Home > DNS

Blog / 04 Jun 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) खालिस्तान आंदोलन (Khalistan Movement)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) खालिस्तान आंदोलन (Khalistan Movement)



आतंकवाद का नाम ज़ेहन में आते ही तस्वीर उभरती है डरे सहमे दहशत में जी रहे लोगों की , अंधाधुन गोलियां बरसाते दशहतगर्दों की , अनगिनत बिखरे शवों की और मासूम सिसकियों की जिनके सर से उनके अपनों का साया उठ गया है . लेकिन आज जिस आतंक का ज़िक्र हम करने जा रहे हैं वो किसी जिहाद का हिस्सा नहीं न ही किसी ज़मीन और ज़मींदारों के खिलाफ उपजा आतंकवाद है .ये आतंकवाद है एक अलग और आज़ाद मुल्क की मांग को लेकर जिसे खालिस्तान नाम दिया गया . खालिस का मतलब है शुद्ध जिसमे कोई मिलावट न हो. खालिस्तान आंदोलन ही था जिसकी वजह से पवित्र स्वर्ण मंदिर सेना का अखाड़ा बन गया , हरमंदिर साहेब जैसी पाक जगह गुरबाणी की जगह गोलियों की आवाज़ ने ले ली , कई मासूमों का लहू बहा और भारत के एक प्रधानमंत्री को उनके ही अंगरक्षकों ने गोलियों से भून दिया.

आज के डंस में हम जानेंगे क्या था खालिस्तान आंदोलन क्यों उपजा ये आंदोलन और आज भी इसकी गूंज क्यों सुनायी देती है

खालिस्तान आंदोलन की जड़ें काफी गहरी हैं . साल १९७३. में ‘आनंदपुर साहिब प्रस्ताव’ नाम से एक प्रस्ताव पास किया गया. पंजाब और पंजाबी में इसे अनंदपुर मता कहते हैं. इस प्रस्ताव में केंद्र को विदेश मामलों, मुद्रा, रक्षा और संचार समेत सिर्फ पांच दायित्व अपने पास रखते हुए बाकी सारे अधिकार राज्य को देने और पंजाब को एक स्वायत्त राज्य के रूप में स्वीकारने की बातें कही गईं. अक्टूबर, 1978 में पहले आनंदपुर प्रस्ताव की तरह दूसरा प्रस्ताव पास किया गया. इसे ख़ालिस्तान की मांग की शुरुआत माना जाता है.

इसी बीच सिखों और निरंकारी समुदाय में भिड़ंत चल रही थी. कई हिंसक घटनाएं हुईं और साल 1980 में हुए एक क़ातिलाना हमले में निरंकारी पंथ के मुखी गुरबचन सिंह की मौत हो गई. पंजाब के माहौल में और ज़हर घुल गया. साल आया 1981. मार्च के महीने में सिखों के पांच तख़्तों में से एक और खालसा पंथ के जन्मस्थान आनंदपुर साहिब में खालिस्तान का परचम लहराया गया. इस दौरान जरनैल सिंह भिंडरांवाले का कद बढ़ता जा रहा था. जुलाई, 1982 में वो दरबार साहिब यानी स्वर्ण मंदिर में रहने लगा

फिर हत्याओं का सिलसिला चला. प्लेन हाइजैक हुए. पुलिस के बड़े अधिकारियों की, पंजाब के बड़े बुद्धिजीवियों की हत्याएं हुईं. अक्टूबर, 1983 में पंजाब की सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया गया. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. फिर 1984 का ब्लू स्टार ऑपरेशन. सिखों के सबसे पवित्र स्थान पर सेना की कार्रवाई. भिंडरांवाले समेत खालिस्तान के कई चेहरे इस कार्रवाई में मारे गए. खालिस्तान समर्थकों की नज़र में भिंडरांवाले को शहीद का दर्जा मिला. 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. मारने वाले थे उनके दो सिख सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह और सतवंत सिंह . फिर सिख विरोधी दंगे हुए. देश के कई कोनों में हज़ारों की संख्या में सिखों पर हमले हुए.

1984 के बाद उधर पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट को लोगों का ख़ासा समर्थन मिल रहा था. 1985 में अकाली दल की सरकार बनी. 1986 से लेकर 1989 तक खालिस्तान मूवमेंट अपने चरम पर थी. ऐसा माना जाता है कि उस वक्त पंजाब में 1000 से ज्यादा हथियारबंद नौजवान थे, जो खालिस्तान हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे. लेकिन बंटे हुए थे. क़रीब 25 संगठनों (छोटे ग्रुप्स में) में. बब्बर खालसा, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स, खालिस्तान कमांडो फोर्स, ये सभी नाम रोज़ सुर्खियों में रहते थे.

इस दौरान कई ऐसे मामले सामने आए जो दहशत की बानगी पेश करते हैं. लुधियाना में हुई मशहूर डकैती और आए दिन बसों को रोककर होने वाली मारकाट. सब इस दौर की बात है. 1990 के बाद खालिस्तान के लिए चल रहा सशस्त्र विद्रोह धीमा पड़ रहा था. इन हथियारबंद लड़ाकों की बर्बरता भी इसका एक कारण थी. साल 1992 में बब्बर खालसा का चेहरा सुखदेव बब्बर एक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. इसके बाद पुलिस की ओर से लगभग ऐलान कर दिया गया कि पंजाब से आतंकवाद खत्म हो गया है. छिटपुट घटनाएं 1994 तक चलती रहीं, लेकिन उसके बाद कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया.

आज के हालात

अब आज की बात कर लेते हैं. कई बार तस्वीरें आती हैं जिसमें सिख समुदाय के लोग खालिस्तान की मांग करते दिखते हैं. भारत में ये तस्वीर कम ही दिखती है. हां, विदेश में भारत सरकार के किसी भी कार्यक्रम में ये तस्वीरे आम हैं. रेफरेंडम 2020 तो आपने सुना ही होगा. सिख समुदाय के कुछ संगठन हैं जो 2020 में जनमत संग्रह कराने की मांग करते हैं. जनमत इस बात पर कि क्या पंजाब अलग मुल्क होना चाहिए या नहीं. ये मांग विदेशों में रह रहे सिख समुदाय के लोग करते हैं. इन्हीं पर आरोप लगते हैं कि ये पाकिस्तान के रास्ते भारत में हथियारबंद मुहिम चलाना चाहते हैं. धमाकों और बयानबाज़ी से चर्चा में रहना चाहते हैं. हालांकि जानकारों के मुताबिक, भारत में ऐसे लोग नहीं बचे हैं जो किसी भी तरह की हथियारबंद मुहिम में शामिल हों. छिटपुट लोग हो सकते हैं लेकिन कोई संगठन मौजूदा वक्त में ऐसी मांग कर रहा हो, ऐसा नहीं है

लेकिन खालिस्तान आंदोलन की गूँज अभी भी पंजाब में सुनायी पड़ जाती है . इस आंदोलन में कई नौजवान सिखों ने अपनी जानें गवाईं , कई घर तबाह हुए, कई औरतें बेवा हुई और कई मज़लूमों पर ज़ुल्म भी हुए. आंदोलन के नाम पर पंजाब में बेतहाशा एनकाउंटर हुए मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी सामने आये .खालिस्तान तो नहीं बना लेकिन फाइलें ज़रूर बनी जो अब तक धूल खा रही हैं कोर्ट में इन्साफ के लिए