन्हें कठोर दंड और यातनाएँ दी गईं...

श्री देव सुमन ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आन्दोलन कर रहे थे ... श्री देव सुमन को उत्तराखंड का भगत सिंह भी कहा जाता है....मात्र 29 की अवस्था में ही जनता के लिए प्रजामण्डल की स्थापना की माँग करने के कारण अपनी ही रियासत के राजाओं द्वारा प्रताड़ना और क्रूरतापूर्ण शोषण के बाद प्राण त्यागने वाले श्रीदेव सुमन की कहानी सरदार भगत सिंह के बलिदान से कम नहीं है।

लेकिन, श्रीदेव सुमन के बलिदान का जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और लोगों ने राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया । सुमन के बलिदान के बाद जनता के आन्दोलन ने टिहरी रियासत को प्रजामण्डल को वैधानिक करार देने पर मजबूर कर दिया। वर्ष 1948 अड़तालीस में जनता ने देवप्रयाग, कीर्तिनगर और टिहरी पर अधिकार कर लिया और प्रजामण्डल का मंत्रिपरिषद गठित हुआ। टिहरी गढ़वाल के भारतीय गणराज्य में शामिल हो जाने तक यह आन्दोलन चलता रहा। इसके बाद 1 अगस्त, 1949 उनचास को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारत गणराज्य में विलीनीकरण हो गया। यही वो समय था, जब वल्लभभाई पटेल हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल जैसी तमाम देशी रियासतों का भारत संघ में मिलाने के प्रयत्न कर रहे थे।

साहित्य से राजनीति तक सुमन का सफर

सुमन एक श्रेष्ठ लेखक और साहित्यकार भी थे...वर्ष 1937 सैंतीस में ‘सुमन सौरभ’ नाम से अपनी कविताएँ भी प्रकाशित करवाईं। इसी दौरान वे पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे..विद्यार्थी जीवन के दौरान ही 1930 में देहरादून में सत्याग्रही आन्दोलन में शिरकत करने के कारण उन्हें 15 दिन की जेल

लोकतंत्र के शिल्पकार थे सुमन

श्रीदेव सुमन को गढ़देश सेवा संघ की स्थापना के लिए विवश किया जिसे बाद में हिमालय सेवा संघ के नाम से जाना गया। वे जल्द ही पूरी तरह सामाजिक-राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए। 23 जनवरी को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामण्डल की स्थापना के मौके पर इन्हें संयोजक मंत्री चुना गया।

अपने शरीर के कण-कण के नष्ट हो जाने पर भी टिहरी के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने का दम भरने वाले श्रीदेव सुमन ने अपने इस संकल्प को निभाया भी। उत्तराखंड के निर्माण में श्रीदेव सुमन जैस अमर बलिदानियों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। यह देवभूमि के साथ ही नायकों की भूमि भी है, जिन्होंने समय-समय पर अपने रक्त और बलिदान के उदाहरण पेश कर उत्तराखंड के इतिहास को गौरवशाली बनाया है...