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Blog / 23 Sep 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जैव आतंकवाद (Bio Terrorism)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जैव आतंकवाद (Bio Terrorism)


सुर्खियों में क्यों?

  • SCO देशों के प्रथम सैन्य चिकित्सा सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने जैव आतंकवाद(बायो टेररिज्म) की चर्चा की
  • उन्होंने बायो टेररिज्म से निपटने के लिए क्षमता निर्माण को आवश्यक बताया।
  • आतंकवाद को बढ़ाने के लिए जैव हथियारों का इस्तेमाल करने के क्रम में बायो टेररिज्म की अवधारणा सामने आई।
  • विकिलीक्स के रहस्योद्घाटन में भी भारत में जैव-आतंक फैलाए जाने जैसी बातचीत दर्ज थी।

क्या है बायो टेररिज्म?

  • बायोटेरोरिज्म में वायरस, बैक्टीरिया जैसे बायो एजेंटों का जैव हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है
  • बायो टेररिज्म पारंपरिक हथियारों से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
  • जैव हथियारों में एंथ्रेक्स, चेचक, प्लेग, बॉटुलिन और एंटरोक्सिन इत्यादि का प्रयोग किया जाता है
  • ये बायो एजेंट लाखों लोगों, जानवरों या पौधों में बीमारी या मृत्यु का कारक बनते है।
  • ये बायो एजेंट प्रकृति में पाए जाते हैं एवं इन्हें ज्यादा घातक बनाने हेतु इनके स्वरुप में परिवर्तन भी किया जा सकता है
  • इन बायो एजेंटों को हवा, पानी या भोजन के माध्यम से प्रसार किया जा सकता है
  • आतंकवादी इन जैव हथियार का प्रयोग इसलिए करते है क्योंकि
  1. इनका पता लगाना बहुत मुश्किल होता है
  2. छोटे से समय में एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करने की क्षमता
  3. इन्हें हथियार के रूप में प्रयोग करने के लिये किसी विशेष तकनीकी की आवश्यकता नहीं
  4. बहुत कम खर्च में इस प्रकार के विनाशकारी हथियार बिना किसी कठिनाई के बनाये जा सकते है
  5. विषाणु को पाउडर/क्रिस्टलीकरण रूप में परिवर्तित कर सकते है।
  6. जैविक आतंकवादी इन शस्त्र रूपी रोगाणु को प्रयोगशला में विकसित एवं संवर्धित कर सकते हैं।

क्या है बायो टेररिज्म के एजेंट?

  • बायो टेररिज्म के एजेंट के रूप में बैक्टीरिया, वायरस और कवकों इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
  • बायो टेररिज्म के एजेंट के दो प्रकार के हो सकते हैं - जीवित और अजीवित।
  1. जीवित वर्ग में एंथ्रेक्स, चेचक, प्लेग इत्यादि होते हैं।
  2. अजीवित पदार्थों में बॉटुलिन, एंटरोक्सिन इत्यादि हैं।
  • वैश्विक स्तर पर बायो टेररिज्म के एजेंट को तीन भागों में बाटा जाता है A, B और C केटेगरी
  • A केटेगरी- उच्च प्राथमिकता वाले ऐसे जीव जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकते है क्योंकि
  1. इनको व्यक्ति में आसानी से प्रसारित किया जा सकता है;
  2. उच्च हताहत क्षमता एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता;
  3. सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सामाजिक व्यवधान पैदा करने की क्षमता;
  4. इनमे एंथ्रेक्स, प्लेग, चेचक और इबोला जैसे बायो टेररिज्म के एजेंट को रखा जाता है
  • B केटेगरी- इसमें द्वितीय सर्वोच्च प्राथमिकता वाले एजेंटों को शामिल किया जोकि
  1. प्रसार में कम सुविधाजनक होते है;
  2. परिणाम में मध्यम रुग्णता दर और कम मृत्यु दर;
  3. इनमे अल्फा वायरस, ब्रुसेलोसिस और इंसेफेलाइटिस जैसे बायो टेररिज्म के एजेंट को रखा जाता है
  • C केटेगरी- इन एजेंटों में उभरते हुए नये रोगों के कारको को शामिल किया जाता है जिन्हें भविष्य में अधिकतम प्रसार के किये डिजाइन किया जा सकता है
  1. उदहारण के लिए निपाह वायरस

कब हुआ इन बायो टेररिज्म के एजेंटो का प्रयोग?

