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Blog / 02 Aug 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चीनी श्वेत पत्र और भारत (Chinese White Paper and India's Concern)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चीनी श्वेत पत्र और भारत (Chinese White Paper and India's Concern)


मुख्य बिंदु:

बीते दिनों चीन ने 'नए युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा' शीर्षक नाम से एक श्वेत पत्र जारी किया था। श्वेत पत्र में कहा गया कि चीन भारत के साथ सीमा पर स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहता है। इसके अलावा श्वेत पत्र में इस बात का भी ज़िक्र है कि चीन डोकलाम मुद्दे पर शांतिपूर्ण समाधान के लिए अनुकूल परिस्थितियां चाहता है जिससे मुश्किलों का हल आसानी से निकाला जा सके। ग़ौरतलब है कि चीन द्वारा जारी श्वेत पत्र में अमेरीका की एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक क़दमों की जमकर आलोचना की गई है।

DNS में आज हम आपको चीन द्वारा जारी श्वेत पत्र के बारे में बताएंगे साथ ही समझेंगे भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों के बारे में

चीन द्वारा जारी श्वेत पत्र के कुछ मुख्य उद्देश्य हैं। इनमें भारत - चीन की सेनाओं के बीच आक्रामकता को रोकने की पहल, ताइवान की स्वतंत्रता का विरोध, तिब्बत की आज़ादी और तुर्किस्तान के ख़ात्मे जैसे अलगाववादी आंदोलनों के समर्थकों पर नकेल कसने जैसी बातों का ज़िक्र किया गया हैं। भारत के लिहाज़ से श्वेत पत्र में भारत-चीन सीमा पर सुरक्षा और स्थिरता को बेहतर बनाने की बात कही गई है। श्वेत पत्र में कहा गया है कि बीते दिनों डोकलाम विवाद ने दोनों देशों के बीच अनुकूल परिस्थितियां’’पैदा की है जिसे बेहतर बनाने के लिए भारत के साथ सीमा पर स्थिरता व सुरक्षा को प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है।

चीन द्वारा जारी श्वेत पत्र में भारत, अमेरिका, रूस और अन्य देशों की तुलना में चीन के सैन्य विकास के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है। श्वेतपत्र में कहा गया है कि ‘‘वैश्विक सैन्य प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। दुनिया भर के बड़े देश अपनी सुरक्षा व सैन्य रणनीतियों और सैन्य संगठनात्मक ढांचों में बदलाव कर रहे हैं। पूर्ण सैन्य श्रेष्ठता पाने के लिहाज़ से अमेरिका नई तकनीकी के ज़रिए आगे बढ़ रहा है। इसके अलावा रूस भी अपने ‘न्यू लुक’ सैन्य सुधार को दिशा में काम कर रहा है। जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान और भारत जैसे देश अपने सैन्य बलों की संरचना का पुनर्संतुलन और अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।

श्वेत पत्र में ये भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय सैन्य प्रतिस्पर्धा में ऐतिहासिक बदलाव हो रहे हैं। आईटी पर आधारित नई और उच्च तकनीक वाली सैन्य प्रौद्योगिकियां तेज़ी से विकसित हो रही हैं। चीन ने अपने श्वेत पत्र में अपने भारी सैन्य खर्च को कम दिखाने की कोशिश की है। जबकि ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के मुताबिक़ चीन रक्षा क्षेत्र में खर्च के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। श्वेत पत्र के तहत चीन के रक्षा खर्च को उचित ठहराया गया है और देश विकास व सुरक्षा दोनों पर ध्यान देता है।

आगे बढ़े आइये उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर ये श्वेत पत्र होता क्या है?

दरअसल ये श्वेत पत्र एक आधिकारिक रिपोर्ट या मार्गदर्शिका है जो पाठकों को एक जटिल मुद्दे के बारे में संक्षिप्त जानकारी देती है। ग़ौरतलब है कि चीन में 1998 से जारी राष्ट्रीय रक्षा पर ये 10 वां श्वेत पत्र है। नए युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा शीर्षक से जारी ये श्वेत पत्र चीन की राष्ट्रीय रक्षा का वर्णन करता है।

भारत चीन संबंधों की बात करें तो भारत और चीन एशिया की दो प्राचीन सभ्यताओं और एशियाई की दो बड़ी महाशक्तियों में से एक हैं। हालाँकि भारत चीन संबंधों का कोई स्वर्णिम युग नहीं रहा है। भारत चीन संबंधों के बीच सीमा विवाद मुख्य वजह रही है। सीमा विवाद के ही कारण दोनों देश 1962 में युद्ध के मैदान में भी आमने-सामने खड़े हो चुके हैं। दरअसल भारत और चीन के बीच लगभग 3,500 किमोलीटर अंतरष्ट्रीय सीमा है। इस सीमा में अरुणांचल से लेकर जम्मू कश्मीर के इलाके शामिल हैं।

