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Blog / 03 Oct 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय मूर्ति और चित्रकला: सल्तनत और मुग़लकालीन चित्रकला (Sculpture and Painting: Sultanate and Mughal Period Paintings)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय मूर्ति और चित्रकला: सल्तनत और मुग़लकालीन चित्रकला (Sculpture and Painting: Sultanate and Mughal Period Paintings)


चित्रकला की विभिन्न विधाओं पर चर्चा करने के बाद अपने Art & Culture series के आज के अंक में हम कुछ अन्य चित्रकलाओं के बारे में चर्चा करेंगे-

मध्यकालीन भारतीय चित्रकला

विजयनगर काल की चित्रकला

इस काल की चित्रकला को दक्कन में एलोरा एवं दक्षिण में चोलों की शैली का विस्तार माना जा सकता है। विजयनगर के शासकों द्वारा संरक्षित चित्रकला शैली ‘लेपाक्षी चित्रकला’ के नाम से जानी जाती है। इस चित्रकला की विशेषता उनकी धरती वर्णता और नीले रंग का नितांत अभाव, है। इस शैली में सारे प्राथमिक रंगों का उपयोग नहीं हुआ है। आकृतियों के रूप और उनके परिधान विवरण काले रंग में रेखांकित हैं तथा अन्य रंगों का उपयोग सपाट ढंग से किया गया है। इन चित्रों में चेहरे प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर नहीं होते, अपितु उनका आधा भाग ही दिखाई देता है। वृक्ष, चट्टानें और भूदृश्य के दूसरे तत्व वस्त्र रूप में संयोजित हैं, जिनमें खाली स्थान का भराव किया गया है और दृश्यांकन करते समय वास्तविक दृश्य संगम की सभ्यता के अनुरूपण का कोई प्रयास नहीं किया गया है। पूर्ववर्ती भारतीय परंपराओं की तरह यथार्थवाद इनकी मुख्य चिंता नहीं रही है।

सल्तनत कालीन चित्रकला

भारत में इस्लाम के आगमन के बाद का संक्रमण काल 14वीं शताब्दी में सांस्कृतिक जागरण का परिणाम था। इस काल की चित्रकला में भारत में नयी आयी फारसी चित्रकला और पारम्परिक भारतीय शैलियों के सम्मिलन के प्रयास दृष्टिगोचर होते हैं। ‘नियामतनामा’ की चित्रित पांडुलिपि (आरंभिक 16वीं सदी) में फारसी और जैन चित्र शैलियों का समन्वय दिखायी देता है। सल्तनत कालीन चित्रकला के प्रयासों से भारत में महान मुगल, राजपूत और दक्कन में प्रमुख चित्रकला शैलियों का विकास हुआ। इनका विकास लगभग साथ-साथ, करीब 1550 ईसवीं के आसपास हुआ था। सभी में कुछ तत्व समान थे लेकिन हर शैली ने अपनी अलग पहचान भी सुरक्षित रखी थी।

मुगल कालीन चित्रकला

सल्तनतकाल में भारतीय चित्रकला की महान परंपरा उचित संरक्षण के अभाव में मृतप्रास सी हो गयी थी, परंतु मुगल शासकों ने न केवल इसे पुनर्जीवित किया, बल्कि इसको एक नया आयामि दया। दरअसल मुगल चित्रकला भारतीय तथा ईरानी चित्रकला के तत्वों के सम्मिश्रण का प्रतिफल थी। इस विशिष्ट चित्रकला शैली का आविर्भाव अकबर के कार्यकाल में हुआ। अकबर ने चित्रकला की एक ऐसी शैली का प्रादुर्भाव किया जो आश्चर्यजनक रूप् से अपनी प्रकृति में भारतीय थी, पर उस पर पारसी प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता था। इसका कारण यह था कि इन चित्रों का निर्माण मीर सैयद अली और अब्दुस्समद नामक दो पासी (ईरानी) उस्तादों के निर्देशन में हुआ था, जिन्हें अकबर ने प्रथम दिया था।

दरअसल मुगल अपने साथ ईरानी चित्रकला की परंपरा यहाँ ले आये थे। हुमायूँ अपने साथ प्रसिद्ध चित्रकार बिहजाद के दो शिष्यों को ईरान से ले आया था। उनका भारत के चित्रकारों से सम्पर्क हुआ और अकबर के शासन में इन दोनों शैलियों के समन्वय को बढ़ावा मिला। अब्दुस्समद, मीर सैयद अली, मिसकीन, दसवंत, बसावन, मुकुंद और अनेक दूसरे चित्रकारों का विवरण आइने-अकबरी में मिलता है। उन्होंने ‘दस्ताने-अमीर हम्जा’ और ‘बाबरनामा’ जैसी अनेक पुस्तकों को चित्रों से सजाया। अकबरनामा, जिसकी रचना अबुल फजल ने की थी, के कथानक पर आधारित अनेक चित्र अकबर ने बनवाये। अकबरनामा पर आधारित बने चित्रों में लगभग सौ चित्र ऐसे हैं जिन्हें उत्कृष्ट कलाकृतियों की श्रेणी में रखा जा सकता है।

हम्जानामा

यह मुगल चित्रणशाला की पहली अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति है। यह एक दुर्लभ पांडुलिपि के रूप में उपलब्ध है। इसके चित्र स्थूल और चटकीले रंगों में कपड़े (लिनेन) पर चित्रित थे, जो 27ष्ग20ष् आकार वाले असामान्य रूप से लंबे-चौड़े फोलियों के एक तरफ चिपकाए हुए थे। इसमें फारसी नायक अमीर हम्जा, अर्थात् अजरत मुहम्मद साहब के चाचा के वीरतापूर्ण कारनामों से संबंधित अर्द्धपौराणिक फंतासियों का चित्रण है, जिससे अकबर को बहुत लगाव था। हम्जानामा के चित्रों की विलक्षणताएँ विजातीय पेड़-पौधे और उनके रंग-बिरंगे फूल-पत्ते, स्थापत्य अलंकरण की बारीकियाँ, साजो-सामान आदि हैं। इसकी रंग योजना चमक-दमक वाली है, जिसमें लाल, नीले, पीले, कासनी, काले, हरे आदि रंगों के छपाके मिलते हैं।

दरअसल अकबरनामा में बने चित्र मुगल दरबार की गतिविधियाँ दर्शाने वाले असाधारण दस्तावेज हैं। इनमें महान राजपूत दुर्ग चित्तौड़ और रणथंमौर की पराजय का चित्रण, शिकार दृश्य, दरबार में आने वाले राजपूत, एक शहजादे के जन्म पर मनाए जाने वाले हर्ष-उल्लास के दृश्य और फतेहपुर-सीकरी के निर्माण के दृश्य हैं। अकबरकालीन चित्रकारों ने इसके अलावा भी अनेक चित्र बनाये, जिसमें भारतीय कथाओं पर आधारित चित्र, ऐतिहासिक चित्र और व्यक्तिपरक चित्र शामिल किये जाते हैं।

वस्तुतः अकबरकालीन चित्रों को चार श्रेणियों में रखा जाता हैः

  1. अभारतीय कथाओं के चित्रः इसमें ‘दास्तान-ए-अमीर-हम्जा’ (इस्लाम के वीर पौराणिक पुरूष) के चित्र प्रमुख हैं।
  2. भारतीय कथाओं के चित्रः इसके अंतर्गत भारतीय महाकाव्यों पर आधारित चित्र आते हैं, विशेषतया महाभारत और रामायण के कथानक पर आधारित चित्र।
  3. ऐतिहासिक चित्रः इसके अंतर्गत महत्त्वपूर्ण चित्रों की पोथी आती है।
  4. व्यक्ति चित्रः अकबर व्यक्ति चित्रों पर विशेष ध्यान देता था। राज्य के विशिष्ट व्यक्तियों और पूर्व पुरूषों के चित्रों का उसने एक एलबम तैयार कराया था।

अकबर कालीन कुछ चित्रों पर यूरोपीय प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। इसके समय के कुछ चित्रों में क्षितिज के दृश्य हैं, जिनमें दूरी का भ्रम देने के लिए नीले रंग का प्रयोग किया गया है। यह तरीका यूरोपीय कलाकारों से सीखा गया प्रतीत होता है। अकबर कालीन शिल्पकारों ने पश्चिमी कला से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित किया था। उसने 1575 में गोआ की पुर्तगाली बस्ती में कुछ चित्रकारों को भेजा था ताकि वे दुर्लभ कृतियाँ लेकन आयें और विदेशी कला, शिल्प और कौशल सीख सकें। अकबरनामा, रज्मनामा, अनवारे-सुहेली आदि कृतियाँ अकबर कालीन चित्रों के प्रमुख उदाहरण हैं।