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Blog / 30 Jun 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : दक्षिण और उत्तर पूर्वी भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of South and North Eastern India)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : दक्षिण और उत्तर पूर्वी भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of South and North Eastern India)


मुख्य बिंदु:

लोक नृत्य भारत के समृद्ध सांस्कृतिक परिदृश्य की खोज में मदद करते हैं। प्रत्येक राज्य या क्षेत्र में उस राज्य या क्षेत्र के मिथकों और किंवदंतियों के अनुसार एक अद्वितीय लोक नृत्य होता है। यह समग्र कला का एक समृद्ध मिश्रण है। शास्त्रीय नृत्य के विपरीत, लोक नृत्य सहज होते हैं, जो स्थानीय लोगों द्वारा बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के किए जाते हैं। लोक नृत्य लोगों के एक निश्चित हिस्से या किसी विशेष इलाके तक ही सीमित हैं।

भारत के विशाल सांस्कृतिक परिदृश्य का पता लगाने का शायद सबसे अच्छा तरीका भारतीय लोकनृत्य ही हैं… यहाँ हर राज्य अपने भीतर एक अलग ही कला को छुपाये हुए है..जिसे जानने के लिए लोकनृत्य से बेहतर शायद ही कोई और माध्यम हो, बल्कि अगर यु कहा जाये की लोकनृत्य भारत की पहचान है तो ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी.

अपने Art and Culture के लोकनृत्यों की कड़ी में हम आ पहुंचे है पूर्वी भारत की तरफ. आइये आज जानने का प्रयास करते है यहाँ के लोकनृत्यों के बारे में।

दक्षिण भारत  के लोकनृत्य (Folk Dance of South India):

गुरवय्यालु : यह आन्ध्र प्रदेश की कुरव समुदाय के पुजारियों द्वारा किया जाने वाला आनुष्ठानिक नृत्य है। इसमें नर्तक भालू के चमड़े से बनी विशेष पोशाक पहनते हैं।

वीरगास्से कुनीताः यह कर्नाटक में प्रचलित प्रसिद्ध लोकनृत्य है। शक्ति और शौर्य के प्रतीक इस नृत्य को फसल कटाई के अवसर पर सम्पन्न किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष गाँव-गाँव घूमकर नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।

पादायनीः यह केरल में प्रचलित प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के देवी के मंदिरों में मुखौटा द्वारा विभिन्न देवी-देवताओं के स्वांग किये जाते हैं। संगीत और गायन से परिपूर्ण इस नृत्य का आयोजन प्रायः रात्रि में ही होता है।

दशावतारः यह कोंकण व गोवा क्षेत्र का अत्यंत विकसित नाट्य रूप है। प्रस्तुतकर्ता पालन व सृजन के देवता भगवान विष्णु के दस अवतारों को प्रस्तुत करता है।

उत्तर पूर्वी भारत  के लोकनृत्य (Folk Dance of North East):

झुमुराः यह असोम राज्य का लोकनृत्य है। यह नृत्य भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से सम्बन्धित है। इस नृत्य के तीन भाग हैं- रागदानी, जीतोड़ नाच तथा मेला नाच।

पोपिरः यह अरूणाचल प्रदेश के सियांग जिले की आदिम जनजाति द्वारा किया जाने वाला कर्मकाण्ड सम्बन्धी नृत्य है। इसमें सम्पन्नता के देवता मोपिन को सन्तुष्ट किया जाता है।

रिखम्पदाः यह अरूणाचल प्रदेश में निशि जनजाति के लोगों द्वारा किया जाने वाला आनुष्ठानिक नृत्य है। यह केवल विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। इससे अच्छी फसल तथा सम्पन्नता आने का विश्वास भी जुड़ा हुआ है।

बारदोधामः यह अरूणाचल प्रदेश के शारदुकपेन जनजाति समुदाय द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। इसको करते समय नर्तक रंगीत मुखौटे पहनते हैं, जो इस बात का संकेत करते हैं कि ईश्वर कर्मानुसार फल देता है।

बिहू नृत्यः यह असम राज्य में प्रचलित प्रसिद्ध लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य का आयोजन वर्ष में तीन बार किया जाता है। बोहाग-बिहू नव वर्ष के अवसर पर, धान की फसल पकने पर माघ-बिहू तथा वसंत उत्सव पर ‘वैशाख-बिहू’ सम्पन्न किया जाता है।

बैम्बू नृत्यः यह नागालैंड के आदिवासियों में प्रचलित लोकप्रिय लोकनृत्य है। इस नृत्य में बड़े-बड़े डण्डों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इसे बैम्बू नृत्य के नाम से भी जाना जाता है।

बागुरुम्बाः बागुरुम्बा असम का लोक नृत्य है जो बोडो जनजाति द्वारा किया जाता है। यह आमतौर पर बिसागू के दौरान विशुवा संक्रांति (मध्य अप्रैल) में एक बोडो उत्सव के दौरान किया जाता है। बिसागू, गाय पूजा से शुरू होता है और इसमें युवा वर्ग ईमानदारी से अपने माता-पिता और बुजुर्गों को सर झुकाते हैं। उसके बाद बथाऊ की पूजा मुर्गे और जोउ (चावल की बीयर) के द्वारा जाती है।

बरदोई सिखलाः असम के बोडो जनजाति का यह एक लोक पारम्परिक नृत्य है, जो अत्यंत आकर्षक और संगीतमय होता है। पर्वों एवम् उत्सवों पर बोडो युवक-युवतियाँ एक निश्चित स्थान पर एकत्र होकर गाते और नृत्य करते हैं। पारम्परिक रंग-बिरंगे परिधानों से सज्जित बोडो जनजाति का यह नृत्य नर्तकों के कुशल अंग संचालन के कारण अत्यंत मनमोहक दिखाई पड़ता है।

इसके अलावा भोरट और धारथुंदरी लोकनृत्य भी राज्य के अलग-अलग इलाकों में प्रचलित हैं।

घाँटूः यह सिक्किम के गुरुंग समुदाय द्वारा संरक्षण प्राप्त एक परम्परागत लोक नृत्य है, जो इस समुदाय के बहुरंगी जीवन को दर्शाता है। इस नृत्य का विशेष आकर्षण नर्तकों का तीव्र पद संचालन है। यह नृत्य माघ महीने की माघ पंचमी से शुरू होकर बैशाखी पूर्णिमा तक चलता है। यह नृत्य गुरुंग समुदाय की युवतियाँ द्वारा पारम्परिक परिधान तथा युवकों द्वारा सर पर विशेष प्रकार की टोपियों से सज्जित होकर सम्पादित किया जाता है।

भाओनाः यह असम के अंकिआ नाट्य की प्रस्तुति है। इस शैली में असम, बंगाल, उड़ीसा, वृन्दावन-मथुरा आदि का सांस्कृतिक झलक है। इसका सूत्रधार दो भाषाओं में अपने को प्रकट करता है- पहले संस्कृत बाद में ब्रजबोली अथवा असमिया में। इसे श्रीमन्त शंकर ने प्रारम्भ किया था।