Home > Art-and-Culture

Blog / 28 Jul 2020

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : बोनालु त्यौहार (Bonalu Festival)

image


(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : बोनालु त्यौहार (Bonalu Festival)


भारत आस्थाओं परम्पराओं धार्मिक मान्यताओं और भिन्न भिन्न संस्कृतियों का देश। जहाँ भारत में जाती धर्म वर्ण और संस्कृति की भिन्नता दिखाई देती है वहीं यहां के मेलों और त्योहारों में भी यहां की संस्कृति और परम्पर की चाप स्पष्ट दिखाई देती है। यहाँ के त्योहारों में लोगों की धार्मिक आस्था की पकड़ मज़बूत दिखाई देती है। यही वजह है यहां का हर त्यौहार किसी न किसी देवी देवता को सम्पर्पित है। दीपावली में जहां गणेश और लक्समी की पूजा होती है तो दशहरा में राम की ,नवरात्रि में माँ दुर्गा के अलग अलग रूपों की तो जन्माष्टमी में भगवान् कृष्ण की। मेलों और आयोजनों पर भी धर्म का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। ऐसी ही एक त्यौहार जिसका आज हम ज़िक्र करने जा रहे हैं वो है बोनालु त्यौहार जिसे मनाया जाता है बीमारियों से बचने और सुख समृद्धि की कामना से। बोनालु त्यौहार को दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में मनाते हैं।

आज के कला और संस्कृति कार्यक्रम में हम जानेंगे दक्षिण भारत के इस त्यौहार बोनालु के बारे में और साथ ही जानेंगे इससे जुड़े कुछ और दिलचस्प पहलुओं और इस दौरान होने वाले हैरतअंगेज़ रीति रिवाज़ों के बारे में ।

दरअसल ,में बोनालु या महाकाली बोनालु एक हिन्दू त्यौहार है जिसमे देवी महाकाली की पूजा की जाती है। यह त्यौहार सालाना तौर पर तेलंगाना के शहर हैदराबाद सिकंदराबाद और आस पास से जुड़े अन्य क्षेत्रों में ख़ास तौर पर मनाया जाता है। इस त्यौहार को हिन्दू केलिन्डर के मुताबिक़ आसाढ़ मॉस में मनाया जाता है जो अंग्रेज़ी केलिन्डर के हिसाब से जुलाई और अगस्त महीने के बीच में पड़ता है। इस त्यौहार के दौरान येल्लम्मा या महाकाली की पूजा की जाती है। यह त्यौहार देवी की कृपा के बदले दिए जाने वाले धन्यवाद के तौर पर मनाया जाता है

बोनम शब्द जिससे बोनालु शब्द बना है दरसल में संस्कृत शब्द भोजनम शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ तेलगु भाषा में माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद है। आम तौर पर यह बोनम महिलाओं द्वारा मिट्टी के बर्तन में चावल दूध और गुड़ को मिलकर बनाया जाता है। इस बर्तन के ऊपर नीम की पत्तियां ,हल्दी सिन्दूर और एक जलता दिया रखा जाता है। महिलाएं इस बर्तन को अपने सर पर रखकर मंदिरों में माँ काली को यह बोनम चढाती हैं। बोनम के साथ माँ काली को श्रृंगार की अन्य वस्तुएं जैसे सिन्दूर ,चूड़ियां और साड़ी भी अर्पित की जाती है।

बोनालु के दौरान माँ काली के क्षेत्रीय स्वरूपों जैसे मैसम्मा पोचम्मा येल्लम्मा पेदाम्मा डॉककालम्मा अंकालम्मा और नुकलम्मा अदि स्वरूपों की पूजा होती है

यह एक खास त्योहार है वर्षा ऋतू में मनाया जाता है,। इस दौरान मानव शरीर में कई सारी बीमारियां उतपन्न होती है। इस त्योहार के शुरु होने के पीछे एक दर्दनाक घटना जुड़ी है, माना जाता है कि 1813 में भारत के दो बड़े जुड़वा राज्य हैदराबाद और सिंकदराबाद में हैजा का बड़ा प्रकोप फैला था, जिससे कई मौते हुईं थीं। कहा जाता है कि हालात से बचाव के लिए शहर की सेना ने मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में महाकाली के मंदिर में पूजा की थी, और यह मन्नत मांगी की अगर बीमारी की समस्या पूरी तरह टल जाती है तो वे शहर में मां काली की मूर्ति स्थापना करेंगे।

माना जाता है पूजा के बाद धीरे-धीरे शहर से हैजा का संक्रमण ख़त्म होने लगा था। जिसके बाद सेना के जवानों ने यहां मां काली की मूर्ति स्थापित की थी। तब से लेकर अबतक निरंतर हर साल असाढ़ महीने में यह उत्सव मनाया जाता है।

यह पूरा त्योहार महाकाली को समर्पित है। 'बोनालु' उत्सव राज्य के अलग-अलग जगह विशेष आयोजनों के साथ मनाया जाता है।इस त्योहार से यह भी कहानी जुड़ी है कि अगस्त माह के दौरान महाकाली अपने मायके चली जाती हैं। इस त्योहार के दौरान महाकाली से अच्छी सेहत और घर की सुख शांति की प्राथना की जाती है।

महाकाली की विशेष पूजा में बड़ी शोभायात्रा का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। शोभा यात्रा के दौरान महिलाएं अपने सर पर चावल, दूध और गुड़ को मिलाकर बने प्रसाद को बर्तन में रख मंदिर के लिए आगे बढ़ती हैं। इस उत्सव में महिलाएं और पुरूष पारंपरिक पोशाक ही पहनती हैं।

इस उत्सव के दौरान महाकाली को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बली भी दी जाती है, जिसके बाद भोग का निर्माण किया जाता है। जो महाकाली को चढाया जाता है। बड़े स्तर पर बकरी या मीट बनाया जाता है, जिसे देवी को चढ़ाने के बाद परिवार मिलकर खाते हैं। देवी को ताड़ के पेड़ से बनी मदिरा भी चढ़ाई जाती है। इससे पहले इस उत्सव में भैंस और भेंड की भी बलि दी जाती थी। लेकिन सरकार द्वारा जानवरों को बचाने के लिए बनाए गए नियम और कानूनों के बाद अब कद्दू, नारियल, लौकी और नींबू की बलि दी जाती है।

बोनालु उत्सव के दौरान 'रंगन' नाम की खास धार्मिक प्रकिया भी जगह लेती है। जिसके अंतर्गत एक महिला मिट्टी के बने किसी बड़े घड़े पर खड़ी होती है, माना जाता है उस महिला के अंदर साक्षात महाकाली आ जाती है, जो लोगों को उनके भविष्य के बारे में बताती है। मां काली के रूप में महिला लोगों के साथ एक साल में क्या-क्या घटने वाला है उसके बारे में बताती है। यह धार्मिक प्रकिया शोभा यात्रा से पहले की जाती है। उत्सव की यात्रा हैदराबाद के गोलकोंडा में श्री जगदंबिका मंदिर से शुरु होकर सिकंदराबाद के उज्जैनी महाकाली मंदिर और उसके बाद लाल दरवाजा माता मंदिर में जाकर समाप्त होती है।

हालांकि इस साल कोरोना जैसी महामारी के चलते जब लोगों को सामाजिक दूरी बनाये रखने और घरों से बाहर न निकलने की सलाहें दी जा रही हैं तो ऐसे में इस त्यौहार की चमक फीकी रहने की उम्मीद दिखाए दे रही है ऐसे में यह त्यौहार लोग किस तरह से मनाएंगे यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।