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Blog / 02 May 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Labour Day)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Labour Day)


1 मई यानी अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस। मज़दूर दिवस पिछले 132 साल से मनाया जा रहा है। ये हर साल 1 मई को मनाया जाता है। दरअसल आज ही के दिन दुनिया भर के मज़दूरों ने काम के घंटे को निर्धारित करने के लिए एक आंदोलन किया था। जिसके बाद मज़दूरों के काम करने के समय को 8 घंटे तय किया गया। DNS में आज हम आपको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के बारे में साथ ही ज़िक्र करेंगे इसके कुछ दूसरे पहलुओं की मज़दूरों के संघर्ष की कहानी को जानने के लिए आपको अमेरिका चलना होगा। 1 मई 1886 ... ये वो तारीख़ है जब अमेरिका में लाखों मज़दूरों ने एकजुट होकर काम के घंटे को कम करने को लेकर आंदोलन शुरू किया। आंदोलन की अगुवाई कर रही अमेरिकी नेशनल लेबर यूनियन काम की ज़्यादा से ज़्यादा समय सीमा आठ घंटे तय करने की मांग कर रही थी। क़रीब 11 हजार फैक्ट्रियों के लगभग 3 लाख से अधिक मज़दूर इस आंदोलन का हिस्सा थे। इस आंदोलन में कई मज़दूरों की जाने भी गईं। जिसके बाद 1889 में पेरिस में आयोजित THE इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाए जाने का फैसला लिया गया और साथ ही मज़दूरों को 8 घंटे काम करने की इजाजत दे दी गई।

अगर बात भारत की करें तो भारत में मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1923 को मद्रास में हुई थी। जिसके बाद भारत में भी हर साल 1 मई को मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। दरअसल मज़दूरों का किसी भी देश के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण स्थान होता है। वो सभी व्यक्ति जो आर्थिक कामों से जुड़े हुए होते हैं वो श्रमिक या मज़दूर कहलाते हैं। चाहे वो उच्च या निम्न किसी भी स्तर पर काम करते हो। भारत के कुल श्रम बल में क़रीब 70% पुरुषों का योगदान है। भारत के लगभग 100 व्यक्तियों में 39 श्रमिक हैं। हालाँकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़े अलग अलग हैं। शहरी क्षेत्रों में जहां 100 लोगों में 36 श्रमिक हैं तो वहीं ग्रामीण क्षेत्र में ये संख्या क़रीब 40 है। इस अंतर का कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च आय का स्तर सीमित है जिसके कारण रोज़गार बाजार में उनकी भागीदारी काफी अधिक है। जबकि शहरी क्षेत्रों में एक बड़ा तबका पढ़ाई करने में सक्षम है। जिसके कारण वो अपनी पढ़ाई के हिसाब से रोज़गार ढूंढते हैं।

कुछ दिन पहले आई अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल क़रीब 28 लाख मज़दूर अपनी जान गंवाते हैं। ILO रिपोर्ट के मुताबिक़ मारे जाने वाले मज़दूरों में 86 फीसदी मज़दूरों की मौत बीमारी के चलते होती हैं। बिमारियों की वजह से मरने वाले मज़दूरों में 31 फीसदी मौतें रक्स परिसंचरण यानी Rux circulation और 26 फीसदी मज़दूरों की मृत्यु कैंसर के चलते होती है। मौजूदा समय में मज़दूरों के लिए 8 घंटे काम करने का कानून भले ही पारित है लेकिन ज़्यादतर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों को 10 -12 घंटे काम करना होता है।