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Blog / 16 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) बढ़ता ओज़ोन प्रदूषण (Rising Ozone Pollution)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) बढ़ता ओज़ोन प्रदूषण (Rising Ozone Pollution)


मुख्य बिंदु:

हाल ही में लोक सभा बैठक में दिल्ली में ओजोन के बढ़ते स्तर पर पूछे गए सवाल के जवाब में पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2016, 2017 और 2018 के साथ-साथ 2019 के पहले पांच महीनों के लिए वायुमंडल में ओजोन की मात्रा के आंकड़े पेश किए। मानव जीवन के लिए ओजोन परत का हमारे वायुमंडल में बड़ा महत्व है।

आज के DNS में हम जानेंगे की ओजोन परत क्या है और बात करेंगे इसके महत्व अथवा इस से होने वाले नुक्सान के बारे में।

ओजोन एक प्राकृतिक गैस है जो पूरी पृथ्वी पर फैले एक रक्षा कवच की तरह है । यह सूर्य से आने वाली हानिकारक ultra violet यानि परा बैंगनी किरणों को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकती है। ओजोन ऑक्सीजन के 3 अणुओं से मिलकर बनती है यह बेहद प्रतिक्रियाशील , दिखने में हल्के नीले रंग की तथा दुर्गन्धपूर्ण होती है । हमारे वायुमंडल में 2 प्रकार की ओजोन पायी जाती है पहली जो प्राकर्तिक रूप से बनती है और दूसरी जो नाइट्रोजन ऑक्साइड NO2 और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों Volatile Organic Compounds (VOC) के साथ क्रिया करने पर बनती है । ओजोन परत की खोज 1913 में फ्रांस के दो वैज्ञानिकों चार्ल्स फैब्री और हेनरी बिसन द्वारा की गयी थी।

पहले प्रकार की ओजोन पृथ्वी के वायुमंडल से लगभग 10 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में पायी जाती है इस ओजोन परत की चौड़ाई लगभग 30 - 40 किलोमीटर है । सूर्य की किरणें जब इस परत से होकर गुज़रती है तब इन किरणों में मौजूद परा बैंगनी किरणें ऑक्सीजन O2 के कणों से टकराकर इन कणों को तोड़ कर ऑक्सीजन के 2 अलग अणुओं में विभाजित कर देती है, जब यह विभाजित अणु ऑक्सीजन कणों के साथ मिलकर क्रिया करते है तो ओजोन यानि O3 का निर्माण होता है । इस प्रकार ओजोन की यह परत सूर्य से आने वाली 95% परा बैंगनी किरणों को सोख लेती है।

पृथ्वी की सतह से 10 किलोमीटर ऊपर तक के वायुमंडल को ट्रोपोस्फीयर यानि क्षोभ मंडल कहते हैं सभी जीवित प्राणी इसी क्षोभमंडल में रहते है। दूसरे प्रकार की ओजोन का निर्णाम इसी क्षोभमंडल में होता है जहाँ यह नाइट्रोजन ऑक्साइड NO2 और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों Volatile Organic Compounds (VOC) की क्रियाओं द्वारा बनती है। जब वाहनों , इंडस्ट्रियल बॉयलर्स और रासायनिक संयंत्र से निकलने वाला प्रदुषण सूर्य की किरणों के साथ क्रिया करता है तो ओजोन का निर्माण होता है।

मानव जीवन के लिए ओजोन परत का बड़ा महत्व है । अगर परा बैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी की सतह तक पहुचेंगी तो यह सभी जीव जंतुओं के लिए हानिकारक साबित हो सकती है इनसे पृथ्वी के वातावरण में भीषण बदलाव आ सकते है और यह मानव त्वचा में होने वाले कैंसर तथा कई अन्य भयंकर बीमारियों का कारण बन सकती है ।समताप मंडल में घटती ओजोन परत का मुख्या कारण हाइड्रो- क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन्स (HCFCs) और क्लोरो-फ्लोरो कार्बन ( CFCs) यौगिकों का बढ़ता उपयोग है। इन यौगिकों का उपयोग रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, और शीतलन संयंत्रों में रेफ्रिजरेंट के रूप में किया जाता है। ये अणु O3 अणुओं को नष्ट कर सकते हैं और ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते है।

वहीँ दूसरी ओर क्षोभ मंडल में ओजोन की बढ़ती मात्रा भी कई तरह की बीमारियों का कारण है। बढ़ती ओजोन की मात्रा से सबसे अधिक खतरा फेफड़े के रोगों से पीड़ित लोगों को है । क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी वीमारियों से ग्रसित लोग ,बच्चे , बुजुर्ग ओजोन की बढ़ती मात्रा से सबसे अधिक प्रभावित होंगे । बढ़ती ओजोन की मात्रा में सांस लेने से सीने में दर्द, खांसी और गले में जलन जैसी कई दिक्कतें होती हैं। लम्बे समय तक ओजोन में सांस लेने से अकाल मृत्यु तथा हृदय रोग जैसी गंभीर समस्याएं भी हो सकती है।

WHO के एक सर्वे में नई दिल्ली को विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषित हवा वाला शहर बताया गया । साल 2019 में अब तक 25 ऐसे रहे है जहाँ ओजोन की मात्रा दिल्ली में सुरक्षा सीमा से अधिक दर्ज की गई । 8 घंटे के औसत में ओजोन प्रदुषण की मात्रा 100 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए जहाँ दिल्ली के अधिकतर इलाकों में यह मात्रा तय मानकों से काफी अधिक रही । 2018 में औसतन यह मात्रा 106 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी जो 2019 में बढ़कर 122 हो गई है।

भारत ओजोन प्रदुषण से होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए कदम उठा रहा है । मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत पहले ही साल 2010 में सभी शहरों में क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) के उपयोग पर रोक लग चुकी है तो वहीँ 2016 में भारत सरकार ने हाइड्रो- क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन्स (HCFC) के निर्माताओं को कड़े आदेश दिए है की वे यह गैस वायुमंडल में न छोड़ें । मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो की साल 1987 में बनाई गई थी । भारत इस संधि पर 19 जून 1992 में हस्ताक्षर करके सदस्य बना था । यह संधि ओजोन परत में हो रहे सुराख को रोकने के लिए बनाई गई थी । इस संधि को विश्व की अब तक की सबसे सफल पर्यावरण संधि माना जाता है।

इसी श्रंखला में आगे कदम बढ़ाते हुए भारत सरकार ने नेशनल कूलिंग एक्शन प्लान को मार्च 2019 में लागू किया । इस प्लान के अंतर्गत भारत में आने वाले 20 सालों में सभी क्षेत्रों में में शीतलता से संबंधित आवश्यकताओं से जुड़ी मांग तथा ऊर्जा आवश्यकता का आकलन करना और इसे बेहतर बनाना है । यह इस तरीके का पहला प्लान होगा जिसके तहत सरकार 2037-38 तक 20% से 25% क्षेत्रों में कूलिंग की मांग को कम करने की कोशिश करेगी।