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Blog / 13 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मंकी फीवर (Monkey Fever)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मंकी फीवर (Monkey Fever)



कर्नाटका के सागर में हाल ही में क्यसानुर वन रोग या kfd के अध्ययन के लिए एक शोध संस्थान बनाने के मसौदे पर सहमति व्यक्त की गयी ।

राज्य सरकार ने पहले ही इस तरह के केंद्र को बंनाने के लिए 15 करोड़ रुआपये की धनराशि दे दी है । क्यसानुर वन रोग या प्रचलित भाषा में कहें तो मंकी फीवर क्या है और ये कैसे फैलता है इसी पर बात करेंगे आज के पाने DNS में

हिंदुस्तान में पिछले कुछ सालों से नई-नई बीमारियों ने लोगों को बहुत ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया है। बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, निपाह, ZIKA वायरस और भी न जाने क्या-क्या है जिससे आए दिन भारतीयों को बचना पड़ता है। कुछ खास राज्यों में इसकी मार ज्यादा है। जैसे दिल्ली में स्वाइन फ्लू और डेंगू, राजस्थान में जीका वायरस, केरल में निपाह आदि। अब केरल और कर्नाटक में एक और बीमारी ने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया है। ये बीमारी है Kyasanur Forest Disease (KFD)। कर्नाटक (शिमोगा) से जन्मी ये बीमारी मंकी फीवर भी कही जाती है। ये कोई नयी बीमारी नहीं है लेकिन एक बार फिर से हाल के सालों में इस बीमारी ने लोगों में दशहत पैदा कर रखी है

क्या है ये Monkey Fever?

जापानी इंसेफलाइटिस की तरह ही क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज है। इसमें तेज बुखार के साथ जोड़ों और पूरे शरीर में दर्द रहता है। आंख व गले पर भी इस बीमारी के चलते बुरा असर पड़ता है। अनुभवी डॉक्टर बताते हैं कि कर्नाटक के जंगलों में पेड़ों की पत्तियों से क्यासानूर पनपता है। यह वायरस बंदरों के माध्यम से सबसे पहले इंसानों तक पहुंचा । गर्मियों में इस वायरस का खतरा ज्यादा रहता है। केरल और कर्नाटक में इस वायरस का असर सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है।

ये असल में वेक्टर बॉर्न डिसीज है। आम तौर पर छोटे पिस्सू इस रोग को फैलाते हैं क्योंकि ये पिस्सू पहले बंदरों को अपना शिकार बनाते हैं और बीमार, इन्फेक्टेड या मरे हुए बंदर के पास आने से इंसानों इस बीमारी से ग्रसित हो जाते है।

साल 1957 में इस बीमारी का सबसे पहले पता चला था । क्योंकि कर्नाटक में जंगलों में क्यासानूर वायरस का पता चला था और उससे बंदरों की बड़ी संख्या में मौत हो रही थी इसलिए इसे क्यारानूर फॉरेस्ट डिसीज या मंकी फीवर कहा गया।

2016 में मंकी फीवर के कई केस सामने आए थे जहां कुछ लोगों की मौत भी हुई थी। कर्नाटक, गोवा, केरल से आने-जाने वाले यात्रियों को सावधानी बरतने को कहा गया था। इस बीमारी के बारे में ये बात थोड़ी राहत देती है कि निपाह या स्वाइन फ्लू की तरह इस वायरस का संक्रमण एक इंसान से दुसरे इंसान में नहीं होता । साथ ही, इसका असर मवेशियों पर भी होता है, लेकिन उनसे भी ये बीमारी किसी और को नहीं फैलती है। ये एक जानलेवा बीमारी है। हर साल तकरीबन 20-40 लोगों की मौत मंकी फीवर से होती है। इसके अलावा हर साल करीब 300-400 मरीज ऐसे होते हैं जिनमे ये वायरस पाया जाता है।

इंजेक्शन तो तैयार लेकिन मरीज परेशान

KFD से लोहा लेने के लिए मेडिकल डिपार्टमेंट तैयार हैं। बॉर्डर पर और जंगलों के पास के गावों में वैक्सीन दी जा रही हैं , लेकिन एक मेडिकल ऑफिसर के मुताबिक़ लोग ये वैक्सीन लेने को तैयार ही नहीं हैं। हालांकि, उन्हें जंगलों में जाने से पहले क्या-क्या करना चाहिए इसके लिए चेतावनी दे दी गई है।

दरअसल में इस वैक्सीन को 1960 के दशक में ही बना लिया गया था लेकिन इसके बाद इसमें कुछ ख़ास बदलाव नहीं किये गए हैं । 2006-11 के बीच किये गए अध्ययनों और नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के मुताबिक़ इस वैक्सीन में बदलाव किये जाने की ज़रुरत है।

ये वैक्सीन भी सिर्फ 7 से 65 साल के मरीजों पर ही असरदार है हालांकि इस एज ग्रुप के बाहर भी कई लोग मंकी फीवर का शिकार होते हैं। मंकी फीवर ज्यादातर गरीब तब्के को होता है जिन्हें रोज़ाना खेतों या जंगलों में जाना पड़ता है।

केरल के वायनाड में सबसे पहला केस 2013 में हुआ था। इससे पहले केरल इस बीमारी से अछूता था। सबसे खतरनाक हालत 2015 में हुई थी जब 102 लोग अकेले इस जिले में मंकी फीवर से परेशान थे और उनमें से 11 की मौत हो गई थी। कई लगभग मरने की कगार पर पहुंच गए थे। 2016 में भी 9 केस आए थे, लेकिन 2017 और 2018 में इस बीमारी का कोई केस नहीं आया था।

कर्नाटक में शिमोगा और केरल में वायनाड और मल्लापुरम में ये बीमारी अक्सर पहुंच जाती है। पर अगर इस साल की शुरुआत में ही इस बीमारी का पता चल गया है तो ये डर बना हुआ है कि कहीं इस साल ये और विकराल रूप न ले ले। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट भी अपने स्तर पर जंगलों में जांच में जुट गया है। अगर आप इस इलाके से हैं और जंगलों के आस-पास आते-जाते रहते हैं तो खुद को कीड़ों से बचाने के लिए लोशन या दवाओं का इस्तेमाल करें, साथ ही बंदरों से थोड़ा दूर रहें। साथ ही, अगर ऐसे लक्ष्ण दिख रहे हैं तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें।