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Blog / 19 Jun 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : नृत्य शैलियाँ - मोहिनीअट्टम (Indian Dance Forms: Mohiniyattam)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : नृत्य शैलियाँ - मोहिनीअट्टम (Indian Dance Forms: Mohiniyattam)


मुख्य बिंदु:

नृत्य की अपनी अब तक की यात्र में हमने कई पड़ाव देखे जिसमें ज्यादातर नृत्य भगवान और भक्त के मध्य सम्बन्ध को दर्शाते थे, जहाँ नर्तक या नर्तकी अपने नृत्य के द्वारा भक्ति की चरम अवस्था पर पहुँचकर भगवान के समक्ष खुद को समर्पित कर देते हैं।

भारत की विभिन्न संस्कृतियों को परिलक्षित करता नृत्य अपने आप में एक सम्पूर्ण अनुभूति है। अपने Art & Culture की नृत्य श्रृखंला में हम आज अगले पड़ाव मोहिनीअट्टम पर आ पहुँचे हैं।

आइये विस्तार से इस नृत्य की विशेषताओं के बारे में जानने का प्रयास करते हैं-

ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके राक्षसों के समक्ष अमृत को छिपाने या उनसे दूर रखने के लिए किया था। इससे पहले समुद्र मंथन में जो अमृत का पात्र निकला उस पर देवों और राक्षसों दोनों ने अपना दावा किया, राक्षसों को अमृत मिल जाने से उसका दुष्परिणाम हो सकता था, इसलिए ही भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में नृत्य करते-करते अमृत को बाँटने का फैसला किया।

ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप रख कर केरल के सागर तट पर किया, संभवतः इसीलिए इसे मोहिनी-अट्टम नाम दिया गया।

  • इसका उल्लेख दूसरी शताब्दी से ही मिलता है। केरल के इस नृत्य को अठारहवीं शताब्दी में एक ‘‘मानक रूप’’ प्राप्त हुआ था, किन्तु यह पारम्परिक रूप में ही बना रहा।
  • यह नृत्य भरतनाट्यम के काफी करीब माना जाता है। इस नृत्य शैली का सबसे प्रमुख और विशिष्ट गुण यह है कि इसमें दक्षिण की सभी प्रमुख भाषाओं का उपयोग होता है।
  • मेहिनी शब्द-भगवान विष्णु के नारी रूप, जो सौम्य, सुन्दर एवं मोहक है, उससे ही प्रेरित है।
  • एवं मोहिनीअट्टम लास्य से प्रेरित है जिसमें कोमल, शांत और सौम्य रूप से नृत्य किया जाता है, आमतौर पर यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • अर्थात् यह नृत्य करती सुन्दर नारी को भी प्रदर्शित करता है।
  • इस नृत्य में पैरों की जो मूल मुद्रा है वह कथकली से मिलती-जुलती है, किन्तु पद-संचालन भरतनाट्यम के अनुरूप है।
  • यह नृत्य देखने में इतना सुन्दर लगता है कि देखने वाले आश्चर्य चकित होकर रह जाते हैं।
  • ‘‘हस्त-लक्षण-दीपिका’’ नामक लेख में हाथों और चेहरे की मुद्राओं और भाव-भगिमाओं को बेहद विस्तृत रूप में प्रदर्शित किया गया है।
  • कथकली में जहाँ पैर के बाहरी हिस्से के सहारे खड़ा हुआ जाता है वही मोहिनीअट्टम में पूरा पैर जमाकर रखा जाता है।
  • इसी तरह इसमें अभिनय को अधिक वैभवपूर्ण और मुखर बनाया गया है।
  • इस नृत्य में सफेद या हल्के सफेद कपड़ो का ही उपयोग किया जाता है।
  • नर्तकी एक तरफ अपने बालों को सजाकर रखती है, जिसे ‘‘कुदुम’’ कहा जाता है।
  • इस नृत्य को एक क्रम अर्थात् Sequence में किया जाता है।
  • सर्वप्रथम मंगलाचरण से शुरूआत की जाती है।
  • उसके बाद जातिस्वरम्, वर्णम, श्लोकम् शब्दम, पदम और अंत में तिल्लाना क्रमबद्ध रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
  • लगभग लुप्त हो चुके इस नृत्य को नारायण मेनन में पुर्नजीवित किया। 1930 में इस राष्ट्रवादी मलयाली कवि ने केरल में मंदिर नृत्य पर प्रतिबंध को रदद् करने में मदद की और साथ ही केरल कलामंडलम नृत्य विद्यालय की स्थापना की और इसके प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए प्रोत्साहन दिया।
  • कालांतर में बैजयंती माला, शांता-राव, रोशन वजीफदार, रागिनी देवी और हेमा-मालिनी जैसी नृत्यागनाओ ने इसे अधिक लोकप्रिय बनाया।