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Blog / 08 Jun 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय नृत्य शैली - मणिपुरी (Indian Dance Forms: Manipuri)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय नृत्य शैली - मणिपुरी (Indian Dance Forms: Manipuri)


मुख्य बिंदु:

भारत में नृत्य पिछले 2000 वर्षों से निरन्तर सुनिश्चित दिशा में बढ़ता जा रहा है। यहाँ के विभिन्न प्रान्तों में नृत्य अलग-अलग शैलियों में प्रस्तुत किया जाता है। ये शैलियाँ इन प्रान्तों के विभिन्न आयामों को खुद में समेट कर एक अद्भुत रूप से प्रस्तुत करती है। इन शास्त्रीय नृत्यों को आध्यात्म से भी जोड़ा गया है या यूँ कहें कि भक्त और भगवान के मध्य तारतम्यता स्थापित करने के लिए नृत्य भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

ज्यादातार नृत्य परंपराये जो शास्त्रीय नृत्य के रूप में प्रचलित हैं, जिनका उद्भव हिन्दु धर्म में हुआ और ये मन्दिरों में विकसित हुए। कालान्तर में मन्दिरों से ये नृत्य परम्परायें विभिन्न राज दरबारों में पहुँची, उत्तर प्रदेश के राज दरबारों में कथक खूब फला-फूला। इसी तरह दक्षिण भारत के राजाओं के दरबारों में भरतनाट्यम समादूत हुआ। किन्तु राजदरबार के माध्यम से जब नृत्य अपने आध्यात्मिक आधार से हटकर नाच के स्तर पर पहुँचा तो उसकी अवमानना हुई, या यूँ कहें कि नृत्य के सम्मान में कमी आई। परन्तु फिर भी मूलतयाः नृत्य भक्ति का एक साधन बना रहा जो भक्त को उसके आध्यात्म तक पहुँचा सकता है।

अपने Art & Culture के आज के अंक में हम अपने अगले पड़ाव Manipuri Dance form पर आ पहुचें हैं जो ऐसी ही भक्ति की कहानी प्रस्तुत करता है।

  • मणिपुरी नृत्य का नाम इसके उद्भव स्थल मणिपुर के नाम पर पड़ा जिसको ‘‘जोगई’’ भी कहते हैं।
  • भारत की अन्य प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों से भिन्न इस नृत्य शैली में भक्ति पर अधिक बल दिया जाता है।
  •  इसकी उत्पत्ति भी पौराणिक मानी जाती है।
  • इसमें भी ताण्डव और लास्य का अद्भुत समागम देखने को मिलता है।
  • पारम्परिक तौर से इस शैली को भक्ति गीतों पर आधारित नृत्य-नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता था, जहाँ मणिपुरी लोग ‘‘रासलीला’’ के माध्य से राधा-कृष्ण के मध्य प्रेम को प्रदर्शित करते थे। इसमें 64 प्रकार के रासों का प्रदर्शन किया जाता है। इसमें नर्तक और नर्तकियाँ राधा-कृष्ण एवं गोपियों का स्वरूप धारण कर मंच पर लीला करते हैं।
  • मणिपुरी नृत्य भारतीय और दक्षिण-पूर्व एशिया की सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिश्रण है।
  • मणिपुरी नृत्य हाथों और शरीर के ऊपरी हिस्से द्वारा बनाई जाने वाली भगिंमाओं या Postures द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक खूबसूरत और मृदु सुशोभित नृत्य है।
  • इस नृत्य को करते समय नर्तक के चेहरे पर एक सुखद मुस्कान बनी रहती है।
  • एक सुखद मुस्कान, सजावटी चमकदार वेशभूषा और आभूषणों के साथ सुझौल शरीर की संरचना से यह निष्कर्ष निकालना बेहद आसान है कि मणिपुरी एक बेहद ही आकर्षक नृत्य शैली है। जहाँ लगभग हर नृत्य में घुंघरू पहनना उस नृत्य शैली से जुड़ा होता हैं वहीं मणिपुरी नृत्य शैली की एक और विशेषता यह भी है कि इसमें घुंघरू नहीं पहने जाते।
  • मणिपुरी नृत्य का विषय ज्यादातर हिन्दु धर्म के वैष्णव सम्प्रदाय से होता है, परन्तु कुछ शिव और शक्ति सम्प्रदाय या स्थानीय देवी-देवताओं पर आधारित विषय भी इस नृत्य के प्रमुख विषयों में लिये जाते हैं।
  • ताण्डव मणिपुरी, शिव, शक्ति और योद्ध कृष्ण को प्रस्तुत करता है।
  • वहीं लास्य राधा-कृष्ण के प्रेम को प्रस्तुत करता है।
  • मणिपुरी रासलीला तीन प्रकार के हैं-
  1. ताल-रसक - जिसमें तालियों को भी साथ में बजाया जाता है।
  2. दण्ड-रसक - इसमें दो छडि़यों के द्वारा समकालिक ताल या Synchronous beat को create किया जाता है, जहाँ नर्तकियाँ एक Geometric Pattern को form करती हैं।
  • कुछ विभिन्न प्रकार के मणिपुरी नृत्य शैलियाँ जैसे-
  1. रास
  2. नाट-संकीर्तन
  3. पुंग-चोलम
  4. ढ़ोल-चोलम
  5. क्रताल-चोलम
  6. थांग-टा (जोकि मणिपुरी शैली का Martial Art form हैं।)
  • इस नृत्य में जयदेव, विद्यापति, चण्डीदास, गोविन्ददास और ग्यानदाय की संस्कृत, मैथिली, बृज इत्यादि भाषाओं में लिखित अभिव्यक्तियों का प्रयोग होता है।
  • पुंग-यानि एक barrel drum और छोटे करतालों को मुख्य रूप से इस नृत्य में वाद्य-यन्त्रें के रूप् में उपयोग किया जाता है।
  • इसके अलावा हारमोनियम, सितार, बाँसुरी, शँख इत्यादि भी इसके कुछ वाद्य-यन्त्र हैं।
  • महिला नर्तकियाँ इस नृत्य में बेहत चमकीला एवं सजावटी barrel नुमा एक लम्बा skirt पहनती हैं। शरीर के ऊपर का हिस्सा एक dark colour के velvet blouse द्वारा ढका होता है। एवं बेहद सुन्दर साज श्रंगार भी किया जाता है।
  • वहीं पुरूष-नर्तक धोती-कुर्ता एवं पगड़ी धारण करते हैं।
  • कृष्ण की भूमिका निभाने वाले पीली-धोती, गाढ़े रंग की सदरी एवं मोर-पंखी मुकुट धारण करते हैं।

इस नृत्य का प्रचार बंगाल, बिहार और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक हुआ। मणिपुर में अधिक लोकप्रिय होने के कारण एवं इसके उद्भव के कारण ही इसे मणिपुरी नाम दिया गया। मणिपुरी नृत्य शैली को मणिपुर में विकसित करने का श्रेय वहाँ के शासक भाग्यचन्द्र को जाता है। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक मणिपुरी नृत्य अपनी प्रादेशिक सीमा पार नहीं कर पाया था। लेकिन उसके बाद रविन्द्रनाथ टैगोर के प्रयासों से इसका प्रचार-प्रसार समस्त भारत में हुआ। रीता देवी, सविता-मेहता, सिंहजीत सिंह, झावेरी बहनें, कलावती देवी निर्मला मेहता आदि इस नृत्य के सक्रिय प्रतिनिधि माने जाते हैं।