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Blog / 27 Aug 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) लिटिल सन - आईटीईआर प्रोजेक्ट (Little Sun - ITER Project)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) लिटिल सन - आईटीईआर प्रोजेक्ट (Little Sun - ITER Project)


मुख्य बिंदु:

बीते दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी फ़्रांस यात्रा पर थे। इस दौरान वो फ़्रांस में तैयार हो रहे मानव निर्मित 'लिटिल सन' को देखने गए। 20 अरब डॉलर से ज्यादा की लागत से बन रहे इस छोटे सूरज को बनाने में दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक शामिल हैं। कई भारतीय वैज्ञानिकों के अलावा कुल क़रीब 100 भारतीय भी फ़्रांस में लिटिल सन को लेकर चल रहे प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। साथ ही भारत सरकार इस मेगा प्रोजेक्ट में लगभग साढ़े सत्रह हज़ार करोड़ रुपए का आर्थिक सहयोग भी कर रही है।

DNS में आज हम आपको फ़्रांस में बन रहे लिटिल सन - आईटीईआर प्रोजेक्ट के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ और भी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक धरती पर भी एक छोटा सूर्य बनाने की कवायद में जुटे हैं। बताया जा रहा है कि ये प्रोजेक्ट पृथ्वी का अब तक सबसे महंगा वैज्ञानिक प्रोजेक्ट है। अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, और भारत के अलावा यूरोपीय संघ जैसे देश इस प्रोजेक्ट को संयुक्त रूप से तैयार कर रहे हैं। फ्रांस के सुदूर क्षेत्र में चल रहे इस प्रोजेक्ट का मक़सद सूरज के असल ऊर्जा के स्त्रोतों का पता लगाना है। वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट के तहत इस शोध में जुटे हैं कि क्या हाइड्रोजन के दो अणुओं के मेल से निकलने वाली भारी ऊर्जा को क़ाबू कर इसका प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। साथ ही इस प्रोजेक्ट में सफलता मिलने के बाद दुनिया भर को असीमित स्वच्छ ऊर्जा मिल सकेगी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक़ फ़्रांस के जिस क्षेत्र में इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है वो जगह हमारे हिसाब से दुनिया की सबसे ठंडी जगह है। लेकिन आने वाले वक़्त में ये स्थान दुनिया का सबसे गर्म स्थान होगा क्योंकि अगर हम इस प्रोजेक्ट में सफल होते हैं तो इसका तापमान 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस हो जाएगा, जो सूरज के तापमान से भी दस गुना ज्यादा है।

क्या है आईटीईआर प्रोजेक्ट?

लिटिल सन को बनाने को लेकर चल रहे इस प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटरल रिएक्टर यानी ITER कहा जाता है। ITER प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2013 में फ्रांस के कराहाश में की गई थी जिसके लिए सभी सदस्य देशों ने इसके निर्माण में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई थी। साथ ही इसके सदस्य देशों ने इसके रिएक्टर के लिए उपकरणों का भी निर्माण किया था। इसी क्रम में भारत को भी रिएक्टर के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण उपकरण के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी। भारत ने ITER के लिए 'क्रायोस्टेट' यानी एक तरीके का रेफ्रिजरेटर तैयार किया है। भारत द्वारा तैयार किए गए इस क्रायोस्टेट उपकरण में ही रिएक्टर को रखा जायेगा।

इस उपकरण के बारे में और बताएं तो ये सिलेंडर के आकार का एक मशीनी ढांचा है जो रिएक्टर के तापमान को नियंत्रित करेगा। इस उपकरण को गुजरात में लार्सन एंड टूब्रो द्वारा तैयार किया गया है जिसका वजन लगभग 3,800 टन है। इसके अलावा इसकी ऊंचाई भी कुतुब मीनार की ऊंचाई के लगभग आधी है।

वैज्ञानिकों का दवा है कि भारत ने इस प्रोजेक्ट के लिए शायद दुनिया का सबसे बड़ा रेफ्रिजरेटर यानी क्रायोस्टेट ITER को उपलब्ध कराया है। साथ ही भारत इस प्रोजेक्ट का महत्वपूर्ण साझेदार देश है जिसने इस प्रोजेक्ट में कई अहम उपकरण तैयार किए हैं। इस तरह से फ़्रांस में चल रहे इस अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर प्रोजेक्ट में भारत दवरा बनाए गए उपकरणों पर मेड इन इंडिया की छाप साफ़ तौर से नजर आ रही है।

दरअसल परमाणु ऊर्जा दो तरह से हांसिल की जा सकती है। इनमें परमाणु के नाभिकों का विखंडन और परमाणु के नाभिकों के संलयन यानी एकीकरण जैसे तरीके शामिल हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि परमाणु नाभिकों के संलयन द्वारा ऊर्जा उत्पादन का ये नया और क्रांतिकारी तरीका पूरी दुनिया को परमाणु ऊर्जा के दुष्प्रभावों से बचाने में मददगार होगा। क्यूंकि आज दुनिया में जितने भी परमाणु रिएक्टर मौजूद हैं इनसे कभी भी परमाणु दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा इन रिएक्टरों से निकलने वाला परमाणु कचरा भी एक बड़ी मुसीबत है क्यूंकि परमाणु कचरों के ज़रिए सैकड़ों सालों तक जहरीला विकिरण निकलता रहता है। जिसके निपटारे के लिए दुनिया के किसी भी देश के पास कोई व्यवस्था नहीं है। हालाँकि अब परमाणु संलयन तकनीक के आधार पर बन रहे ये परमाणु रिएक्टर सुरक्षित होंगे और उनसे कोई ऐसा परमाणु कचरा भी नहीं निकलेगा जिसका निपटारा न हो सके।

जानकारों का कहना है कि ये प्रोजेक्ट साल 2025 से काम करना शुरू कर देगा जो प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही इसके बाद 2040 तक एक डेमो रिएक्टर भी तैयार किया जाना प्रस्तावित है जो बिजली पैदा करने की बड़ी यूनिट होगी। इसके अलावा विशेषज्ञ इसे भारत के लिहाज से भी काफी अहम मान रहे हैं। भारत इस प्रोजेक्ट होने के नाते साल 2050 तक परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित अपना रिएक्टर भी बना पाएगा।