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Blog / 18 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (Interstate Water Dispute)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (Interstate Water Dispute)


मुख्य बिंदु:

भारत में कुल 29 राज्य है । इन राज्यों का बंटवारा ज़मीन पर सीमाओं को खींच कर किया गया है । धरती पर सीमा खींच कर उसका बंटवारा किया जा सकता है परन्तु धरती पर बहने वाली नदियों को न तो रोका जा सकता है और न ही किसी सीमा से बाँधा जा सकता है । ऐसे में जो नदियां एक से ज्यादा राज्यों से होकर बहती है उनके पानी के हक़ को लेकर राज्यों में विवाद होना स्वभावी है । भारत में ऐसे कई राज्य है जो नदियों के हक़ को लेकर पडोसी राज्यों से उलझते रहते है । इस तरह के विवादों को सुलझाने अथवा रोकने के लिए भारतीय संबिधान में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 का गठन किया गया है ।केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम संशोधन 2019 को मंजूरी दे दी है जिस से अंतरराज्यीय नदी जल विवादों को जल्द से जल्द सुलझाया जा सकेगा।

आज के DNS में बात करेंगे अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम की और जानेंगे इस से जुड़े कुछ अहम पहलुओं को।

भारतीय सम्भिधान के आर्टिकल 262 के तहत अंतरराज्यीय नदी जल विवाद को सुलझाने के लिए 2 अधिनियम बनाये गए थे

1-नदी बोर्ड अधिनियम 1956 और
2-अंतरराज्जीय नदी जल अधिनियम 1956

नदी बोर्ड अधिनियम पर बनने के बाद से कोई अमल नहीं किया गया और न ही इस प्रकार का कोई भी बोर्ड बनाया गया।

तो वहीँ अंतरराज्जीय नदी जल विवाद अधिनियम के तहत अगर कोई राज्य केंद्र के पास किसी नदी से जुड़े जल विवाद की शिकायत को लेकर जाता है। तो केंद्र सरकार विवाद को सुलझाने के लिए सम्बंधित राज्यों के बीच मध्यस्थता की कोशिश करती है। अगर इसके वावजूद विवाद नहीं सुलझता है तो केंद्र सरकार एक न्यायाधिकरण का गठन करती है जो विवाद को सुलझाता है। इस न्यायाधिकरण का गठन भारत के मुख्यन्यायाधीष करते हैं जिसमें 3 न्याययधीश शामिल होते हैं । इस न्यायाधिकरण का फैसला सर्वोपरि होता है सुप्रीम कोर्ट भी इसके फैसले को चुनौती नहीं दे सकता । हालांकि इन न्यायाधिकरण के गठन और इनके द्वारा दिए जाने वाले फैसलों में होने वाली देरी की वजह से इन पर सवाल खड़े होते रहे हैं।

गोदावरी नदी के मामले में विवाद को सुलझाने की अपील 1962 में की गयी जिसके तहत 1968 में न्यायाधिकरण का गठन किया गया और फैसला 1979 में सुनाया गया जिसको सरकारी राजपत्र में 1980 में लिखा गया । इसी तरह कावेरी नदी के विवाद को सुलझाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने न्यायाधिकरण के निर्माण की अपील 1970 में की जो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 20 साल बाद 1990 में बनाया गया ।

इस प्रकार की समस्याओं के चलते सरकारिया कमीशन ने साल 2002 में इस अधिनियम में ज़रूरी बदलाव करने की सिफारिश की। सरकारिया कमीशन द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार अगर कोई राज्य जल विवाद की शिकायत लेकर राज्य के पास आता है तो राज्य सरकार को न्यायाधिकरण का गठन 1 साल के अंदर करना होगा । न्यायाधिकरण को विवाद को सुलझाने के लिए 5 साल की समय सीमा दे जाएगी जिसको विशेष परिस्थितियों में सरकार की सहमति के बाद ही बढ़ाया जा सकेगा ।नदियों से जुडी ज़रूरी जानकारी को एक जगह रखने के लिए एक डाटा बैंक का निर्माण करना होगा । न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले जितनी मान्यता मिलेगी ताकि इसे जल्दी अमल में लाया जा सके ।सरकारिया कमीशन द्वारा दिए गए सुझावों के बाद भी इस बिल में कई दिक्कतें मौजूद रहीं । हालांकि न्यायाधिकरण के फैसले को अंतिम फैसला माना जाता है पर आर्टिकल 136 (special leave petition) के तहत सम्बंधित पार्टी सुप्रीम कोर्ट की मदद ले सकती है । साथ ही कोई आम आदमी भी आर्टिकल 21 (राइट तो लाइफ ) का हवाला देकर इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

