Home > DNS

Blog / 23 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)



इंसानी शरीर की हर कोशिका में एक नाभिक होता है जहाँ जीन में जेनेटिक पदार्थ का संग्रहण होता है । जीन में एक पीढ़ी से दुसरे पीढ़ी में जाने वाले कुछ विशेष लक्षण और खूबियां होती हैं । हमारी आनुवांशिक विशेषताओं जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं यह सारी जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डी एन ए कहते हैं।

जब किसी जीन के डीएनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे म्यूटेशन याउत्परिवर्तन कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है।आम तौर पर ये जीन रोड नुमा एक संरचना पर समूह बद्ध होते हैं जिन्हे क्रोमोजोम कहा जाता है। अमूमन हर कोशिका के नाभिक में 23 जोड़े गुणसूत्र या क्रोमोजोम पाए जाते हैं जिनमे से आधे मां के ज़रिये और आधे पिता के ज़रिये बच्चे में आते हैं ।कभी कभी किसी शख्स में 21 वें गुणसूत्र का पूरा या आंशिक प्रतिरूप आ जाता है ।इस जेनेटिक बदलाव की वजह से इंसानी विकास के क्रम में परिवर्तन आ जाता है और यही डाउन सिंड्रोम की वजह बनता है।

बचपन में हालांकि ये बच्चे आम बच्चों की ही तरह दिखते हैं लेकिन धीरे धीरे उनका शारीरिक और मानसिक विकास कुछ धीमा पड़ जाता है । इस तरह के बच्चों को डाउन सिंड्रोम से पीड़ित कहा जाता है ।हर साल 21 मार्च को डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है।

आज के DNS में हम जानेंगे डाउन सिंड्रोम के बारे में ,इससे जुड़े बच्चों के बारे में ।साथ ही जानेंगे इस सिंड्रोम से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं के बारे में जिसके चलते इससे पीड़ित बच्चों को समाज का दंश झेलना पड़ता है और उनसे विशेष श्रेणी के बच्चों की तरह बर्ताव किया जाता है

‘विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस’ डाउन सिंड्रोम के बारे में आम लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफ़ारिश के चलते साल 2012 से मनाया जा रहा है। साल 2020 में विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस का विषय है ‘(We Decide)’ या हम निर्णय लेते हैं।

विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के लिए 21 क्रोमोसोम (गुणसूत्र) त्रयी (ट्रायसोमि ) की खासियत के मद्देनज़र साल के तीसरे महीने की 21 तारीख़ को चुना गया था ।डाउन सिंड्रोम में अक्सर बच्चों में एक गुणसूत्र की अधिकता पायी जाती है।

डाउन सिंड्रोम का नाम ब्रिटिश चिकित्सक जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इस सिंड्रोम (चिकित्सकीय स्थिति) के बारे में सबसे पहले 1866 में पता लगाया था। दरअसल में सिंड्रोम का मतलब किसी बीमारी में कई लक्षणों का एक समूह होता है।

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे एक तरह के अनुवांशिक विकार से जूझते हैं जो कि क्रोमोसोम-21 में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम के जुड़ने की वजह से पैदा होता है। अमूमन ज़्यदातर लोगों की सभी कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में उनके 47 गुणसूत्र होते हैं जिसकी वजह से वो दूसरों से अलग दीखते हैं और अलग ज़िंदगी जीते हैं । इसके साथ ही साथ उनके सीखने का तरीका भी दुसरे बच्चों से अलग होता है ।डाउन सिंड्रोम के चलते आम तौर पर व्यक्ति में बहुत हल्के से गंभीर संज्ञानात्मक कमी का स्तर,मांसपेशियों में ताक़त में कमी, छोटी नाक व नाक की चपटी नोक, ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें, छोटे कान, सामान्य से परे लचीले जोड़, अंगूठा और उसके बगल की ऊँगली के बीच की दूरी अधिक होना तथा मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ जैसे लक्षण पाए जाते हैं ।इसके अलावा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे कई तरह के और रोगों जैसे कि जन्मजात हृदय रोग, सुनने में परेशानी, आंख की तकलीफों से भी परेशान रहते हैं।