अभी भी सीमा पर मौजूद कुछ इलाकों को लेकर विवाद है जो कभी-कभी तनाव की वजह बन जाते है। 2017 में हुआ डोकलाम विवाद पिछले 5 सालों में भारत चीन तनाव की मुख्य वजहों में से एक है। डोकलाम विवाद में भारत ने पठारी क्षेत्र डोकलाम में चीन के सड़क बनाने की कोशिश का विरोध किया था। भारत के इस विरोध के बाद दोनों देशों की सेना आमने सामने आ गईं थी। ग़ौरतलब है कि भारत डोकलाम क्षेत्र पर चीन के दावे को ख़ारिज करता है। डोकलाम के कुछ इलाके भारतीय की सीमा के अंदर आते हैं जबकि बाकी के भूभाग पर भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है। इससे पहले क्षेत्र में 1967 में भी चीन और भारत के बीच विवाद हुआ था।

इसके अलावा चीन की BRI परियोजना भी भारत चीन संबंधों के बीच बढ़ती खाई की मुख्य वजह है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जाने वाला 'पाकिस्तान चीन आर्थिक गलियारा' यानी CPEC भारत की सम्प्रभुता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है। इसके अलावा बांग्लादेश - चीन आर्थिक गलियारा भी भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। ग़ौरतलब है कि बीते दिनों चीन में हुए दूसरे BRI समिट में भारत इन्हीं सब वजहों से शामिल नहीं हुआ था और उसने चीन की BCIM यानी बांग्लादेश - चीन - भारत और म्यांमार आर्थिक गलियारे को खुद से बाहर कर लिया। हालंकि चीन दक्षिण एशिया में कुछ और भी देशों के साथ अपनी BRI परियोजना को बढ़ा रहा है जिसमें चीन - म्यांमार आर्थिक गलियारा और नेपाल - चीन आर्थिक गलियारा शामिल है।

हिन्द प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती दख़लंदाजी भी भारत के लिए चिंता का विषय है। हिंदमहासागर के देशों में बंदरगाह, नौसेनाबेस, और निगरानी पोस्ट बना कर चीन चीन बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अपना प्रभाव मज़बूत करना चाहता है। चीन की मंशा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ तो वो दक्षिण चीन सागर में किसी भी गतिविधि का विरोध करता है दूसरी ओर भारत के हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की दख़लंदाजी अपने चार्म पर है।

जानकारों का मानना है कि अफ्रीका के हॉर्न में जिबूती में अपना पहला ओवरसीज बेस स्थापित करने और कराची में नौसैनिक टर्नअराउंड सुविधाएं जारी रखने के बाद चीन अब हिंद महासागर क्षेत्र में भी नौसेना के घुसपैठ कर सकता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक़ मौजूदा वक़्त में चीन को नजरअंदाज करना भारत के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। हिंद महासागर में चीनी नौसेना के बढ़ते दखल पर भारतीय सेनाओं को चीन को जवाब देने की ज़रूरत है।

कुछ दिन पहले नौसेना प्रमुख करमबीर सिंह ने कहा कि चीन ने अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की अन्य इकाइयों से PLA नेवी में काफी संसाधन भेजे हैं और भारत को इसकी सावधानीपूर्वक निगरानी करनी होगी।

मौजूदा वक़्त में चीन भी कई संकटों से घिरा हुआ है। इनमें अलगावादियों के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय संप्रभुता पर विवाद, और समुद्री सीमांकन जैसे मसले शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर के चलते शीतयुद्ध जैसी स्थति है। UN की एक स्टडी के मुताबिक, चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के कारण भारत को फायदा हो सकता है। क्यूंकि भारत एक मज़बूत हैं और प्रतिस्पर्धी देश हैं जो अमेरिकी और चीनी कंपनियों का जगह लेने की आर्थिक क्षमता रखते हैं। मौजूदा वक़्त में रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, और भारत जैसे देशों के साथ ग्लोबल मिलिट्री कम्पटीशन भी है क्योंकि ये सभी देश अपने सैन्य बलों की संरचना का पुनर्निर्माण और उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं।

हालाँकि इन सब बातों के बावजूद भी भारत और चीन के व्यापरिक सम्बन्ध अपने शिखर पर है। दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर अपार संभावनाएं भी हैं। भारतीय विदेश नीति शुरू से ही पड़ोस पहली की नीति पर काम करती आई है। ऐसे में दोनों देशों के बीच पंचशील जैसे समझौते भी हुए हैं। 1954 में हुए पंचशील समझौते के मुताबिक़ दोनों देश एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और पारस्परिक संप्रभुता का सम्मान करने की बात कही गई थी। साथ ही दोनों देश एक दूसरे पर आक्रमण न करना।

इसके अलावा एक दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप ना करना, समानता और पारस्परिक लाभ की मानसिकता रखना और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर बल देने जैसे समझौते भारत और चीन के बीच हुए पंचशील समझौते में शामिल थे। आज पंचशील नाक़ाम ज़रूरी हो गया है लेकिन भारत आज भी चीन से ये अपेक्षा करता है कि पंचशील के पांच बिंदुओं का वो अपने अंतर्राष्ट्रीय आचरण के दौरान पालन करे तो दोनों देशों के बीच मौजूद सीमा विवाद जैसे मुद्दों को आसानी से हल किया जा सकता है।