इसी सिलसिले में साल 2017 में भी एक संशोधन अधिनियम पेश किया गया । इस संशोधन की सिफारिशों के मुताबिक सरकार एक विवाद समाधान समिति का निर्माण करेगी जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होने चाहिए । विवाद को सुलझाने के लिए समिति को 1 साल का वक़्त मिलना चाहिए अगर इस दौरान विवाद नहीं सुलझता है तो ही न्यायाधिकरण का निर्माण होना चाहिए ।गठन के 3 साल के अंदर न्यायाधिकरण को विवाद पर फैसला देना होगा केवल विशेष परिस्थितियों में इसको बढाकर 5 साल किया जा सकता है । हालांकि यह बिल पारित नहीं हो सका।

भारत में कई ऐसी नदिया है जिनके जल को लेकर कई राज्यों में विवाद है इनमें से कुछ मुख्य नदिया व राज्य निम्न है

  • रवि एवं ब्यास नदी को लेकर पंजाब , हरयाणा और राजस्थान में विवाद है।
  • नर्मदा नदी के जल के लिए मध्य प्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र और राजस्थान में विवाद है
  • कृष्णा नदी के जल के लिए महाराष्ट्र ,आंध्र प्रदेश ,कर्नाटक और तेलंगाना में विवाद है
  • कावेरी नदी के लिए केरला ,कर्नाटक ,तमिलनाडु ,और पुडुचेर्री में विवाद है
  • गोदावरी के जल को लेकर महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश ,कर्नाटक ,मध्य प्रदेश और ओडिशा में विवाद है।
  • महानदी को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा में विवाद है
  • पेरियार नदी को लेकर तमिलनाडु और केरला में विवाद है और
  • महदायी को लेकर गोवा , महाराष्ट्र , और कर्नाटक में विवाद है

इन विवादों में से कई विवादों को लेकर वर्तमान में मुकद्म्मा न्यायाधिकरण में चल रहा है जिसका फैसला आना अभी बाकी है

इन विवादों को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए नए अंतरराज्जीय नदी जल विवाद संशोधन अधिनियम को सदन में मंजूरी दे दी गयी है । इस बिल के अंतर्गत विवादों को सुलझाने के लिए एक केंद्रीय न्यायाधिकरण का गठन किया जाएगा जिसके अंतर्गत विभिन्न न्यायाधिकरण एक मुख्यालय के अंदर सुनवाई करेंगे । विवादों पर फैसला सुनाने के लिए न्याधिकरण की एक निश्चित समय सीमा तय की गई है । जिसके तहत न्यायाधिकरण को 2 साल के निश्चित समय में विवाद को सुलझाना होगा । इस मुख्या न्यायाधिकरण में 1 अध्यक्ष, 1 उपाध्यक्ष और 6 सदस्य होंगे जिनको भारत के मुख्य न्यायाधीश नामित करेंगे ।
भारत में पानी की समस्या दिन प्रति दिन बढ़ रही है हाल ही में चेन्नई, हैदराबाद , दिल्ली और बेंगलुरु समेत कई शहर पानी की किल्लत को लेकर सुर्ख़ियों में रहे थे । नदियों का गिरता जलस्तर और पानी की कमी आने वाले दिनों में नदियों के जल को लेकर होने वाले विवाद में उत्प्रेरक का काम करेंगे । ऐसे में देखना होगा की यह नया अधिनियम इन विवादों को सुलझाने में कितना कारगर साबित होगा ।