डाउन सिंड्रोम का किसी जाती या तबके से लेना देना नहीं होता है। ये किसी भी जाति या आर्थिक स्थिति के लोगों में पाया जाता है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा किसी भी उम्र की मां से जन्म ले सकता है, हालांकि आंकड़ों पर गौर करें तो डाउन सिंड्रोम का ज़ोखिम मां की उम्र अधिक होने के साथ बढ़ता है। 35 साल की महिला के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित गर्भधारण की संभावना 350 में से 1 तथा 40 साल की आयु के बाद डाउन सिंड्रोम से पीड़ित गर्भधारण की संभावना 100 में से 1 होती है।

साल 2020 में विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस का विषय We Decide न सिर्फ डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे लोगों को समाज की मुख्य धरा में शामिल करने के मातहत लिया गया है बल्कि ये विषय सतत विकास लक्ष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र के वर्ष 2030 के एजेंडे को पूरा करने में भी मददगार साबित होगा।

यह विषय डाउन सिंड्रोम से पीड़ित सभी लोगों को समान अवसर देने पर भी जोर देने की वकालत करता है । डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों की तरफ नकारात्मक रवैया , उनको कम आंकना , भेदभाव और बहिष्करण उन्हें समाज में आगे बढ़ने से रोकता है । इससे ये ज़ाहिर होता है कि और लोग इन लोगों की तकलीफों और चुनौतियों को समझ नहीं पाते है। इससे जूझ रहे लोगों के सशक्तिकरण के लिए न सिर्फ सरकार को कदम उठाने होंगे बल्कि आम लोगों को भी ये समझना होगा की इन्हे भी आगे बढ़ने और तरक्की करने का उतना ही हक़ है जितना आम इंसानों को ।ज़र्रोरत है हमें अपनी सोच को बदलने की ताकि हम इन्हे इस समाज से अलग न समझें।

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति की स्वास्थ्य देखभाल:

चिकित्सा प्रौद्योगिकी दिनोदिन हो रही तरक्की की वजह से डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग पहले से कहीं ज़्यादा लम्बी ज़िंदगी जीते हैं। डाउन सिंड्रोम की पीड़ितों की देखभाल में थोड़े सुधार कर के उनकी ज़िंदगी में बदलाव लाये जा सकते हैं जैसे

  • मानसिक और शारीरिक विकास की निगरानी के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा नियमित जांच-पड़ताल और नियमित काउंसलिंग और जीवनशैली पर नज़र रखना इसके अलावा माता पिता परिवार के लोगों को इनके साथ कैसे बर्ताव करना है इसके बारे में जागरूक करना । आस पड़ोस और समुदाय के लोगों में इस सिंड्रोम के बारे में जागरूकता पैदा करना , इनकी ज़रूरतों के बारे में और इनके ज्ञान के स्तर को स्कूलों द्वारा पहचानकर इनके लिए विशेष पाठ्यक्रम तैयार करना ताकि इन्हे आम बच्चों की तरह सीखने के अवसर मिल सकें ।

भारत सरकार का सामजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ऐसे बच्चों की मदद के लिए नोडल एजेंसी है । इसके अलावा राष्ट्रिय दिव्यांग वित्त एवं विकास निगम ऐसे लोगों और उसके परिवारों को ऋण और अन्य सुविधाएं मुहैय्या कराता है। इसके अलावा ऐसे लोगों के लिए पर्सन्स विद डिसैबिलिटीज एक्ट 1995 और भारतीय पुनर्वास परिषद् में भी प्रावधान किये गए हैं ।

इसके अलावा भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत भी 0 से 18 साल के बच्‍चों में चार प्रकार की परेशानियों की जांच करना है। इन परेशानियों में जन्‍म के समय किसी प्रकार के विकार, बीमारी, कमी और दिव्यांगता समेत विकास में आने वाली रूकावट की जांच शामिल है।