  • 1346 क्रीमियन प्रायद्वीप और इटली में प्लेग संक्रमित शवों का इस्तेमाल प्लेग संक्रमण फैलाने के लिए किया गया
  • 1518 में स्पेन के द्वारा लैटिन अमेरिका में चेचक के जीवाणुओं को फैलाया गया।
  • 1710 रूस स्वीडन युद्ध के दौरान रूसी सैनिकों ने प्लेग संक्रमित शवों को नगरों के अंदर संक्रमण फैलाने के लिए फेंका
  • 1763-67 पोंटियाक युद्ध में ब्रिटिश सैनिकों ने चेचक के विषाणुओं से संक्रमित कंबलों का प्रयोग विरोधी सैनिकों के विरूद्ध किया।
  • 1914-18 विश्व युद्ध के दौरान पहली बार जैविक अस्त्रों के विकसित स्वरूप एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स के जीवाणुओं का प्रयोग किया गया
  • 1930 और 40 जापान-चीन युद्ध के दौरान, जापानियों ने सामान्य नागरिकों पर प्लेग संक्रमित खाद्य पदार्थों का प्रयोग किया या।
  • 1984 अमरीका के ऑरेगान में सैलमोनेला टाइफिमुरियम द्वारा संक्रमण जैव-आतंक फैलाया था।
  • 1993 जापान के टोक्यो शहर में एंथ्रेक्स से संक्रमण फैलाने का प्रयास किया गया।
  • 2001 अमरीका के कई राज्यों में एंथ्रेक्स से संक्रमण फैलाने की घटनाएं हुई थीं।
  • 2009 अल्जीरिया में अल कायदा का प्रशिक्षण शिविर जो जैविक हथियार विकसित करने का प्रयास कर रहा था खुद संक्रमण के शिकार हो गए

बायो टेररिज्म का विनयमन कैसे?

  • अगर हम जब हथियारों के विनियमन को देखें तो इसकी शुरुआत 1925 से ही हो जाती है।1925 जिनेवा प्रोटोकॉल के अंतर्गत जहरीली गैसों जीवाणुओं या इस प्रकार के अन्य तत्वों का युद्ध में उपयोग प्रतिबंध है।
  • 1972 का बायोलॉजिकल एंड टॉक्सिन विपन कन्वेंशन (BTWC) पहली ऐसी बहुपक्षीय संधि थी जो स्पष्ट रूप से जैविक हथियारों के विकास, भंडारण, उत्पादन और हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाती थी।
  • देश भारत में बायो टेररिज्म की चुनौतियां से निपटने के लिए गृह मंत्रालय एक नोडल एजेंसी है इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय, डीआरडीओ, पर्यावरण मंत्रालय इत्यादि भी सक्रिय रुप से बायोटेररिज्म पर कार्य कर रहे हैं
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने बायो टेररिज्म से निपटने हेतु एक दिशानिर्देश तैयार किया है जिसमें सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ निजी एजेंसियों की सहभागिता पर भी बल दिया गया है
  • इन प्रयासों को दो प्रकार से देखा जा सकता है

1. पर्यावरण सुरक्षा कानूनों के माध्यम से बायो एजेंट पर नियंत्रण

  1. द एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897,
  2. जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974
  3. वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981
  4. सूक्ष्मजीव/अनुवांशिक रूप से अभियंत्रित किए गए जीवों या कोशिकाओं का निर्माण, उपयोग आयात, निर्यात और भंडारण अधिनियम 1989
  5. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986
  6. पशुधन आयात अधिनियम, 2001
  7. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005

2. द्वितीय प्रकार के कानूनों में हम ऐसे कानूनों को रख सकते हैं जिससे आतंकवादियों पर नियंत्रण लगाए जा सके

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980,TADA - (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज). पोटा इत्यादि को रख सकते हैं

क्या करने की जरूरत है?

चुकी बायो टेररिज्म एक वैश्विक समस्या है अतः सभी हित धारको को इसके लिए मिलजुल कर काम करना होगा। रक्षा मंत्री राजनाथ का शंघाई सहयोग संगठन के मंच से सदस्य देशों के बीच आवश्यक क्षमता संवर्धन विकसित करने की प्रतिबद्धता इसी क्रम में दिखाई पड़ती है। सभी देशों को मिलजुल कर ना केवल इस दिशा में सुरक्षा उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है बल्कि भविष्य में ऐसी आने वाली चुनौतियां से निपटने के लिए शोध की भी आवश्यकता होगी जिससे व्यापक मात्रा में स्वास्थ्य सुविधाएं एवं वैक्सीन इत्यादि को विकसित किया जा सके। इसके लिए सभी वैश्विक मंचों से निर्विवाद रूप से जैव आतंकवाद के सभी स्वरूपों पर ना केवल प्रतिबंध लगाया जाए वरन इनके आवागमन को निश्चित करने वाले जरूरी उपायों को भी विकसित किया जाए। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर सेना, खुफिया एजेंसियां, स्वास्थ्य संगठन इत्यादि में व्यापक रूप से तालमेल हो जिससे सुरक्षा प्रतिमान को विकसित करने के साथ-साथ इंजॉय हथियारों के विरुद्ध स्वास्थ्य सुविधाओं का भी विकास किया जा सके।