Home > DNS

Blog / 03 Feb 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) पॉलीक्रैक तकनीक - कचरे से पैदा होगी ऊर्जा (Polycrack Technology : Harnessing Energy From Garbage)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) पॉलीक्रैक तकनीक - कचरे से पैदा होगी ऊर्जा (Polycrack Technology : Harnessing Energy From Garbage)


हाल ही में भारतीय रेलवे ने कचरे से ऊर्जा उत्पादन करने वाली प्रथम सरकारी संयंत्र की स्थापना की है। इस अत्याधुनिक संयंत्र को ईस्ट कोस्ट रेलवे के भुवनेश्वर में स्थित मानचेस्वर कैरिज रिपेयर वर्कशॉप स्थापित किया गया है।

इस संयंत्र में कचरे से ऊर्जा का उत्पादन पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी द्वारा किया जाएगा। पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी कचरे से ऊर्जा उत्पादन करने वाली दुनिया की प्रथम पेटेंटकृत विषम उत्प्रेरक प्रक्रिया है। इस प्रौद्योगिकी के तहत विभिन्न प्रकार के कचरे को हाइड्रोकार्बन तरल ईंधन, गैस, कार्बन और पानी में बदल दिया जाता है। इस संयंत्र में सभी प्रकार के प्लास्टिक, पेट्रोलियम, घरेलू अवशिष्ट, नगरपालिका के ठोस अवशिष्ट, ई कचरा ऑटोमोबाइल कचरा, जैविक कचरा समेत जेट्रोफा के फल तक डाले जा सकते हैं।

पॉलीक्रैक संयंत्र में ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया एक बंद लूप सिस्टम में होती है। या दूसरे शब्दों में कहें तो एक बंद परिवेश में ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। इस प्रक्रिया में वायुमंडल में किसी भी तरह के खतरनाक प्रदूषक का उत्सर्जन नहीं होता। इस पूरे सिस्टम को उर्जा प्रदान करने के लिए ज्वलनशील गैर-संघनित गैसों का प्रयोग किया जाता है। गैसीय ईंधन के दहन से निकलने वाला उत्सर्जन पर्यावरणीय मानकों के दृष्टिकोण से काफी कम होता है। इस प्रक्रिया से हल्के डीजल( लाइट डीजल) तेल के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होता है जिसका प्रयोग भट्टियां को जलाने में किया जाता है।

अगर हम देखें तो आज अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन की कई तकनीकों का विकास किया गया है जो पहले से अधिक स्वच्छ और अधिक किफायती ऊर्जा उत्पादन के लिये अपशिष्ट का प्रसंस्करण करती हैं। इन तकनीकों में शामिल हैं लैंडफिल गैस अवशोषण, थर्मल पाइरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण। पुराने अपशिष्ट भट्ठी संयंत्र जोकि अत्यधिक मात्रा में प्रदूषकों का उत्सर्जन करते थे वही थर्मल पाइरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण जैसी नई प्रौद्योगिकियों ने उत्सर्जन से होने वाली प्रदूषण की चिन्ता को काफी कम कर दिया है। नीति आयोग के द्वारा थर्मल पाइरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण प्रौद्योगिकियों के लाभ व लागत के आनुपातिक मूल्यांकन भी किया गया है।

अगर हम लैंडफिल गैस अवशोषण, थर्मल पाइरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण प्रौद्योगिकियों की पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी से करते हैं तो पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी अन्य उपलब्ध प्रौद्योगिकियों से निम्न मायनों में अलग हो जाती है -

  • कचरे को अलग-अलग करने की जरूरत नहीं है, इसे जैसा इकट्ठा किया गया है वैसे ही सीधे पॉलीक्रैक में डाला जा सकता है।
  • इसमें कचरे को सुखाने की आवश्यकता नहीं है।
  • कचरे को 24 घंटे के भीतर प्रसंस्कृत किया जाता है।
  • इस प्रौद्योगिकी में दहन का कार्य बंद परिवेश में होता है जिसे काम करने का वातावरण धूल रहित होता है।
  • संयंत्र के आसपास वायु की गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है।
  • कचरे का जैविक अपघटन नहीं किया जाता है क्योंकि कचरे को जिस रूप में लाया जाता है उसी रूप में उसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • इस संयंत्र का आकर छोटा होता है इसलिए प्रसंस्करण की पारंपरिक विधि की तुलना में संयंत्र को स्थापित करने के लिए कम जगह की जरूरत होती है।
  • कचरे के सभी घटक मूल्यवान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे यह शून्यअपशिष्ट प्रक्रिया बन जाती है।
  • इस प्रक्रिया से उत्पन्न गैस का उपयोग संयंत्र को ऊर्जा प्रदान करने के लिए पुनः प्रयोग किया जाता है जिससे परिचालन लागत में भी कमी आती है।
  • प्रक्रिया के दौरान परंपरागत तरीकों के विपरीत कोई वायुमंडलीय उत्सर्जन नहीं होता है। सिर्फ गैसों के जलने की स्थिति में प्रदूषक निकलते हैं जो दुनिया भर में निर्धारित मानदंडों से कम होते हैं।
  • अन्य विकल्पों की तुलना में इस प्रक्रिया में कम तापमान की आवश्यकता होती है लगभग 450 डिग्री के आसपास।
  • अत्याधुनिक सुरक्षा सुविधाओं से युक्त इस संयंत्र को अकुशल लोग भी संचालित कर सकते हैं।
  • मशीन की पूंजी लागत और परिचालन लागत काफी कम है।
  • पूरी तरह से स्वचालित मशीन के लिए न्यूनतम श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार देखा जाए तो पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी एक नवीनतम एवं कुशल प्रौद्योगिकी है। इससे न केवल ऊर्जा की प्राप्ति की जा सकती है बल्कि अवशिष्ट प्रबंधन में भी यह तकनीक महती भूमिका निभाएगी। भारत को बढ़ते नगरीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण भविष्य में ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ेगा तो वहीं दूसरी ओर अवशिष्ट प्रबंधन भी एक विकराल समस्या होगी। ऐसे में देखा जाए तो पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी इन समस्याओं के समाधान हेतु एक उपयुक्त विकल्प प्रदान करती है।