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Blog / 21 Jun 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 1967 का भारत-चीन युद्ध (1967 India-China War)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) 1967 का भारत-चीन युद्ध (1967 India-China War)



बीते 15 जून की रात को, लद्दाख के गालवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई. इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत करीब 20 जवान शहीद हो गए. खबर है कि चीनी सेना को भी भारी नुकसान हुआ है. इस घटना के बाद से आम लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ चुका है...??

1962 के बाद से भारत और चीन के बीच तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच कभी हिंसा नहीं हुई....लेकिन साल 1967 में भारत और चीन के बीच एक ऐसी हिंसक झड़प हुई थी जिसमें भारतीय सेना ने चीनियों के अकल को ठिकाने लगा दिया था. ...

1962 के युद्ध के बाद 1967 में भारतीय सेना ने जिस तरह अपना पराक्रम दिखाया था उससे सेना का आत्मविश्वास एक बार फिर से हरा-भरा हो गया था...

डीएनएस में आज हम जानेंगे कि 1967 की उस लड़ाई में क्या हुआ था और उस पूरी घटना के मायने क्या है…….

1962 की युद्ध में चीन ने जिस तरह से भारत की पीठ में छुरा घोंपा था, उसके बाद से भारत भी काफी सतर्क हो गया था. भारत ने अपनी सेना को और भी मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दी. बड़ी तादाद में फौज में भर्तियां की गई. सैनिक प्रशिक्षण और रणनीति को और उम्दा बनाया गया. भारत ने यह योजना बनाई कि एक तरफ तो चीन से बातचीत चलती रहेगी लेकिन दूसरी तरफ युद्ध की स्थिति में भारत चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम रहे. सेना में एक माउंटेन डिविजन्स तैयार किया गया. यह सेना की एक ऐसी टुकड़ी थी जो पहाड़ी इलाकों में युद्ध कला में माहिर थी. भारत में चीन की सीमा से सटे लगभग सारे इलाकों में इन टुकड़ियों को तैनात कर दिया. इसके अलावा, इन टुकड़ियों को सिक्किम में भी तैनात कर दिया गया. गौरतलब है कि उस वक्त सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन 1950 में भारत और सिक्किम के बीच हुए एक समझौते के तहत सिक्किम को भारत का संरक्षण मिला हुआ था.

इस तरह, भारत की सेना ने सिक्किम और तिब्बत की सीमा पर भी अपने माउंटेन डिविजंस को तैनात कर दिया...भारत-चीन सीमा पर जितने भी दर्रे थे उन पर सेना सघन निगरानी रख रही थी. सेना सिक्किम स्थित नाथू ला दर्रे पर भी तैनात थी. चीनी सेना को इस बात पर आपत्ति थी और वह चाहती थी कि भारतीय सेना नाथू ला और जेलेप ला से अपनी फौज वापस ले ले. जेलेप ला से तो भारतीय फौज पीछे हट गई लेकिन नाथूला पर तैनात टुकड़ी ने पीछे हटने से मना कर दिया. इतना ही नहीं, अपनी निगरानी और पेट्रोलिंग व्यवस्था को और भी दुरुस्त करने के लिए भारतीय सेना ने 6 सितंबर 1967 को नाथुला बॉर्डर के पास बाड़ बिछाने का काम शुरू कर दिया. दरअसल उस जगह दोनों देशों के बीच बॉर्डर की मार्किंग तय नहीं थी और आए दिन दोनों सेनाओं के बीच झड़प होती रहती था. भारतीय सेना ने इस झड़प से बचने के लिए नाथू ला के पास मौजूद सेबु ला और कैमल्स बैक तक एक बाड़ बिछाने का फैसला किया. यहां से नाथुला दर्रे पर बड़ी आसानी से नजर रखी जा सकती थी....

जब बाड़ बनने का काम शुरू हुआ तो चीनी सेना के पॉलिटिकल कमिसार अपनी फौज के साथ उस दर्रे के पास पहुंचे और उन्होंने भारतीय सेना को बाड़ का काम रोकने को कहा. भारतीय सेना की तरफ से उस वक्त वहां मौजूद लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह ने बाड़ का काम रोकने से मना कर दिया. अचानक यह बातचीत विवाद में बदल गई और दोनों तरफ से लात-घूंसे और धक्का-मुक्की शुरू हो गई. थोड़ी देर बाद चीनी पॉलिटिकल कमिसार अपनी फौज लेकर वापस लौट गए लेकिन उसके तुरंत बाद चीन की तरफ से हमला बोल दिया गया.

चीन की तरफ से अचानक किए गए इस हमले में भारतीय सेना के तकरीबन 70 जवान शहीद हो गए. हमारी सेना ने चीन के इस गोलीबारी का जवाब गोलों से देना शुरू किया. भारत के तोपखाने की पोजीशन चीन के तोपखाने के मुकाबले काफी बेहतर थे लिहाजा चीन को भारी नुकसान हुआ. 14 सितंबर को दोनों तरफ से गोलीबारी रोक दी गई लेकिन तब तक चीन की तरफ से करीब 400 सैनिक मारे जा चुके थे. उसके अगले दिन दोनों तरफ से जवानों के शवों का आदान-प्रदान हुआ...

इस घटना के करीब 20 दिन बाद इसी तरह की झड़प चो ला दर्रे में भी हुई. चो ला दर्रा, नाथुला दर्रे से कुछ ही किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में मौजूद है. 1 अक्टूबर 1964 को हुए इस झड़प में भारतीय सेना ने चीन को इस तरह से पछाड़ा कि चीनी सेना को करीब 3 किलोमीटर पीछे हटना पड़ा. आज भी चीन की सेना इसी पॉइंट पर तैनात है और इस पॉइंट को काम बैरक्स कहा जाता है. ..

बात सिर्फ मौत के आंकड़ों की नहीं है कि दोनों देशों में किस ओर से कितना नुकसान हुआ बल्कि नाथू ला और चो ला में मिली जीत ने भारतीय सेना को आत्मविश्वास से लवरेज कर दिया. यह बात साबित हो गई कि ड्रैगन चाहे जितना बड़ा और ताकतवर दिखे लेकिन बात अगर भारत की संप्रभुता और सम्मान की हो तो भारतीय सेना उसे भी मजा चखा सकती है....