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Blog / 06 Aug 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सीसे के जहर में घुलता बचपन (Lead Poisoning : Suffering Children)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) सीसे के जहर में घुलता बचपन (Lead Poisoning : Suffering Children)



सीसा आम तौर पर बड़ी मात्रा में लेड स्टोरेज बैटरियों में इस्तेमाल किया जाता है।लेड स्टोरेज बैटरियों को लेड एसिड बैटरियों के नाम से भी जाना जाता है। ये बैटरियां ज़्यादातर इसलिए इस्तेमाल की जाती हैं क्यूंही इनमे बड़े पैमाने पर आवेश इकठ्ठा हो सकता है और ये काम समय के लिए काफी उच्च धरा पैदा कर सकती हैं। इन बैटरियों को फिर से चार्ज किया जा सकता है इसीलिये इनका इस्तेमाल कारों में और अन्य गाड़ियों में किया जाता है। इस बैटरी के वैसे तो कई फायदे है लेकिन आज हम इसके फायदे नहीं बलही इससे होने वाले नुक्सान के बारे में बात करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के तकरीबन तीन चौथाई बच्चों को सीसा (Lead) धातु जैसे जहर के साथ जीना पड़ता है । बच्चों की बड़ी तादाद में सीसा धातु के असर की वजह वो लापरवाही है जो एसिड बैटरियों के निस्‍तारण को लेकर बरती जाती है । इसी लापरवाही के मद्देनज़र यूनिसेफ जैसी संस्था ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की है।

आज के DNS में जानेंगे सीसे से फैलते इस ज़हर के बारे में और यूनिसेफ की उस रिपोर्ट के बारे में जिसने इस समस्या की और सबका ध्यान खींचने की कोशिश की है

दरअसल में यूनिसेफ ने प्‍योर अर्थ नाम की एक संस्था के साथ मिलकर ये रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट का शीर्षक है " The Toxic Truth: Children’s exposure to lead pollution undermines a generation of पोटेंशियल"। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया भर के करीब 80 करोड़ बच्चों के खून में जहरीली सीसा धातु का स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे भी ज्‍यादा है। यानि इस रिपोर्ट के हिसाब से दुनिया का हर तीसरा बच्चा इस ज़हर के साथ जी रहा है । इस रिपोर्ट की दूसरी सबसे बड़ी चौंकानें वाली बात ये भी है कि इस जहर का मजबूरन सेवन करने वाले आधे बच्‍चे दक्षिण एशियाई देशों में रहते हैं। हालांकि खून में सीसा धातु की इतनी मात्रा पाए जाने पर चिकित्स्कीय उपचार की दरकार होती है।

हालांकि सीसा धातु को बिना जोखिम के ही सुरक्षित तरीके से री-सायकिल किया जा सकता है। इसके अलावा ज़्यादातर वैसे लोगों में सीसे के कण पाए जाते हैं जिन्हे इसके नुकसान के बारे में जानकारी ही नहीं होती ।इसीलिए सीसे के अनुप्रयोग और इसके नुकसानों के मैसेनजर उनमे जागरूकता पैदा करने की ज़रुरत है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि प्रभावित देशों की सरकारें सीसा धातु की मौजूदगी की निगरानी रखने और उसकी जानकारी मुहैया कराने की प्रणालियां विकसित करने के लिये एकजुट रुख अपनाएं। इसके अलावा रोकथाम व नियंत्रण के उपाय लागू करें।

यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फोर के मुताबिक खून में सीसा धातु की मौजूदगी के शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं और ये धातु खामोशी के साथ बच्चों के स्वास्थ और विकास पर गहरा असर डालती है । उनके मुताबिक इसके घातक असर देखे जा सकते हैं । इस रिपोर्ट में बच्चों के सीसा धातु की चपेट में आने का पूरा विश्लेषण मौजूद है। इसके विश्लेषण का पूरा श्रेय स्वास्थ्य मैट्रिक्स मूल्यांकन संस्थान को जाता है।

बांग्‍लादेश के कठोगोरा, जियार्जिया का तिबलिसी, घाना का अगबोगब्लोशी, इंडोनेशिया का पेसारियान और मैक्सिको के मोरोलॉस प्रांत का इस रिपोर्ट में गहन मूल्याङ्कन किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक़ सीसा धातु एक न्यूरोटोक्सिन है जिससे बच्चें के मस्तिष्क को ऐसा नुक्सान होता है जो लाइलाज है। सीसा धातु का असर 5 साल से कम उम्र के बच्चों और नैज़ात शिशुओं पर काफी ज़्यादा होता है। वयस्कों में इस धातु के असर से मनोवैज्ञानिक विकार पैदा हो जाते हैं जिससे वे अपराध और गैर कानूनी गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं।

ऐसा नहीं है की महज़ लेड बैटरियां ही सीसे से होने वाले नुकसानों के लिए अकेली ज़िम्मेदार हैं। बच्चों में सीसा कई और भी स्त्रोतं से आ सकता है। सीसे के दुसरे ज़रियों में पानी ,खदान जैसे सक्रिय उद्योग, सीसा युक्त पेंट और पिगमेंट व सीसा युक्त गैसोलान भी शामिल हैं। खाद्य पदार्थों की धातु बोतलें, मसालों, सौंदर्य उत्पादों, आयुर्वेदिक दवाओं, खिलौनों और अन्य उपभोक्ता उत्पादों भी सीसा फैलाने के अहम् कारण हैं । जो लोग इन क्षेत्रों में काम करते हैं इस घातु के कण उनके शरीर और कपड़ों से चिपटकर उनके घर और फिर बच्‍चों तक पहुंच जाते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक़ ज़्यादातर देशों में बढ़ती बैटरियों के कचरे के निस्तारण या रीसाइक्लिंग की कोई व्यवस्था नहीं है जिसकी वजह से इनसे निकलने वाला सीसा बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा बढ़ते वाहन भी इसकी एक वजह हैं जिसकी वजह से वातावरण में सीसा जैसे प्रदूषक बढ़ते ही जा रहे हैं। इसके निवारण के लिए देश की सरकारों को कुछ पुख्ता कदम उठाने की ज़रुरत है।