(Video) पूर्वोत्तर विशेष (North East Special) भारत सरकार के लिए था चुनौती अंगामी ज़ापू फिज़ो (A. Z. Phizo: A Challenge to Indian Government "Nagaland Part - 2")
सन्दर्भ:
पूर्वोत्तर भारत का वो शख़्स अब सीधे नेहरू सरकार को चुनौती दे रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना के साथ रहा नागाओं का ये मसीहा अब भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा था। कभी पकिस्तान तो कभी बर्मा में रहकर अपने आंदोलनों को मज़बूती देने वाला ये विद्रोही नेता अपने अंतिम क्षणों तक नागालैंड को भारत से आज़ाद किए जाने की मांग करता रहा
पूर्वोतर भारत में कहानी अंगामी ज़ापू फ़िज़ो की जिसने नागालैंड को भारत से अलग कराने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी...
भारत आज़ादी के क़रीब था। अंग्रेजी हुक़ूमत भी अब भारत से वापसी की तैयारी कर रही थी। लेकिन आज़ादी के मिलने के पहले भारत में ढ़ेर सारी घटनाएं भी तेज़ी से दर्ज़ की जा रही थी। देशी रियासतें और आज़ाद हिंदुस्तान के कई इलाके ख़ुद को भारत से अलग किए जाने की मांग कर रहे थे। ये मांगें पूर्वोत्तर के इलाक़ों में कुछ ज़्यादा थीं। जिसमें असम राज्य का हिस्सा रहा नागा हिल्स भी शामिल था।
1904 में नागा हिल्स में जन्में अंगामी ज़ापू फिज़ो ने भारत के ख़िलाफ़ जंग छेड़ रखी थी। फ़िज़ो पूर्वोत्तर की जनजातियों के साथ मिल कर एक अलग राष्ट्र बनाए जाने की मांग कर रहा था। लेकिन मुश्किलों के दौर में उलझे भारत ने उस वक़्त इस समस्या पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। जिसके चलते भारत को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
नागा जनजाति के अंगामी कबीले से ताल्लुक़ रखने वाला फिज़ो नागा हिल्स को भारत में शामिल किए जाने का विरोध कर रहा था। फ़िज़ो नहीं चाहता था कि नागा हिल्स को भारत में शामिल किया जाय। फ़िज़ो ने इसके लिए 1946 में नागा नेशनल काउंसिल यानी NNC का गठन किया था। लेकिन बाद में NNC के ही कुछ नेताओं ने 29 जून 1947 को हुए हैदरी समझौते पर सहमति जाता दी जिसके बाद नागा हिल्स को भारत में शामिल कर लिया गया।
29 जून को असम के गवर्नर अकबर हैदरी और NNC नेताओं के बीच एक समझौता हुआ था। समझौते में NNC के नेता टी सखरी और अलीबा इम्ति शामिल थे। हैदरी समझौते में क़रीब 9 बातें रखीं गईं थी। जिसकी शर्ते कुछ इस प्रकार थी - NNC नेताओं का कहना था कि असम के राज्यपाल को भारत के एजेंट के रूप में ये जिम्मेदारी दी जाय कि वो अगले 10 सालों तक नागा हिल्स को भारत में शामिल किए जाने का जो क़रार हुआ है वो उसका भारत से पालन करवाएंगे। साथ ही राजयपाल की एक जिम्मेदारी ये भी होगी कि क़रार समाप्त होने के बाद NNC नेताओं से ये पूछा जाय कि वो आगे भारत के साथ रहना चाहते हैं या नहीं। इसके साथ ही नागालैंड जब भी चाहे वो भारत से आज़ाद हो सकता है।
29 जून को हुए इस समझौते का फ़िज़ो ने बहिष्कार किया था। फ़िज़ो भारत की कई अन्य रियासतों की ही तरह नागा हिल्स को भी भारत से अलग किए जाने की मांग कर रहा था। लेकिन पकिस्तान बंटवारे में उलझे भारत ने फ़िज़ो की इन बातों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। जिसके बाद NNC नेता अंगामी ज़ापू फिज़ो ने 14 अगस्त 1947 को पकिस्तान को आज़ादी मिलने के साथ ही नागा हिल्स को भी भारत से अलग किए जाने का ऐलान कर दिया। फिज़ो के इस ऐलान के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा ख़तरे में आ गई। क्यूंकि यहां पाकिस्तान की तरह नागा हिल्स को कोई मान्यता नहीं दी गई थी।
अंगामी ज़ापू फिज़ो अब नागा आंदोलन का हीरो बन गए था। जिसके बाद उसने अपनी गतिविधियों को और तेज़ कर दिया। 1950 तक आते - आते फ़िज़ो को NNC पार्टी का अध्यक्ष भी बन गया और 1951 में उसने एक जनमत संग्रह भी करवाया। ये जनमत संग्रह नागा हिल्स को भारत से अलग किए जाने के लिए कराया गया था। जिसका क़रीब 99% लोगों ने समर्थन भी किया। भारत सरकार ने फ़िज़ो के इस रेफरेंडम को बेबुनियाद बताया और इसे मानने से इंकार कर दिया। लेकिन भारत सरकार की ओर से जनमत संग्रह को ख़ारिज़ करने के बावजूद भी फिज़ो ने अपनी एक सरकार बनाई जिसका नाम था - नागा फेडरल गवर्नमेंट यानी NFG...
