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Blog / 08 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) दुनिया क्यों बढ़ रहा ई-कचरा? (Global Upsurge of e-Waste)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी)  दुनिया क्यों बढ़ रहा ई-कचरा? (Global Upsurge of e-Waste)



इस बात से इनकार नही किया जा सकता की पर्यावरण को लेकर अभी हमारे देश में पूरी तरह जागरूकता नहीं आई है....ऐसा लगता है प्रदूषण जैसे अहम मुद्दे विकास के नाम पर पीछे छूट गए हैं... ऐसे में ई- कचरे के बारे में देश में बिलकुल भी जानकारी नहीं है ... इस दिशा में कदम तो उठाये गयें है....बस इन इनका कठिनाई से पालन करना जरुरी है...आज इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं....तकनीक में हो रहे लगातार बदलावों के कारण उपभोक्ता भी नए-नए इलेक्ट्रॉनिकक उत्पादों से घर भर रहे हैं...ऐसे में पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देता है और यहीं से शरू होती है ई-कचरे की समस्या...और यही है वो नई समस्या जो अपने पैर पसारती जा रही है... इलेक्ट्रॉनिक कचरा

ऐसे में यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की और से जारी रिपोर्ट "ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 में बढ़ते वैश्विक ई-कचरे यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बारे में बताया है...

आज DNS कर्यक्रम में बात करेंगे... 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के बारे में....जानेंगे ई-कचरा के बारे में...समझेंगे ई- कचरा कैसे पर्यवरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए ज़हर है....और भी बहुत कुछ...

दरहसल कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे मोबाइल फोन और कैमरे, कंप्यूटर और उससे संबंधित अन्य उपकरण साथ ही टी.वी., वाशिंग मशीन, फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण , जब खराब हो जाते हैं या इस्तेमाल करने योग्य नही होते तो यही ई-कचरा कहलाता है....

देश में जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन (Digitisation) बढ़ रहा है, उसी तरह ई-कचरा भी बढ़ रहा है..मनुष्य की जीवन शैली तकनीक में आने वाले बदलाव ही ई-कचरे की उत्पत्ति के प्रमुख कारण है....ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे (Mercury )जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इन वस्तुओं के बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं...इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का रूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है...

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की और से जारी "ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट से पता चला है कि साल 2019 में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था... जोकि पिछले पांच सालों में 21 फीसदी बढ़ गया है, जबकि अनुमान है कि 2030 की अवधि में वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में तकरीबन 38 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होगी..

दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह तेजी से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत है.... आज हम तेजी से इन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपनाते जा रहे हैं....इन उत्पादों का जीवन काल छोटा होता है जिस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है....जैसे ही कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को फेंक दिया जाता है...इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों की मरम्मत की सीमित व्यवस्था है, और है भी तो वो बहुत महंगी है...ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद ख़राब होता है.... लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं.. जिस वजह से भी इस कचरे में इजाफा हो रहा है...

रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में एशिया ने सबसे ज्यादा 2.49 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था.... इसके बाद अमेरिका ने करीब 1.31 करोड़ मीट्रिक टन, यूरोप में 1.2 करोड़ मीट्रिक टन, जबकि अफ्रीका में 29 लाख मीट्रिक टन और ओशिनिया में 7 लाख मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न किया था.....जबकि दुनिया का सबसे ज्यादा ई-वेस्ट उत्पन्न करने वाले देशों की बात की जाए तो भारत तीसरे स्थान पर है...2019 में भारत ने करीब 32.3 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पन्न किया था जोकि अफ्रीका के कुल ई-वेस्ट से भी ज्यादा है....अगर प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो भारत में प्रति व्यक्ति 2.4 किलोग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ था....जबकि 1.01 करोड़ मीट्रिक टन के साथ चीन पहले स्थान पर और 69 उनहत्तर लाख मीट्रिक टन कचरे के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर था...

रिपोर्ट के अनुसार 2019 में केवल 17.4 फीसदी कचरे को ही इकट्ठा और रिसाइकल किया गया था...जिसका मतलब यह है कि इस वेस्ट में मौजूद लोहा, तांबा, सोना और अन्य कीमती चीजों को ऐसे ही डंप कर दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है.... ऐसे में उन कीमती पदार्थों जिनको इसमें से पुनः प्राप्त किया जा सकता है वो बर्बाद चली जाती हैं| जिससे संसाधनों की बर्बादी हो रही है...

