(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) अरुणाचल प्रदेश छठी अनुसूची की मांग (Arunachal Pradesh : Why Groups are Raising Demands for 6th Schedule)
बीते 14 अगस्त, 2020 को अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पटकाई स्वायत्त परिषद और सोम स्वायत्त क्षेत्र के संभावित समाधानों पर चर्चा करने के लिए उपमुख्यमंत्री चोउना मीन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। गौर तलब है की काफी समय से अरुणाचल प्रदेश में दो स्वायत्त परिषदों की स्थापित करने की मांग उठ रही है। हाल ही में इन मागों के साथ ही प्रदेश के राजनीतिक दलों तथा अन्य समुदायों ने पूरे अरुणाचल प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची अथवा अनुच्छेद 371 इकत्तर (A) के दायरे में लाने के लिए माग की है।
क्यों उठ रही हैं मांगें
मौजूदा वक़्त में अरुणाचल प्रदेश को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत रखा गया है। इसमें छठी अनुसूची की भांति ‘देशज समुदायों’ या स्थानीय समुदायों को विशेष अधिकार नहीं दिए जाते।
कई राजनीतिक दलों ने भी अरुणाचल प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग की है। छठी अनुसूची में शामिल होने के बाद अरुणाचल प्रदेश के मूल निवासियों को सभी प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक़ मिल जायेंगे। गौर तलब है की अभी इन समुदायों को महज़ संरक्षक के अधिकार मिले हुए हैं। राज्य को छठी अनुसूची में शामिल किये जाने के बाद राज्य की केंद्रीय अनुदान से निर्भरता ख़त्म हो जाएगी। इस की वजह ये है की इसके बाद राज्य को प्राकृतिक संसाधनों पर वैध मालिकाना तौर पर हक़ मिल जायेग।
क्या है संविधान की छठी अनुसूची
मौजूदा समय में छठी अनुसूची के तहत चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की 10 स्वायत्त जिला परिषदों को शामिल किया गया है। संविधान की छठी अनुसूची को साल 1949 उनचास में संविधान सभा ने पारित किया था...इसका मकसद स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् और स्वायत्त जिला परिषदों के ज़रिये आदिवासियों के हक़ों की रक्षा करनी थी....
छठी अनुसूची के तहत आने वाले विशेष प्रावधानों के सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद 244 चोवालिस (2) और अनुच्छेद 275 पचत्तर (1) में उपबंध किये गए हैं।
छठी अनुसूची के प्रमुख प्रावधान
इसके तहत चार राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है, किंतु इन्हें संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के अधीन रखा गया है।
स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार राज्यपाल को है।
अगर एक स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
संरचना: प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल पाँच साल का होता हैं। हालांकि यह भी तब होता है जब परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि,वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, किंतु ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
अपने क्षेत्रीय न्यायालयों के अंतर्गत ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्य पालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है। यह गैर आदिवासियों द्वारा ऋण एवं व्यापार के नियंत्रण के लिये नियम भी बना सकती है लेकिन ऐसे नियमों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है। जिला और क्षेत्रीय परिषदों को भूमि राजस्व का आकलन करने, संग्रह करने तथा कुछ निर्दिष्ट करों को लगाने का अधिकार है।
बोरदोलोई समिति
ये समिति संविधान सभा द्वारा गठित की गयी थी । इसे पूर्वोत्तर में जनजातीय क्षेत्रों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करने के लिए गठित किया गया था। इस समिति ने भारत में स्वायत्त प्रशासन परिषदों (Autonomous Councils) की अवधारणा केमद्देनज़र नियम बनाये
उत्तर पूर्व में स्वायत्त परिषदें
मौजूदा समय में उत्तर पूर्व में 10 स्वायत्त परिषद और लद्दाख में 2 स्वायत्त परिषद हैं...
- मेघालय: खासी हिल्स स्वायत्त परिषद, जयंतिया हिल्स स्वायत्त परिषद और गारो हिल्स स्वायत्त परिषद
- मिजोरम: चकमा स्वायत्त परिषद, मारा स्वायत्त परिषद, लाइ स्वायत्त परिषद
- त्रिपुरा: त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनमस काउंसिल
- असम: बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद और दिमा हसाओ स्वायत्त परिषद
- लद्दाख: कारगिल और लेह