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Blog / 14 May 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय नृत्य शैली - कथक (Indian Dance Forms: Kathak)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय नृत्य शैली - कथक (Indian Dance Forms: Kathak)


मुख्य बिंदु:

भारत के इतिहास का सबसे अभिन्न हिस्सा रहा है नृत्य, और इसी नृत्य कला से भारत की समृद्ध परंपरा का भी पता चलता है। इस नृत्य कला के साक्ष्य हमें प्रागैतिहासिक यानि Pre-historic era से ही मिलते रहे हैं।

डदाहरण स्वरूप नटराज के रूप् में शिव जी को मुद्रा प्रचलित है वह इस बात का प्रतीक है कि भारतीय जनता के जीवन पर नृत्य कला का कितना गहरा प्रभाव रहा है। कहा जाता है, कि नटराज शिव के ताण्डव नृत्य की कल्पना से ही परवर्ती काल में उनकी महाकाल की मूर्ति परिकल्पित हुई, जिससे नृत्य का विकास हुआ।

  • ऐसा भी कहा जाता है कि संसार में बढ़ते ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध और दुख को देखते हुए ब्रह्या ही मग्न हुए और उन्होंनें पाँचवे वेद ‘‘नाट्य वेद’’ की रचना की जिससे प्रेरित होकर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र की रचना की।
  • नृत्य की उत्पत्ति चाहे जैसे भी हुई हो, इसे अपने आप में सम्पूर्ण कला माना जा सकता है, जिसमें ईश्वर और मनुष्य का आपसी प्रेम परिलक्षित होता है।
  • अपने कला और संस्कृति की यात्र में नृत्य कला के अगले पड़ाव में हम आज ‘‘कथक’’ नृत्य शैली के बारे में जानने का प्रयास करेंगें।
  • कथक उत्तर भारत में प्रचलित प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है, जिसका उद्भव- ‘‘कथा कहे सो कथक कहावे’’ नामक लोकुक्ति से भी जोड़ा जाता है। जिसका अर्थ है वह जो कहानियाँ कहता है वह कथाकार या कथक है।
  • इसे ‘‘नटवरी नृत्य’’ भी कहा जाता है। कथक भारत के सर्वाधिक आकर्षक नृत्यों में से एक है।
  • कथक रामायण, महाभारत और कृष्ण के विषयों के इर्द-गिर्द ही घूमता है।
  • इसमें पद संचालन एवं आकर्षक मुद्राओं का सुन्दर समन्वय मिलता है।
  • इस नृत्य की वास्तविक उत्पत्ति ब्रजभूमि से हुई है।
  • ब्रज की रासलीला कथक से काफी मिलती जुलती प्रतीत होती है।
  • कथक नृत्य के दो मुख्य अंग होते हैं- ताण्डव और लास्य।
  • ऐसा कहा जाता है कि भगवान महाकाल ने रौद्र-रस प्रधान नृत्य किया था, जिसे ताण्डव कहा गया, दूसरी ओर त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के बाद भगवान शिव को आनन्दित करने हेतु माता पार्वती ने श्रृंगार-रस प्रधान नृत्य किया, जिसे लास्य कहा जाता है।
  • कथक अपने बेहतरीन फुटवर्क (Footwork) यानि पैरों की भगिंमाये, अद्भुत घुमाव यानि Spin, नजाकत और पधांत के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
  • इसमें नर्तक यानि Dancer खुद ही बोल, तोड़ और टुकड़ा को उद्घोषित यानि बींदज करता है और उसके बाद नृत्य करता है।
  • यह नर्तक और दर्शकों के बीच में एक अद्भुत संबंध बनाता है, या यू कहें कि इस नृत्य में नर्तक, दर्शकों को मुग्ध कर देता है।
  • दक्षिण भारत के नृत्यों के घुमाव दार शारीरिक मुद्राओं की अपेक्षा इस नृत्य में शारीरिक मुद्रायें काफी सीधी होती हैं।
  • नर्तक इस नृत्य में अपने पैरों में काफी घुंघरूओं को बाँधता है। जिनकी संख्या 100, 200 या 250 तक भी हो सकती है। यानि दोनों पैरों की बात की जाये तो अधिकतम 500 घुंघरूओं द्वारा नर्तक एक अलग ध्वनि उत्पन्न करता है।
  • इन घुंघरूओं में कई ध्वनियाँ छुपी हुई होती है जैसे- टेªन की आवाज, झमाझम बारिश की ध्वनि, घोड़े की पदचाप की ध्वनि इत्यादि जिसके बजने से माहौल में एक अलग ही रस उत्पन्न हो जाता है।
  • कथक नृत्य भी भरतनाट्यम नृत्य की भांति ही एक क्रम में प्रदर्शित किया जाता है।
  • सबसे पहले वन्दना की जाती है, जिसके उपरान्त क्रमबद्ध रूप से उठान, थाट, आमद, सालामी, तोड़-टुकड़ा, तिहाई, पारन, गतनिकास, गतभाव यानि कहानी, लड़ी-तत्कार यानि Footwork और अंत में भजन, ठुमरी, तराना या अष्टपदि, कजरी इत्यादि से सामपन किया जाता है।
  • इस नृत्य में परम्परागत परिधानों यानि Costumes जैसे साड़ी, घाघरा-चोली, या चूड़ीडार फ्राक, जैकेट और दुपट्टा इत्यादि महिला नर्तकियों द्वारा उपयोग किये जाते हैं।
  • नृत्य और नाटक में किरदारों के स्वरूप के अनुसार ही परिधान बदलते रहते हैं।
  • इसमें बहुत Heavy Makeup नहीं किया जाता परन्तु इतना अवश्य होता है जिसके द्वारा Expressions यानि मुद्राओं को Sharply दिखाया जा सकें।
  • इस नृत्य में ज्यादातर सफेद और पीले मोतियों के आभूषण ही पहने जाते है।
  • इस नृत्य में खासकर हिन्दुस्तानी संगीत का उपयोग किया जाता है, संगीत के बोल हिन्दी, संस्कृत या अवधी भाषा में होते हैं।
  • इस नृत्य में पखावज़, तबला, सारंगी, सितार, हारमोनियम, बासुँरी सरोद इत्यादि वाद्य-यन्त्रें का उपयोग किया जाता है।
  • कथक के मुख्यतः चार घराने-लखनऊ, जयपुर, बनारस और रायगढ़ है।
  • लखनऊ घराने की विशेषता उसके नृत्य में भाव, अभिनय व रस की प्रधानता है। चारो घरानों में लखनऊ घराना सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।
  • लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के शासन काल में यह नृत्य लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गया था।
  • आधुनिक काल में कथक को पुर्नस्थापित करने का श्रेय मेनका को दिया जाता है। उत्तर भारत के इस अति-प्रसिद्ध नृत्य को ऊँचाइयों तक पहुचानें में कार्ल खण्डेनवाल, राम-नारायण मिश्रा, गोपी कृष्ण, सितारा देवी, बिरजू-महाराज तथा उमा शर्मा की उल्लेखनीय भूमिका रही है।