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Blog / 27 Dec 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है सीआरपीसी की धारा 144 (Section 144 of CrPC)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्या है सीआरपीसी की धारा 144 (Section 144 of CrPC)


क्या है धारा 144?

हाल ही में नागरिकता अधिनियम- 2019 में फैली भ्रान्तियों व अफवाहों के कारण पूरे देश में अराजकता व उपद्रव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, इस अराजकता व उपद्रव इत्यादि को शान्त करने व स्थिति को सामान्य करने के लिए राज्य सरकारों ने धारा 144 का प्रयोग किया।

अपने आज के DNS कार्यक्रम में आज हम धारा- 144 के बारे में ही जानने का प्रयास करेंगे।

  • दरअसल धारा-144 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता-1973 का एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है, जिसका प्रयोग चार या चार से अधिक लोगों की सभा को प्रतिबंधित करने, मोबाइल फोन कम्पनियों को किसी क्षेत्र में SMS या अन्य Message Services अथवा Internet को बंद करने के लिए किया जाता है।
  • यह धारा एक जिला-अधिकारी, उप-जिलाधिकारी या किसी अन्य प्राधिकरण को जिले में उत्पन्न हो रही अराजक स्थिति को सम्भालने के लिए अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान करता है जिसके द्वारा लोगों को अनावश्यक रूप से इकट्ठा होने इत्यादि के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है।
  • यह प्रावधान किसी व्यक्ति विशेष, या किसी समूह विशेष या किसी क्षेत्र विशेष में भी लगाया जा सकता है।
  • इस प्रावधान के अन्तर्गत किसी के आवागमन को भी अस्थाई तौर पर रोका जा सकता है।
  • हालांकि धारा-144 के अर्न्तगत पारित किया गया कोई भी आदेश, इसको जारी करने की तिथि से लेकर 2 माह तक ही बना रह सकता है। परन्तु विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार इस अवधि को 6 माह तक बढ़ा सकती है।
  • इस अवधि में मजिस्ट्रेट के किसी आदेश की समीक्षा या उसके विरूद्ध कोई उपचार भी स्वयं मजिस्ट्रेट द्वारा ही संभव हे।
  • इस अवस्था में पीड़ित व्यक्ति अनुच्छेद-226 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय या अनुच्छेद-32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय जाकर अपने मूल-अधिकारों को पुनः लागू करने की माँग कर सकता है, परन्तु यदि ऐसा कोई भी अधिकार लोक व्यवस्था या सुरक्षा के विरूद्ध होने पर न्यायालय भी वृहद हितों को ही प्राथमिकता देती है।
  • इसी दिशा में 1967 में आये डा0 राम मनोहर लोहिया मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि लोकतन्त्र तब तक सुरक्षित नहीं रह सकता जब तक नागरिकों के एक वर्ग को लोक-व्यवस्था को अस्थिर करने की, व उसे हानि पहुँचाने की खुली छूट मिली रहती हो, अर्थात उच्चतम न्यायालय ने व्यक्तिगत हितों से ऊपर समाज के हितों को प्राथमिकता दी व लोकतन्त्र के संरक्षण के लिए ऐसे प्रावधानों पर सहमति जताई।
  • न्यायपालिका ने मधु लिमये बनाम उप-जिलाधिकारी मामले में 1970 में भी इसी बात को और पुख्या किया।
  • इस मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम- हिदायतुल्लाह की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने भी धारा-144 की संवैधानिकता को सही बताया।
  • न्यायपालिका ने यह तर्क दिये कि सिर्फ कानून के दुरूपयोग के कारण उसकी वैधानिकता समाप्त नहीं की जा सकती।
  • साथ ही धारा-144 को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उल्लंघन नही माना जा सकता, क्योंकि यह धारा भारतीय संविधान के अर्न्तगत आने वाले अनुच्छेद-19(2) को युक्तियुक्त प्रतिबन्धों अर्थात् Reasonable Restrictions के दायरे में आता है।

हांलाकि उच्चतम न्यायालय ने 2012 में रामलीला मैदान में सोते हुए लोगों पर इस धारा-144 के प्रयोग को अनुचित ठहराते हुए इसके उचित व संयमित उपयोग पर बल दिया जिससे व्यक्तिगत हितों व सामाजिक हितों के मध्य एक संतुलन स्थापित किया जा सके।