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Blog / 17 Dec 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों जरूरी है मृदा संरक्षण (Importance of Soil Conservation)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) क्यों जरूरी है मृदा संरक्षण (Importance of Soil Conservation)


हर साल 5 दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल भी 5 दिसम्बर को दुनिया भर में विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाया गया जिसकी थीम मृदा कटाव रोकें, हमारा भविष्य संवारे रही है। इस दिवस को ‘संयुक्त राष्टं के खाद्य व कृषि संगठन’ UNFAO द्वारा मनाया जाता है। मृदा दिवस को एक अंतराष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए 2002 में ‘इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉइल साइंसेज द्वारा सिफारिश की गई थी जिसके बाद में एफएओ और थाइलैण्ड ने इसका भरपूर समर्थन किया। इसके बाद दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट महासभा ने 68वीं सामान्य सभा की बैठक में पारित संकल्प के द्वारा 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का संकल्प लिया था।

DNS में आज हम जानेंगे मृदा संरक्षण के महत्व के बारे में साथ ही समझेंगे मृदा की गुणवत्ता को खराब करने वाले कारकों और इनसे पैदा होने वाली चुनौतियों के बारे में

मृदा स्वास्थ्य को मिट्टी की उस गुणवत्ता या क्षमता के रूप में जाना जाता है जो पारिस्थितिक तंत्र की जीवंतता को बनाये रखती है। मृदा का मुख्य कार्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन से संबंधित है, इसलिए स्वस्थ मृदा खाद्य स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। वास्तव में 95 प्रतिशत भोजन मिट्टी में सीधे या परोक्ष रूप से उत्पादित होता है और प्रति व्यक्ति औसत कैलोरी खपत का लगभग 80 प्रतिशत मिट्टी में उगाई जाने वाली फसलों से ही आता है। इसके अलावा, मृदा के अन्य प्रमुख कार्यों में भूमिगत जल को इकट्ठा करने में विभिन्न मृदा संस्तर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संयुक्त राष्टं खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार वायुमंडल की तुलना में मृदा तीन गुणा अधिक कार्बन धारण कर सकती है और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकती है। मृदा कई पोषक तत्त्वों जैसे नाइट्रोजन फास्फोरस, और कार्बन इत्यादि के चक्रीय प्रक्रम को पूरा करने और इनके संग्रहण में प्रमुख भूमिका निभाती है। इसके अलावा मृदा, भवनों आदि को एक मजबूत आधार भी प्रदान करती है। मृदा की उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि मृदा सिर्फ भूपर्पटी का एक हिस्सा भर नहीं है बल्कि यह मानवीय जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। साथ ही उपजाऊ मृदा का निर्माण एक दिन में नहीं होता बल्कि इसके लिए लाखों साल लगते हैं।

मृदा की गुणवत्ता को खराब करने वाले कारक

मृदा की गुणवत्ता को ख़राब करने वाले कारकों में मुख्य रूप से कीटनाशक, क्लोरिनेटेड कार्बनिक विषाक्त पदार्थ और हर्बीसाइड्स जैसे कीटनाशक मौजूद होते हैं। बता दें कि कीटनाशक, ऐसे कृत्रिम जहरीले रसायन होते हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार के कीटों या अन्य खरपतवार को मारने या नष्ट के लिए मानव, कृषि एवं अन्य गतिविधियों में उपयोग करता है। इसके अलावा क्लोरिनेटेड कार्बनिक विषाक्त पदार्थ के बारे में बताएं तो कार्बेमेट्स और ऑर्गेनोफॉस्फेट जैसे रसायनों से युक्त डीडीटी और अन्य क्लोरीनेटेड कार्बनिक पदार्थों ने मृदा को वृहद स्तर पर दूषित किया है। मृदा के द्वारा पौधों और जीवों में पहुँचकर इन पदार्थों ने स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाले हैं। दूसरी ओर हर्बीसाइड्स भी एक प्रकार के कीटनाशक होते हैं जिन्हें कृषि में खरपतवार को नष्ट करने में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, सोडियम आर्सेनाइट और सोडियम क्लोरेट आदि कीटनाशक इसमें प्रमुख रूप से शामिल हैं। हर्बीसाइड्स कुछ महीनों में अपघटित हो सकते हैं किन्तु इनका भी पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

इसके अलावा अकार्बनिक उर्वरक जैसे अकार्बनिक नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी के अम्लीकरण को बढ़ावा देकर मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपशिष्टों के गलत तरीके से निपटान के कारण बड़े स्तर पर मृदा प्रदूषण हो रहा है। साथ ही सिंचाई के अनुचित विधियों ने भी मृदा की लवणता बढ़ाकर, इसके स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। मृदा की गुणवत्ता को खराब करने वाले कुछ और कारणों को देखे तो इनमें ठोस अपशिष्ट जिनमें प्लास्टिक, डिब्बे, बैटरी और अन्य ठोस अपशिष्टों का अनुचित निपटान भी मृदा प्रदूषण की श्रेणी में आता है। इसके अलावा शहरों में भी भारी मात्र में विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों का निर्माण होता है जो मृदा को प्रदूषित करते हैं।

