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Blog / 10 Aug 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) तीन तलाक खत्म (An End of Triple Talaq)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) तीन तलाक खत्म (An End of Triple Talaq)


मुख्य बिंदु:

मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 को संसद में मंज़ूरी मिल गई है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद बीते दिनों इस पर राष्ट्रपति ने भी अपनी मुहर लगा दी है। संसद में मिली इस मंज़ूरी के बाद तीन तलाक क़ानून को लेकर बनी सभी मुश्किलें अब ख़त्म हो गई है। तीन तलाक क़ानून को अब 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा। यानी 19 सितंबर 2018 के बाद तीन तलाक से जुड़े सभी मामलों का निपटारा इसी क़ानून के आधार पर किया जायेगा। ग़ौरतलब है कि मौजूदा सरकार ने इस बिल को 25 जुलाई को लोकसभा और 30 जुलाई को राज्यसभा से पास कराया था। इससे पहले 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी शायरा बानों बनाम भारत संघ मामले में तलाक- ए - बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया था।

DNS में आज हम आपको तीन तलाक से जुड़े मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े विवादित मुद्दों के बारे में..

मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 के तहत तीन तलाक के मामले को अब दंडनीय अपराध माना जाएगा। विधेयक में प्रावधान है कि मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या किसी अन्य रूप से दिए गए तीन तलाक को अवैध और ग़ैर क़ानूनी माना जाएगा।इसके अलावा विधयेक में प्रस्ताव है कि तत्काल तीन तलाक देने वाले पति को 3 साल तक की सज़ा और जुर्माना भी हो सकता है। विधेयक के तहत तीन तलाक को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है जिसका मतलब है कि महिला के शिकायत पर पुलिस बिना वारंट के आरोपित व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है। हालाँकि विधयेक में मजिस्ट्रेट को आरोपी व्यक्ति को जमानत देने का अधिकार भी दिया गया है। आरोपित व्यक्ति को पुलिस गिरफ़्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगी। जिसके बाद मजिस्ट्रेट इस मामले में मुकदमे से पहले तलाक देने वाले शख़्स की पत्नी का पक्ष सुन कर ज़मानत दे सकता है।

बिना पीड़ित महिला की रज़ामंदी के मजिस्ट्रेट कोई समझौता और ज़मानत नहीं दे सकता है। विधेयक में इस बात का भी ज़िक्र है कि पीड़िता के रक्त संबंधी और विवाह के बाद बने उसके संबंधी ही पुलिस में FIR दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा इस मामले को लेकर कोई पड़ोसी या कोई अन्य व्यक्ति तीन तलाक़ का केस नहीं दर्ज करा सकता है। विधेयक में पीड़ित महिला के गुज़ारे- भत्ते का भी प्रावधान किय गया है। तीन तलाक से पीड़ित अब कोई भी महिला ख़ुद और अपने बच्चे के लिए गुज़ारा भत्ता पाने की हक़दार होगी। ये गुज़ारा भत्ता मजिस्ट्रेट द्वारा तय किया जायेगा जिसे उसके पति यानी तलाक़ देने वाले शख़्स को ही देना होगा। साथ ही नाबालिक बच्चे को रखने का अधिकार भी पीड़ित महिला के ही पास रहेगा।

तीन तलाक़ है क्या?

तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत। इसे ‘इंस्टेंट तलाक’ या मौखिक तलाक भी कहा जाता है। मुस्लिम समाज में तीन तलाक के तहत कोई पति अपनी पत्नी से अपने संबंधों को ख़त्म करने के लिए तलाक देता है। अक्सर तीन तलाक के मामले मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में देखे गए हैं।

भारत में तीन तलाक मसले को लेकर चलरे आ रहे विवाद के बारे में साथ ही इस पर सुप्रीम कोर्ट की राय के बारे में ?

