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Blog / 28 Sep 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) हिमालयी संकल्प (Himalayan Resolution)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) हिमालयी संकल्प (Himalayan Resolution)


मुख्य बिंदु:

जैव विविधता का भंडार और आध्यात्मिक धरोहर होने के कारण हिमालयी क्षेत्र भारत के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है लेकिन दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन एवं अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण इसका अस्तित्व खतरे में भी दिखाई देता है।

इस स्थिति को देखते हुए हिमालय से जुड़े चार राज्यों ने हिमालयी संकल्प लिया है। यह संकल्प देश के प्रहरी हिमालय को संरक्षित करने का है आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी वर्ष जुलाई में संपन्न हुए हिमालयी कॉन्क्लेव में मसूरी संकल्प भी पारित किया गया था।

मसूरी संकल्प में पर्यावरणीय सेवाओं के बदले ग्रीन बोनस देने और हिमालय क्षेत्र के लिए अलग से मंत्रालय की मांग की गई थी इस बैठक में शामिल केन्द्रीय वित्त-मंत्रालय, 15वें वित्त आयोग और नीति आयोग ने केंद्रीय बजट में अलग से प्रावधान का भरोसा दिया था।

आज के डीएनएस में हम आपको हिमालयी संकल्प के लक्ष्य के विषय में बताएँगे साथ ही हिमालयी क्षेत्र की चुनौतियों को भी समझने का प्रयास करेंगे...

नीति आयोग द्वारा गत वर्ष भारतीय हिमालयन क्षेत्र में निरन्तर विकास संबधी पांच रिपोर्ट को प्रकाशित किया गया था।

रिपोर्ट में सभी पांच क्षेत्रों की चुनौतियां बताई गई थी जैसे जल सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण करीब 30 प्रतिशत झरनों का सुखना और 50 प्रतिशत में बहाव कम होना इत्यादि शामिल था।

हिमालय क्षेत्र में हर वर्ष पर्यटन 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और उसके कारण कचरा, पानी, यातायात, जैव-सांस्कृति विविधता के नुकसान संबंधी बड़ी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।

इस रिपोर्ट में भारत के हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में 2025 तक पर्यटकों की संख्या दोगुनी होने का अनुमान लगाया गया था।

हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन यानि हेस्को के संस्थापक अनिल जोशी के अनुसार हिमालय को अब मजबूत राजनितिक इच्छाशक्ति और सामूहिकता की दरकार है उन्होनें अपनी बात को जारी रखते हुए आगे कहा कि सरकारों को समझना होगा कि सतत विकास तभी होगा जब विकास के मूल में संरक्षण की भावना हो।

यह संकल्प उसी सामूहिकता और हिमालय के प्रति अपने कर्तव्य की दिशा में एक कदम है इसका मकसद विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से देश के प्रहरी हिमालय को संरक्षित करने का है इसी लक्ष्य की पूर्ती हेतु क्रमश: चार राज्यों हिमाचल उत्तराखंड जम्मू-कश्मीर व सिक्किम ने हिमालयी संकल्प लिया है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिमालयी क्षेत्र बेशकीमती औषधि,दुर्लभ वन्य-जीव इत्यादि जैव सम्पदा के मामले में धनी है।

अत: अब ये चारों राज्य मिलकर विलुप्त होने की कगार पर पहुंची औषधियों की 1743 प्रजातियों दुर्लभ वन्य प्राणी जैसे बर्फानी तेंदुआ,हिमालयन थार, भेड़िया इत्यादि को संरक्षित करने की दिशा में कार्य करेंगे।

गौरतलब है कि पेड़ों की 816 प्रजातियाँ हिमालयी रेज में पाई जाती हैं इसके अलावा भारत समेत दुनियाभर के 13 देशों में बर्फानी तेंदुआ पाया जाता है। जिनकी संख्या 3900 से 6400 तक आंकी गई है। अकेले हिमाचल में इन बर्फानी तेंदुओं की संख्या 85 ये 100 तक है।

गौरतलब है कि इन चारों राज्यों में हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से अलग-अलग परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया है जिसके वित्त-पोषण की ज़िम्मेदारी विश्व बैंक पर है।

जैव विविधता से संबंधित सारी चुनौतियों से निपटने के लिए और हिमालय को बचाने के लिए इस परियोजना को शुरू किया गया है जिसे लोगों की सहभागिता से आगे बढ़ाया जाएगा इस कदम से कथित क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा और नयी परियोजनाओं के कारण स्थानीय समुदायों को रोजगार मिलेगा जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता भी कम होगी साथ ही इनके दोहन पर भी अंकुश लगेगा।

वर्तमान में इस क्षेत्र में 130 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना का शुभारंभ हो चुका है जो अपना कार्य मार्च 2024 तक पूरा करेगी इस परियोजना का कार्यक्षेत्र स्पीति, पांगी और किन्नौर के ऊंचाई वाले हिस्से होंगे जो 74 हज़ार किलोमीटर तक फैला है।

लाहुल, किन्नौर और चंबा जिला पशुधन के मामले में काफी धनी है इस क्षेत्र में तक़रीबन 8 लाख के करीब पशुधन है इस बड़ी पशुधन की संख्या के कारण यहाँ के प्राकृतिक चरागाहों पर काफी दवाब है इसके साथ-साथ विकास की अन्य गतिविधियों के कारण भी इन चरागाहों को नुक्सान पहुँच रहा है।

इसके अलावा विभिन्न विकास की परियोजनाओं, जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिग के कारण इस क्षेत्र के ग्लेशियर पिघल रहे हैं साथ ही औषधीय पौधों का भी दोहन जारी है। इस स्थिति के कारण इंसान और वन्य प्राणियों में टकराव बढ़ रहा है। जिससे पारिस्थितिकी संतुलन की स्थिति भी दुष्प्रभावित हो रही है।

साथ ही साथ यहाँ के लोग अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अवैज्ञानिक दोहन हो रहा है।

लेकिन अब ये चारों राज्य देशभर को प्राणवायु देने वाले हिमालय क्षेत्र की पवित्तरता व पहचान बरकरार रखने की दिशा में अपना योगदान देंगे जिससे न केवल यहाँ की जैव विविधता का संरक्षण होगा..बल्कि दुर्लभ वन्य प्राणियों जैसे बर्फानी तेंदुआ, हिमालयन थार, भेड़िया आदि को भी बचाने में भी अपना सार्थक योगदान करेंगे।

इन सारी पहल के बावजूद इस प्रोजेक्ट को लागू करने में चुनौतियां कम नहीं रहेंगी...गौरतलब है कि यह क्षेत्र छह महीने बर्फ से ढका रहता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिमालय की 90% पर्यावरणीय सेवाओं का उपयोग मैदानी क्षेत्र के लोग करते हैं। अत: यह आवश्यक है कि हिमालय की उदारता को स्वीकार किया जाये और मुखर होकर हिमालय संरक्षण की दिशा में कार्य किया जाये।