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Blog / 22 Jun 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : पश्चिम एवं मध्य भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of West and Central India)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : पश्चिम एवं मध्य भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of West and Central India)


मुख्य बिंदु:

भारत एक विविध संस्कृतियों और परम्पराओं का देश है, जहाँ हर एक कोस की दूरी पर भाषायें, संस्कृतियां, पहनावा, खान-पान और बोल-चाल का ढंग बदल जाता है। हर एक राज्य की अपनी अलग पहचान है और इस पहचान में विभिन्न संस्कृतियों की सरल झलक देखने को मिलती है।

यहाँ हर मौके के लिए संगीत, नृत्य और कुछ विशेष रस्में देखने को मिलती हैं, मौसमों के बदलने और नये मौसम के आने से लेकर, फसलों के काटने, बच्चों के जन्म, शादी-ब्याह एवं हर त्योहार पर हर क्षेत्र के अपने लोक-गीत मशहूर है।

अपने Art & Culture की लोकनृत्यों की Series के दूसरे अंक में आज हम पश्चिम और मध्य भारत के नृत्यों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

पश्चिम भारत के लोकनृत्य (Folk Dance of Western India)

गोफ नृत्यः यह महाराष्ट्र में प्रचलित एक लोकप्रिय एवं कलात्मक नृत्य है। इसमें प्रायः स्त्रियाँ एवं लड़कियाँ भाग लेती हैं। यह एक विशिष्ट शैली का लोकनृत्य है जिसमें रंग-बिरंगी रस्सियों का प्रयोग किया जाता है।

कोली नृत्यः यह भी महाराष्ट्र में प्रचलित एक लोकनृत्य है। यह पश्चिमी घाट पर सागर किनारे रहने वाले मछुआरों में लोकप्रिय है। इसमें स्त्री तथा पुरूष दोनों ही भाग लेते हैं।

गरबा नृत्यः यह गुजरात प्रांत का लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य का आयोजन प्रमुख रूप से नवरात्रि के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में स्त्रियाँ भाग लेती हैं। रास के समान किए जाने वाले इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य दुर्गा देवी की आराधना करना होता है।

डांडिया नृत्यः यह गुजरात प्रांत का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसमें गायन, लय, गीत आदि सभी तीव्र गति से संचालित होते हैं। इस नृत्य में स्त्रियाँ अपने हाथ में छोटे-छोटे रंग-बिरंगे डांडिये लेकर गोलाई में खड़ी होकर गति गाती हैं तथा अलग-अलग घेरे बनाकर परस्पर डंडे बजाती हैं।

कच्छी घोड़ी नृत्यः इस नृत्यनाट्य की प्रायः दो शैलियाँ प्रचलित हैं। प्रथम युद्ध प्रदर्शन की और दूसरी प्रश्नोत्तर की। प्रश्नोत्तर प्रकार का नृत्य राजस्थान में मुख्यतः विवाहोत्सवों पर देखने को मिलता है। इस नृत्य में एक स्त्री और एक पुरूष अश्वारोही होते हैं।

घूमर नृत्यः यह राजस्थान में प्रचलित एक लोकप्रिय लोकनृत्य है। यह नृत्य मांगलिक एवं पारंपरिक उत्सवों के साथ-साथ दुर्गापूजा एवं होली के अवसर पर भी किया जाता है। घूम-घूम कर किये जाने के कारण ही इसे घूमर नृत्य कहा जाता है।

तेरातालीः यह राजस्थान का लोकनृत्य है। यह अपेक्षाकृत नया नृत्य है तथा महिलाओं द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है। यद्यपि गायन का दायित्व पुरूष द्वारा निभाया जाता है। यह नृत्य भगवान कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित होता है। नर्तकी के पैरों और हाथों पर घण्टियाँ बँधी रहती हैं।

कठपुतलीः यह राजस्थान का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसमें कठपुतली द्वारा नृत्य कराया जाता है। इसकी पृष्ठभूमि में गायन के माध्यम से संवाद बोले जाते हैं, जिसमें स्त्री एवं पुरूष दोनों भाग लेते हैं।