तीन तलाक को लेकर भारत में पहली बार 80 के दशक में आवाज़ उठाई गई थी। दरअसल 1978 में 62 साल की एक मुस्लिम महिला शाह बानों को उसके पति ने तलाक़ दिया था। पांच बच्चों की मां रही शाह बानों ने जब अपने पति से गुज़ारा भत्ता की मांग की तो उनके पति ने गुज़ारा भत्ता देने से इंकार कर दिया। ऐसे में 1981 में तीन तलाक़ को लेकर शाह बानों का पहला मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानों के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने धारा - 125 के तहत गुज़ारा भत्ता देने का हक़ तय किया। लेकिन मौजूदा सरकार ने संसद से क़ानून बना सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को बदल दिया था। मौजूदा सरकार ने द मुस्लिम प्रटेक्शन एक्ट 1986 ला कर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश जिसके तहत धारा - 125 में मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने का हक़ देना तय हुआ था उसे समाप्त कर दिया। 2016 में एक बार फिर एक और मुस्लिम महिला सायरा बानों ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कई और मामलों के साथ तीन तलाक पर सुनवाई शुरू की और अगस्त 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया। इस मामले पर सुनवाई के लिए गठित 5 में से 3 न्यायाधीशों ने तीन तलाक को समानता का अधिकार सुनिश्चित करने वाले अनुछेद 14 का उलंघन बताया और कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि ये प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को ख़त्म कर देती है। इसलिए इसे ख़त्म करने के लिए क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार ने पहले विधेयक और फिर अध्यादेश ला कर इसे क़ानून बनाने की कोशिश की। हालाँकि विधयेक के राजयसभा से पारित न हो पाने और फिर अध्यादेश के 16 वीं लोकसभा के समाप्त होने के बाद निरस्त हो जाने से एक बार फिर से 17 वीं लोकसभा में नया विधेयक लाकर क़ानून बनाया गया है।

सरकार के मुताबिक़ अरब देश भी तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को समाप्त कर रहे हैं। मौजूदा वक़्त में कुल 22 मुस्लिम देश तीन तलाक को ख़त्म कर चुके हैं। मिस्र दुनिया का पहला ऐसा देश हैं, जहां तीन तलाक पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। इसके अलावा हमारे पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान में भी 1956 से ही तीन तलाक पर बैन है। इस सूची में सूडान, साइप्रस, जार्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर और यूएई जैसे देश भी शामिल हैं जहां तीन तलाक़ पर प्रतिबन्ध है।

क़ानून मंत्री के मुताबिक़ जब मुस्लिम देश तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को ख़त्म कर सकते हैं तो भारत जैसे लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में भी इसे समाप्त किया जाना बेहद ही ज़रूरी है। सरकार का मानना है कि तीन तलाक से पीड़ित क़रीब 70% महिलाऐं ग़रीब परिवारों से आती हैं। ऐसे में बिना किसी क़ानून के इन महिलाओं को न्याय मिल पाना बहुत मुश्किल था।

हालाँकि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 का मुस्लिम परसनल बोर्ड ने विरोध किया है। इसके अलावा विधेयक में प्रस्तावित प्रावधानों में सज़ा के नियमों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं ? एक पक्ष का कहना है कि तीन तलाक को ग़ैरकानूनी बनाना ठीक था लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में रखना ग़लत है। तीन तलाक से लैंगिक समानता नहीं आती है। शिक्षा, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे मुद्दे लैंगिक समानता के लिए ज़रूरी होते हैं। वही सरकार का इस मसले पर कहना ये है कि इसे अपराध की श्रेणी में रखने का मतलब ये नहीं है कि किसी व्यक्ति को जबरन जेल भेजना। इसका मक़सद मुस्लिम महिला के साथ हो रहे अन्नय को रोकना है। इसलिए सरकार ने इसे क़ानून के ज़रिए और सशक्त बनाने की कोशिश की है।

जानकारों का कहना है कि इस क़ानून के आने के बाद महिलाओं को लैंगिक बराबरी का अधिकार मिलेगा। साथ ही मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार भी सुनिश्चित होंगे। इस मामले पर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल समाज में परिवर्तन की गति धीमी होती है। अगर समाज अपने आप को ठीक करनी की स्थिति में नहीं है तो क़ानून की ज़रूरत पड़ती है। सरकार के भी मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट से तीन तलाक को ग़ैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद भी तीन तलाक नहीं रुका है।