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Blog / 11 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डॉप्लर वेदर रडार (Doppler Weather Radar)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डॉप्लर वेदर रडार (Doppler Weather Radar)



बादल फटना, तूफान या फिर तेज़ बारिश मौसम बदलाव के इस दौर में मौसम सम्बन्धी सूचना का दुरुस्त होना बेहद ज़रूरी है...हम बात कर रहे है डॉप्लर वेदर रडार की... जिससे मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी मिलती है.....

हाल ही में उत्तराखंड में प्रदेश का पहला डॉप्लर वेदर रडार लगाया गया..आपको उत्तराखंड में साल 2013 में आई प्राकृतिक आपदा याद होगी.... मौसम विभाग द्वारा प्रदेश में आई इस प्राकृतिक विपदा के बारे में सटीक जानकारी देने में सक्षम नही थी....इसीलिए उत्तराखण्ड में डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की माँग उठी.....

आज हम DNS में बात करेंगे डॉप्लर वेदर रडार के बारे में ये क्या है....देश में पहला रडार कब लगया गया...और इस विषय से जुडी सारी महत्वपूर्ण बातें.....

पूर्वानुमान देने में अब उत्तराखंड का मौसम विभाग भी सक्षम होगा.....बारिश, तूफान या अंधड़ के साथ तेज हवाओं के यहां पहुंचने से पहले ही जानकारी मिल जाने से जरूर एहतियात बरतना भी आसान हो जाएगा....इन घटनाओं की जानकारी विभाग को तीन घंटे पहले ही पता चल जाएगी....इसके लिए प्रदेश का पहला डॉप्लर रडार नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में स्थापित हो चुका है.... टेस्टिंग होते ही जुलाई अंत से पहले यह रडार काम करना शुरू कर देगा...

अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित डॉप्लर रडार मुक्तेश्वर के शीतोष्ण बागवानी संस्थान में स्थापित किया गया है। इस रडार की खासियत यह है कि बादलों के फटने जैसी घटनाओं के होने से पहले ही हमें जानकारी मिल जाएगी।

360 डिग्री एंगल में सौ किमी की जानकारी देगा

मुक्तेश्वर में स्थापित रडार 100 किमी के दायरे में 360 डिग्री एंगल पर कार्य करेगा। यह हिमालय समेत चारों दिशाओं के मौसम पर नजर रख सकेगा। इससे हवा की गति व दिशा, तापमान व आर्द्रता की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती रहेगी…आपको बतादें डॉप्लर रडार को स्थापित करने में दस करोड़ रुपये की लागत आई है....

प्रदेश का यह पहला रडार है....इसके अलावा गढ़वाल मंडल के पौड़ी व टिहरी जिले में भी एक-एक डॉप्लर रडार स्थापित किया जाना है। मुक्तेश्वर में रडार लग जाने से कुमाऊं क्षेत्र के मौसम की सटीक जानकारी मिलने लगेगी....

2005 में लगाया गया पहला डॉप्लर वेदर रडार

भारत में पहला डॉप्लर वेदर रडार चेन्नई में 2005 में लगाया गया था। देश में बड़ी संख्या में डॉप्लर वेदर रडार लगाने की पहल मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी.....

क्या है डॉप्लर वेदर रडार?

डॉप्लर वेदर रडार से 400 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह रडार डॉप्लर इफेक्ट का इस्तेमाल कर अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है। जब अतिसूक्ष्म तरंगें किसी भी वस्तु से टकराकर लौटती हैं तो यह रडार उनकी दिशा को आसानी से पहचान लेता है।

इस तरह हवा में तैर रहे अतिसूक्ष्म पानी की बूँदों को पहचानने के साथ ही उनकी दिशा का भी पता लगा लेता है। यह बूँदों के आकार, उनकी रडार दूरी सहित उनके रफ्तार से सम्बन्धित जानकारी को हर मिनट अपडेट करता है। इस डाटा के आधार पर यह अनुमान पता कर पाना मुश्किल नहीं होता कि किस क्षेत्र में कितनी वर्षा होगी या तूफान आएगा। इस सिस्टम का सबसे बड़ा दोष यह है कि किसी मौसमी बदलाव की जानकारी ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटे पहले दे सकता है।

क्यों हैं इसकी जरूरत

बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना का अनुमान नाउकास्ट (NOWCAST) पद्धति के द्वारा ऐसा होने के कुछ ही घंटों पहले लगाया जा सकता है। बादल का फटना यूँ तो किसी भी समय और कहीं भी हो सकता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पर्वतीय इलाकों में देखने को मिलता है। इसकी मुख्य वजह है पर्वतीय ढलानों से बादल का टकराकर ऊपर उठना होता है। ऊपर उठाने के क्रम में बादल अपेक्षाकृत ठंडी हवाओं के सम्पर्क में आने से संघनित हो जाते हैं और पानी की बूँदों में तब्दील हो जाते है।

इसी प्रक्रिया के बार-बार होने के कारण इन बूँदों के आकार में बृद्धि होती जाती है और जब उनका भार इतना अधिक हो जाता है कि वायुमंडल सहन नहीं कर सके तो किसी स्थान विशेष में वे अचानक बरस जाते हैं।

बादल फटने की घटना में कम-से-कम 10 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है जिससे प्रभावित इलाके में अचानक बाढ़ (Flash Flood) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और जान-माल का काफी नुकसान होता है। डॉप्लर वेदर रडार की सहायता से इस तरह की घटनाओं के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटा पूर्व जानकारी मिल सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सूचना देकर इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।

आगे की तैयारी

वहीं सूत्रों के मुताबिक मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए 46 नए स्थापित किए जाएंगे, जोकि इनकी संख्या बढ़कर 75 हो जाएगी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने वर्ष-2025 तक देश में इन्हें स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

अभी आइएमडी के 24, इंडियन एयरफोर्स के तीन व भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) पुणे के दो डॉप्लर रडार स्थापित हैं...जल्द ही उत्तर पश्चिम हिमालय के लिए 10 एक्स बैंड डॉप्लर रडार, मैदानी इलाकों के लिए 11 सी बैंड डॉप्लर रडार, उत्तर-पूर्व राज्यों में 14 एक्स बैंड डॉप्लर रडार स्थापित किए जाएंगे, बाकी बचे रडार 2025 तक लगा लिए जाएंगे...