NFG सरकार 22 मार्च 1956 को गठित की गई थी। फ़िज़ों ने अपनी सरकार के साथ ही अपनी ख़ुद की एक आर्मी भी बनाई थी और इस आर्मी का नाम था- नागा फेडरल आर्मी यानी NFA...
फ़िज़ो की ये आर्मी अब सीधे नेहरू सरकार को चुनौती दे रही थी। गुरिल्ला युद्ध में माहिर फ़िज़ो की ये आर्मी भारतीय सैनिकों पर भी भारी पड़ रही थी। पहाड़ी और जंगली इलाकों के कारण भारतीय सैनिक भी आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। जिसके बाद भारत सरकार को भी आंतरिक सुरक्षा का ख़तरा सताने लगा था। नागा समस्या से निपटने के लिए 1958 में भारत सरकार ने वहां अफस्पा कानून लागू कर दिया। अफस्पा लगते ही फ़िज़ो सरकार ध्वस्त हो गई। जिसके बाद नागा फेडरल आर्मी भी भूमिगत हो गई और ख़ुद अंगामी ज़ापू फ़िज़ो को भी भारत छोड़ कर भागना पड़ा।
भारत छोड़ने के बाद फ़िज़ों पूर्वी पकिस्तान और बर्मा के इलाकों में रहा। क़रीब 3 साल तक भारत के पड़ोसी मुल्कों में रह कर फ़िज़ो ने भारत के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियों को काफी जोर- शोर से जारी रखा। लेकिन 1960 तक आते आते भारतीय सेना भी फ़िज़ो पर हावी हो गई थी। फ़िज़ो को अब ये महसूस होने लगा था वो अपने मंसूबों में क़ामयाब नहीं हो पायेगा। लेकिन इसके बावजूद भी फ़िज़ो ने अपनी लड़ाई जारी रखी और नागा हिल्स को भारत से अलग कराए जाने के लिए पश्चिमी देशों की शरण में पहुंचा।
प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब "इंडिया आफ़्टर गांधी" के मुताबिक़ फ़िज़ो एक फ़र्ज़ी पासपोर्ट के ज़रिए पहले स्विट्ज़रलैंड पहुंचा और फिर बाद में ईसाई मिशनरी से जुड़े माइकल स्कॉट के सपोर्ट से इंग्लैंड में रहने लगा।
स्कॉट ने फ़िज़ो की इंग्लैंड में एक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करवाई थी। जिसमें फ़िज़ों ने कहा कि - भारतीय सेन नागा समुदाय के लोगों का नरसंहार कर रही है। भारतीय सेना द्वारा नागा समुदाय की सदियों से चली आ रही परम्परा को नष्ट किया जा रहा है। फ़िज़ों ने भारतीय सेना के अभियान को यूरोपियन फासीवाद से भी बदतर बताया और अपील की कि भारतीय सेना के कत्लेआम पर रोक लगाई जाय और नागा हिल्स को अलग देश की मान्यता दी जाए।
दरअसल फ़िज़ो नगाहिल्स को भारत से आज़ाद करा कर एक ईसाई मुल्क़ बनाना चाहता था। द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना ज्वाइन करने के पीछे भी फ़िज़ो का यही मकसद था। फ़िज़ो को जापानी सेना से उम्मीद थी कि अगर वो ब्रिटेन से युद्ध जीतता है तो पूर्वोत्तर के इलाक़े भारत से अलग कर दिए जायेंगे और उसे एक नया मुल्क़ घोषित कर दिया जायेगा। लेकिन फ़िज़ो इनमें से अपने किसी भी मंसूबे में क़ामयाब नहीं हो सका और आख़िरकार 1990 में लंदन में फ़िज़ो की मौत गई।
1958 में नगा हिल्स पर लगे अफस्पा कानून के बाद भारत सरकार अब नागा समस्या को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहती थी। जिसके लिए 1963 में भारत सरकार ने पहले नागा हिल्स को असम से अलग किया और फिर नागा हिल्स को भारत के 16 वें राज्य के तौर पर मान्यता दे दी गई। अलग राज्य बनने के बाद से ही नागा हिल्स को नागालैंड के नाम से जाना जाता है। मौजूदा नागालैंड को नागा हिल्स और त्यूएनसांग इलाके को जोड़ कर बनाया गया है। भारत सरकार ने नागालैंड को विशेष अधिकार भी दिए हैं जिसे संविधान में आर्टिकल 371 A के रूप में शामिल किया गया है।