(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) अनुच्छेद 15 (Article 15)
मुख्य बिंदु:
28 जून को रिलीज़ हुई फिल्म आर्टिकल 15 के बाद से अनुच्छेद 15 आज कल चर्चा में है। ये फिल्म भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 पर आधारित है, जो धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। तो आईये आज के DNS में अनुच्छेद 15 को विस्तार से जानेंगे।
रूढ़िवाद सोच, जाती व्यवस्था, धर्म के नाम पर भेदभाव, और छुआ-छूत भारत के विकास में सबसे बड़े अवरोधक थे । जिस कारण एक ऐसे भारत का निर्माण होना ज़रूरी था जिसके सभी नागरिक समान हो । इसलिए संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया। इन मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 15 भी आता है जिसका मुख्य उद्देश्ये लोगों में समानता रखना है ।
अनुच्छेद 15 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति कानून की नज़रों में समान हैं । इस अनुच्छेद के मुताबिक राज्य, नागरिकों के बीच धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। इन्ही मानकों के आधार पर किसी भी व्यक्ति को किसी दुकान, सार्वजनिक भोजनालियों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों पर जाने से नहीं रोक सकता। साथ ही सरकारी फण्ड से बने कुओं, स्नानघाटों, तालाबों, सड़कों, पब्लिक रिसॉर्ट्स में जाने से भी नहीं रोक सकता।
इस अनुच्छेद के मुताबिक राज्य, बच्चों और महिलाओं के लिए
प्रावधान कर सकती है। बच्चों को निशुल्क शिक्षा या महिला आरक्षण जैसे प्रावधान इसी
अनुच्छेद के अंतर्गत आते हैं। महिलाओं और बच्चों के अलावा ये अनुच्छेद SC, ST , OBC
के हित में भी प्रोविशंस बना सकता है। SC , ST , और OBC ya शैक्षिक और सामाजिक रूप
से पिछड़े वर्ग की बेहतरी के लिए सरकार फ्री और स्पेशल व्यवस्था कर सकती है।
अनुच्छेद 15 को मौलिक अधिकार इसलिए कहा जाता है क्यूंकि ये भारत के संविधान में
शामिल हैं। इस अनुच्छेद का मौलिक अधिकारों में शामिल होने को मतलब है कि ये अधिकार
सभी को समान रूप से प्राप्त हैं। मौलिक अधिकार साधारण अधिकारों से अलग होते हैं।
मौलिक अधिकार देश के संविधान द्वारा बनाये जाते हैं और इनकी रक्षा भी संविधान ही
करता है। जबकि साधारण अधिकार राज्य द्वारा बनाये जाते हैं और इनकी रक्षा राज्य
सरकार के हाथ होती है।
अनुच्छेद 15 ठीक से लागू हो, ये सुनिश्चित करने के लिए कुछ योजनाए भी हैं जैसे :
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, इस अधिनियम के मुताबिक , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा । या उन पर हुयी कोई भी हिंसा सिर्फ इस कारण से न हो के वे इस श्रेणी से हैं। जैसे: एससी या एसटी के किसी भी सदस्य के साथ भेदभाव करने वाले व्यक्ति को कारावास और जुर्माने के साथ ही दंडित किया जा सकता है। और इस स्थिति में अपराधी को सुरक्षित जमानत का अधिकार भी नहीं है।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 । ये अधिनियम महिलाओं को उनकी संपत्ति से सम्बंधित पूर्ण अधिकार देता है । ये अधिकार पुरुषों के पास पहले से ही हिंदू कानून के तहत था। ये अधिनियम ये सुनिश्चित करता है कि महिलाओं के साथ सीमित मालिकाना हक़ जैसा भेदभाव न हो।
इसके अलावा Maternity Benefits Act, 1961, Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 , Rights of Persons with Disabilities Act, 2016, Mental Healthcare Act, 2017, आदि।
अनुच्छेद 15 का एक और उद्धारहण ट्रांसजेंडर्स के हित में दिया सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। इस फैसले में ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गयी इसी के साथ उन्हें समान अवसर और अधिकार भी दिए गए क्यूंकि समाज ने इन उक्त वर्ग के साथ भेदभाव किया था। सिर्फ यही नहीं, सरकार ने अनुच्छेद 15 के बारे में स्कूली छात्रों को शिक्षित करने की भी पहल उठायी थी । जिसके परिणामस्वरूप बैंगलोर के inventure एकेडमी स्कूल ने आठ वर्षों के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया है, जो अपने छात्रों को संविधान में निहित अधिकारों और कर्तव्यों को सिखाता है, कक्षा 5 के बच्चों को हर साल पहले semester में कंस्टीटूशन के बारे में पढ़ाया जाता है।
संविधान को पढ़ाने का यह मुद्दा 2015 में सामने आया जब तत्कालीन सरकार ने स्कूलों में पहली बार 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्देश दिया।
दिल्ली के सभी स्कूलों में शैक्षणिक सत्र 2019-2020 में 10 महीने का लंबा कार्यक्रम शुरू हो चूका है, जिसके तहत कक्षा 6-12 वीं के छात्र प्रत्येक सप्ताह 'संवैधानिक मूल्यों' को पढ़ेंगे।
और कानूनी शिक्षा के साथ-साथ नागरिक शास्त्र भी कई सालों से शैक्षिक पाठ्यक्रम का एक हिस्सा रहा है जिसके अंतर्गत छात्रों को भारतीय संविधान के मूल सिद्धांत समझाये जाते हैं।