गीदड़ नृत्यः यह राजस्थान में प्रचलित प्रसिद्ध लोकनृत्य है। शेखावटी क्षेत्र में वसंत पंचमी से होलिका दहन तक इस नृत्य का आयोजन किया जाता है। इस नृत्य को रात्रि के तीसरे परह तक किया जाता है। लक्ष्मण गढ़, फतेहपुर और सीकर क्षेत्र में गीदड़ नृत्य अधिक लोकप्रिय है।

भंवाई नृत्यः भंवाई अथवा भवई नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य अपनी चमत्कारिता के लिए प्रसिद्ध है। इस नृत्य में विभिन्न शारीरिक करतब दिखाने पर अधिक बल दिया जाता है।

  • भंवाई नृत्य राजस्थान के उदयपुर संभाग में अधिक प्रचलित है।
  • इस नृत्य में घूँघट किये हुए नर्तकियाँ मुख्य भूमिका निभाती हैं।
  • नर्तकियाँ सात अथवा आठ तांबे के घड़े सिर पर रखकर व उनका संतुलन रखते हुए नृत्य करती हैं।
  • भंवाई नृत्य करने वाली नृत्यांगनाएँ किसी गिलास के ऊपर अथवा तलवार की धार पर अपने पैर के तलुओं को टिकाकर झूलते हुए नृत्य करती हैं।
  • अनूठी नृत्य अदायगी, शरीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी की विविधता इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं।
  • यह नृत्य तेज लय के साथ सिर पर सात-आठ मटके रखकर किया जाता है।
  • नृत्य के दौरान जमीन पर पड़ा रूमाल मुहँ से उठाना, तलवार की धार, काँच के टुकड़ों पर और नुकीली कीलों पर नृत्य करना, इस नृत्य की अनोखी विशेषताएँ हैं।
  • भंवाई नृत्यक में नए कौतूहल व सिरहन उत्पन्न करने वाले कारनामे होते हैं।

मध्य भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of Central India)

पणिहारी नृत्यः यह छत्तीसगढ़ में प्रचलित प्रसिद्ध लोकनृत्य है। पाण्डवों की कथा से संबंधित होने के कारण इस नृत्य को पण्डवानी नृत्य के नाम से जाना जाता है। इस नृत्य में एकतारा वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है। ऋतु वर्मा, झाडूराम देवांगन एवं तीजनबाई इस नृत्य के विख्यात कलाकार हें।

पंथी नृत्यः यह भी छत्तीसगढ़ में प्रचलित एक अन्य लोकनृत्य है। यह सतनामी समुदाय का अनुष्ठान नृत्य है। इस गायन में सतगुरू की प्रशस्ति होती है। इस नृत्य के नर्तक पर संचालन के साथ विशेष प्रकार की मुद्राएँ बनाते हैं।

टिपरीः यह महाराष्ट्र में प्रचलित लोकनृत्य है। इसमें टिपरी के रूप में डण्डे का प्रयोग किया जाता है। गुजरात में इसको डांडिया कहा जाता है। यह समूह नृत्य है।

माचः भारत की पारंपरिक लोकरंग शैलियों में मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि लोकनाट्य मालवा के माच का विशिष्ट स्थान है। माच की जन्म भूमि उज्जयिनी है और प्रसार क्षेत्र मालवा। मालवा चंबल, बेतवा और नर्मदा नदियों के बची बसा है। इसके अंतर्गत उज्जैन, इंदौर, धार, रतलाम, मंदसौर, शाजपुर, राजगढ़, देवास और सिहोर जिले आते हैं। इसके अतिरिक्त गुना, विदिशा, भोपाल और होशंगाबाद जिले के कुछ भाग भी मालवा से जुड़े हुए हैं। माच मंच का तद्भव रूप ही नहीं एक रुढ़ शब्द है। माच अर्थात् ऊँचे और खुले मंच पर अभिनीत की जाने वाली नाट्य प्रस्तुतियाँ। माच की नाट्य प्रस्तुतियों को खेल कहते हैं और अभिनय को खेलना।