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Blog / 04 Dec 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 3 दिसंबर - विश्व दिव्यांग दिवस (3rd December - International Day of Persons with Disabilities)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 3 दिसंबर - विश्व दिव्यांग दिवस (3rd December - International Day of Persons with Disabilities)


अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (International Day of Disabled Persons) पूरे विश्व में 3 दिसंबर को मनाया जाता है।इस बार के दिवस का मुख्या विषय है " दिव्यांगों को मिले सामान अवसर "। इस दिवस का मकसद शारीरिक रूप से अक्षम लोगो को समाज की मुख्य धारा में लाना है। साथ ही इस दिन को मनाने की एक वजह ये भी है की , दिव्यागों के प्रति लोगों का रवैया बदला जा सके और उनके अधिकारों के प्रति लोगों में जागरुकता लाई जा सके। इस दिवस का मकसद आधुनिक समाज में दिव्यांगों साथ हो रहे भेद-भाव को ख़त्म किया जाना है।

गौर तलब है की सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर 1992 से हर साल अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाने की मंज़ूरी दी थी।

इसके पहले सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में घोषित किया था। सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सयुंक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर वर्ष 1983-92 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस दशक घोषित किया था।

भारत जैसे देश में दिव्यांग लोगों की कुल संख्या तकरीबन २.68 करोड़ है जो देश की जनसँख्या का तकरीबन २.21 %है। आपको बता दे की भारत में दिव्यांगता की परिभाषा दिव्यांगजन अधिनियम 1995 में दी गयी है पुनर्वास परिषद् अधिनियम 1992 का सम्बन्ध दिव्यँग लोगों से है भारत में विकलांगो से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आधीन होता है।

दिव्यांगजन अधिकार अधिकार अधिनियम २०१६ में दिव्यांगों के अधिकार बढ़ा कर ७ से २१ कर दी गयी है दिव्यांगों को शिक्षा और नौकरी में आर्कषण बढ़ाकर ३ से ४ फीसदी किया गया इसके अलावा दिव्यांगों को आर्थिक सहायता देने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निधि का निर्माण किया गया।

दिव्यांगजनों की मदद करने के लिए सुगम्य भारत अभियान शुरू किया गया इसके अलावा दिव्यांगों के लिए स्वावलम्बन स्वस्थ्य बीमा योजना भी शुरू की गयी।

भारत में दिव्यांगो की मदद के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन इतने वर्षो बाद भी देश में आज तक आधे दिव्यांगो को ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र मुहैया कराया जा सका है। ऐसे में दिव्यांगो के लिए सरकारी सुविधाएं हासिल करना महज मजाक बनकर रह गया हैं। भारत में आज भी दिव्यांगता प्रमाण पत्र हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है।संगम योजना का संबंध भारत में विकलांगो से संबंधित है।

सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों के कई दिनों तक चक्कर लगाने के बाद भी लोगों को मायूस होना पड़ता है। हालांकि सरकारी दावे कहते हैं कि इस प्रक्रिया को काफी सरल बनाया गया है, लेकिन हकीकत इससे काफी दूर नजर आती है।

दिव्यांगता का प्रमाणपत्र जारी करने के सरकार ने जो मापदण्ड बनाए हैं। अधिकांश सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक उनके अनुसार दिव्यांगो को दिव्यांग होने का प्रमाण पत्र जारी ही नहीं करते है। जिसके चलते दिव्यांग व्यक्ति सरकारी सुविधायें पाने से वचिंत रह जाते हैं। सरकार द्वारा देश में दिव्यांगो के लिए कई नीतियां बनाई गई है। उन्हें सरकारी नौकरियों, अस्पताल, रेल, बस सभी जगह आरक्षण प्राप्त है। दिव्यांगो के लिए सरकार ने पेशन की योजना भी चला रखी है। लेकिन ये सभी सरकारी योजनाएं उन दिव्यांगो के लिए महज एक मजाक बनकर रह गयी हैं। जब इनके पास इन सुविधाओं को हासिल करने के लिए दिव्यांगता का प्रमाणपत्र ही नहीं है।संविधान के भाग ३ के अंतर्गत मूल अधिकारों में दिव्यांगों से उपेक्षा हीन व्यहार करने को कहा गया है।

देश में दिव्यांगो को दी जाने वाली सुविधाएं कागजों तक सिमटी हुई हैं। अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां दिव्यांगो को एक चौथाई सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है। केन्द्र सरकार ने देशभर के दिव्यांग युवाओं को केन्द्र सरकार में सीधी भर्ती वाली सेवाओं के मामले में दृष्टि बाधित, बधिर और चलने-फिरने में दिव्यांगता या सेरेब्रल पाल्से के शिकार लोगों को उम्र में 10 साल की छूट देकर एक सकारात्मक कदम उठाया है।

अब दिव्यांग लोगों के प्रति अपनी सोच को बदलने का समय आ गया है। दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा में तभी शामिल किया जा सकता है जब समाज इन्हें अपना हिस्सा समझें। इसके लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है। हाल के वर्षों में दिव्यांगो के प्रति सरकार की कोशिशों में तेजी आयी है।

दिव्यांगो को कुछ न्यूनतम सुविधाएं देने के लिए प्रयास हो रहे हैं। हालांकि योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सरकार पर सवाल उठते रहे हैं। पिछले दिनों क्रियान्वयन की सुस्त चाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार भी लगाई थी।

दिव्यांगों को शिक्षा से जोडऩा बहुत जरूरी है। मूक-बधिरों के लिए विशेष स्कूलों का अभाव है। जिसकी वजह से अधिकांश विकलांग ठीक से पढ़-लिखकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते हैं।

आधुनिक होने का दावा करने वाला हमारा समाज अब तक दिव्यांगो के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है। अधिकतर लोगों के मन में दिव्यांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है। ऐसे भाव दिव्यांगो के स्वाभिमान पर चोट करते हैं।