संयुक्त राष्टं के खाद्य एवं कृषि संगठन ने बीते दिनों मिट्टी के प्रदूषण पर कई वर्षों तक गहन अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उन कम ज्ञात स्रोतों पर भी प्रकाश डाला गया है जो सालों से मिट्टी को प्रदूषित कर रहे थे। इनमें मुख्य रूप परमाणु परीक्षण, युद्ध के अवशेष, और सड़कों पर चलने वाले जीवाश्म ईंधन जैसे- डीजल, पेट्रोल आदि से युक्त वाहनों ने भी सड़क किनारे स्थित खेतों की मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है।

मृदा की गुणवत्ता के खराब होने से क्या प्रभाव पड़ता है

मृदा की गुणवत्ता के खराब होने का सबसे पहला और सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। एफएओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मृदा प्रदूषण से मानव की तंत्रिका तंत्र से लेकर गुर्दे, यकृत और हड्डी आदि सभी नकारात्मक रूप प्रभावित हो रहे हैं। इसके आलावा इसके आर्थिक प्रभाव को समझें तो मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने से अर्थव्यवस्था को जैसे- भारी नुकसान होता है। साथ ही मृदा प्रदूषण से पशुपालन पर भी नकारात्मक असर होता है।

मृदा की गुणवत्ता के खराब होने से खाद्यान्न संकट भी पैदा हो जाता है। दरसल मृदा में उपस्थित जहरीले रसायन पौधों को विषाक्त करने के साथ-साथ उनकी उत्पादकता को भी कम कर देते हैं, इससे खाद्यान्न संकट गहराने की समस्या उत्पन्न होती है। इसके अलावा स्वस्थ मृदा में विभिन्न कवक और जीवाणु उपस्थित होते हैं और एक साथ बंधे रहते हैं लेकिन जब दूषित पदार्थ मृदा में पहुँचते हैं तो इन कवक और जीवाणुओं को धीरे-धीरे खत्म कर देते हैं जिससे मृदा की बंध क्षमता कमजोर हो जाती है और मृदा अपरदन में तीव्रता की समस्या भी बढ़ जाती है। मृदा की गुणवत्ता के खराब होने से जल संचयन में भी कमी आ जाती है। प्रदूषित मृदा वर्षा के समय जल का संचयन भी कम कर पाती है और जो कुछ भी जल संचय होता भी है तो वह काफी विषाक्त हो जाता है।

मृदा की गुणवत्ता के खराब होने से पैदा होने वाली चुनौतियां

मिट्टी एक ऐसा संसाधन है, जो सीमित है। पूरी धरती के सिर्फ 22 फीसदी भू-भाग पर ही खाद्यान उपजता है। एफएओ के अनुसार,इसमें से लगभग एक तिहाई (करीब 33 फीसदी) अब बंजर हो चुकी है। इसकी मुख्य वजहें कटाव, प्रदूषण और वनों का कटाव आदि हैं। ग़ौरतलब है कि धरती को इतना नुकसान सिर्फ पिछले 50 वर्ष में हुआ है। यूएनएफएओ के मुताबिक पूरे विश्व में 815 मिलियन लोग खाद्य असुरक्षा का तथा 2 अरब लोग पोषण असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।

इसको रोकने के लिए हो रहे सरकारी प्रयास

मृदा गुणवत्ता में ह्रास के फलस्वरूप सन् 2015 में भारत सरकार ने ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ का शुभारंभ किया था। सरकार द्वारा जैविक कृषि को विभिन्न योजनाओं के द्वारा प्रोत्साहन देना जिनमें राष्ट्रीय गोकुल मिशन, और परम्परागत कृषि विकास जैसे योजनाएं शामिल हैं । इसके अलावा सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन जैसे योजनाओं को भी सरकार ने शुरू किया है । इसके तहत कृषि के सतत विकास हेतु विभिन्न योजनाओं को संचालित किया गया है।

दरअसल आज जलवायु परिवर्तन ने कृषि पर विपरीत असर डाला है और खाद्यान्न संकट पैदा किया है, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मृदा अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है क्योंकि मृदा में कार्बन को संग्रहित रखने की अद्भूत क्षमता होती है। एफएओ के अनुसार खाद्यान्न संकट का शमन मृदा की गुणवत्ता को सुधारकर किया जा सकता है। सरकार को एकल फसल प्रतिरूप की जगह किसानों को मिश्रित फसल प्रतिरूप और बहुफसली कृषि के लिए प्रोत्साहित करना होगा।