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Blog / 15 Jun 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : उत्तर भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of North India)

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(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : उत्तर भारत के लोकनृत्य (Folk Dances of North India)


मुख्य बिंदु:

प्राचीन काल से ही भारत में लोकनृत्य की सम्बद्ध परंपरा रही है। प्राचीन भारत में नृत्य प्रायः उत्सवों के अवसरों पर सम्पन्न किये जाते थे, जो परंपरा आज भी जारी है। लोक नृत्यों और आम आदमी के बीच निकट का संबंध है। इसके सभी रूप कदाचित अपरिष्कृत और आम लोगों के लिए होते हैं। इसकी सादगी में अद्भुत शक्ति है, जो बरबस ही लोगों को अपनी ओर खिंचती है। अपनी स्थानीय विशिष्टता रखते हुए लोकनृत्य जनमानस को अपने बहुमुखी आयामों में इस प्रकार ढक लेते हैं कि वे इससे मुग्ध हो जाते हैं। दरअसल लोकनृत्यों कें उल्लास के प्रत्येक स्वरूप को और व्यक्ति के मनोभावनाओं को, अपनी शारीरिक और सांगीतिक अभिव्यक्तियों में रूपांतरित कर लेने की अद्भुत कला है।

लोकनृत्यों में स्थानीय रीति-रिवाजों एवं परंपराओं की झलक मिलती है। उसी के अनुरूप इनकी साज-सज्जा, वेशभूषा, गीत-संगीत, वाद्य यंत्रें का प्रयोग होता है। उल्लेखनीय है कि लोक नर्तक किसी प्रतिष्ठित नृत्य संस्थान में प्रशिक्षण नहीं लेते और न ही उन्हें किसी गुरू की जरूरत पड़ती है। लोकनृत्य कई अवसरों पर किय जाते हैं-जिनमें मौसम की आगवानी के अवसर, कृषि में नयी उपज के अवसर, पारिवारिक और सामाजिक, संस्कारों के अवसर, तीज-त्यौहारों और अराधना-अनुष्ठानों के अवसर, मिलन और जुदाई जैसे अवसर विशेष रूप से उललेखनीय हैं।

अपने Art & Culture की आज की कड़ी में हम जानने का प्रयास करेंगे अपने देश के उत्तर भारत के कुछ प्रसिद्ध लोकनृत्यों के बारे में-

उत्तर भारत के कुछ प्रसिद्ध लोकनृत्य (Some Famous Folk Dance of North India)

रासलीलः यह उत्तर प्रदेश का प्रमुख नृत्य है। लेकिन इसका प्रचलन गुजरात और मणिपुर में भी देखने को मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं पर आधारित यह नृत्य लोक संस्कृति का उदात्त रूप है। इसमें गोप और गोपियाँ परम्परागत वेशभूषा में नृत्य करते हैं। इस नृत्य में राधा-कृष्ण बने पात्रें की मुख्य भूमिका होती है। यह उत्तर प्रदेश के गोकुल, मथुरा, वृन्दावन में काफी लोकप्रिय है।

होली नृत्यः यह लोकनृत्य होली के अवसर पर सम्पन्न किया जाता है। यह नृत्य अबीर-गुलाल उड़ाते हुए किया जाता है। होली नृत्य बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब में विशेष रूप से प्रचलित है।

भांगड़ा नृत्यः यह पंजाब में प्रचलित प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह वीर रस प्रधान होता है। इसमें स्त्री और पुरूष दोनों नृत्य करते हैं। इसकी संगत में ढोल और नगाड़े आदि का प्रयोग किया जाता है।

गिद्धाः यह भी पंजाब का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है। मुख्य रूप से इसमें स्त्रियाँ भाग लेती हैं। इस नृत्य का आयोजन प्रायः मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।

छऊ नृत्यः यह नृत्य बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा में लोकप्रिय है। इस नृत्य का आयोजन आदिवासी खेतीहर खुशहाली एवं शिकार के समय देवी-देवाताओं की स्तुति हेतु करते हैं। इसमें अंगों का संचालन इस प्रकार किया जाता है, जिससे तन की भावना प्रतिबिम्बित हो सके। वर्तमान में इस नृत्य शैली का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।

चट्टा नृत्यः यह नृत्य उत्तर प्रदेश में प्रचलित एक लोकप्रिय लोक नृत्य है। इस नृत्य में स्त्री-पुरूष दोनों भाग लेते हैं। इस नृत्य की गति प्रारंभ में धीमी होती है लेकिन बाद में तेज हो जाती है। यह नृत्य प्रायः मेलों में तमाशे के रूप में किया जाता है।

गढ़वाली नृत्यः यह नृत्य उत्तरांचल के गढ़वाली क्षेत्र में लोकप्रिय है। यह एक सामूहिक नृत्य है, जिसे खेत कटने के अवसर पर आनन्दोत्सव के रूप में सम्पन्न किया जाता है।

छपेली नृत्यः यह उत्तराखण्ड के कुमायूँ क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय लोक नृत्य है। इस नृत्य में दो नर्तक होते हैं, जो प्रेमी-प्रेमिका, भाई-बहिन, जीजा-शाली आदि कोई भी होते हैं। इस नृत्य में हर्षोल्लास सी अभिव्यक्ति की जाती है।

छाम छांकः यह हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति क्षेत्र में लामाओं द्वारा किया जाने वाला आनुष्ठानिक नृत्य है। भगवान बुद्ध को समर्पित चाखर उत्सव, जो कि तीन वर्षों में एक बार मनाया जाता है, के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।

नातीः यह हिमाचल प्रदेश में किया जाने वाला आनुष्ठानिक फसल कटाई नृत्य है। इसे स्त्री एवं पुरूष दोनों करते हैं।

तुशिमिगः हिमाचल प्रदेश में किन्नौरी जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो सितम्बर माह में शरद ऋतु मनाने के लिए किया जाता है।

जाबरोः यह लद्दाख में विशेष रूप में चांग थांग क्षेत्र में किया जाने वाला मनोरंजक नृत्य है। इसमें स्त्री-पुरूष दोनों भाग लेते हैं। यह मन्दगति से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे तीव्र होता जाता है। यह चाँदनी रात में विशेष रूप से लम्बे समय तक चलता है।

रउफ नृत्यः यह जम्मू-कश्मीर का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसे फसल कटाई के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में केवल स्त्रियाँ भाग लेती हैं।

ताण्डव नृत्यः शंकर भगवान द्वारा किया जाने वाला आलौकिक नृत्य है। प्राचीन शिलालेखों में भी इसका वर्णन है। तांडव के संस्कृत में कई अर्थ होते हैं। इसके प्रमुख अर्थ हैं उद्धत नृत्य करना, उग्र कर्म करना, स्वच्छन्छ हस्तक्षेप करना आदि। भारतीय संगीत में चौदह प्रमुख तालभेद में वीर तथा बिभत्स रस के सम्मिश्रण से बना तांडवीय ताल का वर्णन भी मिलता है। शास्त्रें में प्रमुखता से भगवान् शिव को ही तांडव स्वरूप का प्रवर्तक बताया गया है। परंतु अन्य आगम तथा काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के तांडव का भी वर्णन मिलता है।