अगर 2019 में इस वेस्ट को रिसाइकल न किये जाने से होने वाले नुकसान को देखा जाए तो वो करीब 425,833 करोड़ रुपए (5700 करोड़ अमेरिकी डॉलर) के बराबर है.....जोकि दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है....अगर ई-कचरे के भीतर मूल्यवान सामग्री का पुन: उपयोग और RECYCLE कर लिए जाये, तो उसे फिर से प्रयोग किया जा सकता है| जिससे संसाधनों की बर्बादी भी रुक जाएगी और इससे सर्कुलर इकॉनमी को भी बढ़ावा मिलेगा,....

ई-कचरा का पर्यावरण के साथ साथ हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है.....दरहसल ई-कचरे में पारा (Mercury), कैडमियम (Cadmium) और क्रोमियम (Chromium) जैसे कई विषैले तत्त्व शामिल होते हैं, जिनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की जानलेवा बीमारियाँ होती हैं....वहीँ ई-वेस्ट, मिट्टी और भूजल को दूषित करता है, जिससे खाद्य आपूर्ति प्रणालियों और जल स्रोतों में प्रदूषकों का जोखिम बढ़ जाता है....

ई-कचरे को लेकर देशों के बीच जागरूकता बढ़ रही है , पर नियमों के पालन पर ध्यान देना ज्यादा जरुरी है.....पिछले 5 सालों में ऐसे देशों की संख्या में वृद्धि हुई है जो ई-कजरे को लेकर जागरूक हुए है...2014 में उन देशों की संख्या 61 थी जोकि 2019 में बढ़कर 78 हो गई है...गौरतलब है कि अक्टूबर 2019 तक, दुनिया की 71 इकाह्त्र्र फीसदी आबादी राष्ट्रीय ई-कचरा नीति, कानून और विनियमन के अंतर्गत आती है, जबकि 2014 में केवल 44 फीसदी पर ही इन नियमों को लागु किया गया था....

हालांकि इसके बावजूद कई देशों में बड़ी धीमी रफ़्तार से इन नियमों को अपनाया जा रहा है....साथ ही नियमों का ठीक से पालन नहीं किया जाता.....जिसके चलते वहां न तो ई-कचरे को इकट्ठा किया जाता है और न ही उनका सही तरीके से प्रबंधन होता है...

वहीँ भारत में ई-कचरा और उसके पुनर्नवीनीकरण को लेकर उठाये कदम

ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन टन ई-कचरे का उत्पन्न करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में यह 5वें स्थान पर है....हालाँकि सरकार द्वारा उपलब्ध किये गए आँकड़े बताते हैं कि भारत में उत्पादित ई-कचरा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान से काफी कम है....आँकड़ों के अनुसार, भारत में ई-कचरे का E-waste recycling(पुनर्नवीनीकरण) करने वाली कुल 312 अधिकृत कंपनियाँ हैं, जो कि प्रतिवर्ष 800 किलो टन ई-कचरे का E-waste Recycling(पुनर्नवीनीकरण) कर सकती हैं...

हालाँकि अभी भी भारत में औपचारिक क्षेत्र की पुनर्चक्रण क्षमता का सही उपयोग संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि ई-कचरे का बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, देश का लगभग 90 प्रतिशत ई-कचरे का E-waste Recycling(पुनर्नवीनीकरण)अनौपचारिक क्षेत्र में किया जाता है...

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) एक वैश्विक थिंक टैंक और स्नातकोत्तर (Postgraduate) शिक्षण संगठन है जिसका मुख्यालय जापान में स्थित है।यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की अकादमिक और अनुसंधान शाखा है...

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) का उद्देश्य सहयोगात्मक अनुसंधान और शिक्षा के माध्यम से मानव विकास तथा कल्याण से संबंधित वैश्विक समस्याओं को हल करना है.......

अगर इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ठीक से प्रबंधन न हो तो वो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ा खतरा बन सकता है...ऐसे जागरूकता और नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरुरी है....