Home > Art-and-Culture

Blog / 20 Apr 2019

(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) मध्य कालीन स्थापत्य कला (Architecture and Sculpture of Medieval India)

image


(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) मध्य कालीन स्थापत्य कला (Architecture and Sculpture of Medieval India)


मुख्य बिंदु:

    • परिवर्तन प्रकृति का नियम है, यह कहावत जितनी आम है उतनी ही खास, अगर भारतीय इतिहास को देखें तो इसमें बहुत सारे परिवर्तन समय के साथ दिखाई देते हैं।
    • ऐसा ही एक परिवर्तन हुआ भारत में मुस्लिम शासकों के आने पर।
    • न सिर्फ भारतीय रीति रिवाज व प्रथाएँ बल्कि स्थापत्य कला में भी इसका बहुत प्रभाव पड़ा।
    • यह समय था भारत में गुलाम वंश के आगमन का।
    • गुलाम वंश जब भारत में आया तो वह अपने साथ न सिर्फ इस्लामी संस्कृति लाया बल्कि तमाम कलाएँ व प्रथाएँ भी लाया।
    • इस समय भारत में द्रविड़, नागर व वेसर शैली से बने हजारों प्राचीन मंदिर व Architectural Structure थे जिनकी अपनी खासियत व खूबियाँ थी।
    • जैसे-जैसे मुस्लिम शासक भारत में आगे बढ़ते गये वैसे-वैसे उनका प्रभाव भारतीय संस्कृति में दिखने लगा ये शासक मुख्यतयः मध्य एशिया व पश्चिम एशिया से थे जहाँ पर उनकी अपनी एक अलग कला थी, जब यह कला भारतीय Architecture के साथ मिली तो एक नई शैली का निर्माण हुआ। इस शैली को Indo-Islamic Architecture नाम दिया गया।
    • मुस्लिम शासकों ने भारतीय शैली में कई नऐ तत्वों को शामिल किया जो भारतीय शैली से बिल्कुल अलग थे।
    • ये नये तत्व ईरानी शैली से प्रेरित थे जो दिखने में भारतीय शैली से बहुत कम ताल्लुक रखते थे।
    • सल्तनत काल के इन निर्माणों में किला, मकबरा, मस्जिद, महल एवं मीनारों का निर्माण प्रमुखता से किया गया।
    • चूँकि इस्लामी शासक अपनी स्थापत्य कला को भारतीय स्थापत्य कला से बेहतर मानते थे इसीलिये उन्होंने कई मंदिरों को तोड़कर उनकी जगह नई इस्लामिक कारीगरी का प्रदर्शन किया।
    • जैसी इस्लामिक कारीगरी आज हम ताजमहल जैसी संरचनाओं में देखते हैं यह शुरू से ऐसी नहीं थी बल्कि समय के साथ जैसे-जैसे दिल्ली के तखत पर नये-नये शासक आते गये वैसे-वैसे यह संरचना बदलती गई।
    • बीम, पिलर और गुम्बदों जैसे नये तत्वों को शामिल करके यह संरचना धीरे-धीरे अपने विकसित स्वरूप में पहुँचने लगी।
    • जहाँ भारतीय स्थापत्य कला में शिखर का महत्त्वपूर्ण स्थान था वहीं इस्लामिक स्थापत्य में शिखर की जगह गुम्बद ने ले ली थी।
    • अगर Indo-Islamic स्थापत्य में बनी मस्जिदों की बात की जाए जो इन्हे कई भागों में विभाजित किया जा सकता है-
    • मुख्य प्रवेश द्वार को इन मस्जिदों में काफी वृहद और ऊँचा बनाया जाता था जिन्हे ईवान कहा जाता था इसका ऊपरी भाग चाप की आकृति में होता था।
    • मुख्य द्वार में प्रवेश करने बाद जो नया स्थान आता था वह होता था Courtyard यानि आँगन का जिसके बीचों बीच पानी का एक कुंड बनाया जाता था इसी पानी से नमाजी, वजू करते थे।
    • वजू एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नमाजी नमाज पढ़ने से पहले अपना मुँह, हाथ और पैर धुलते हैं।
    • मस्जिद के भीतर ही बरामदे का निर्माण भी कराया जाता था जो पिलर पर बना होता था।
    • मस्जिद में सभी लोग मक्का की तरफ मुँह करके नमाज पढ़ते थे इसलिये उसी दिशा में मेहराब का निर्माण किया जाता था।
    • मेहराब के ठीक बगल में एक ऊँचा स्थान होता था जिसे मिम्बर कहते थे इसी मिम्बर में बैठकर मस्जिद का इमाम नमाज को Announce करता था।
    • मस्जिद के ऊपरी भाग में Dome या गुम्बद का निर्माण करवाया जाता था।
    • कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहली गुम्बद जेरूसलम में बनवाई गई थी जिसे 'The dome of rock' कहा जाता है।
    • शुरूआती चरण में तो मस्जिदों के ऊपर सिर्फ एक गुम्बद का निर्माण ही किया जाता था पर जब यह कला अपने विकसित रूप में पहुँची तो Double Dome या दोहरी गुम्बद का Concept भी प्रचलित हो गया।
    • इस दोहरी गुम्बद का उद्देश्य मस्जिद को अन्दर से सुन्दर बनाना था।
    • मस्जिद के आन्तरिक भाग व प्रवेश द्वार के पास कुछ आयतों को बेहद ही सुन्दर ढंग से लिख दिया जाता था जिनका उद्देश्य दीवारों को सुन्दर बनाना था।
    • मस्जिद के आन्तरिक भाग को सजाने के साथ ही मस्जिद के बाहर एक Tower नुमा आकृति का निर्माण किया जाता था जिसे मीनार कहते थे। इस मीनार को बनाने का उद्देश्य यह था कि इस पर चढ़ कर मुअज्जिन_ अजान देता था जिसको सुनकर नमाजी नमाज पढ़ने आते थे।
    • इतने सारे नये तत्वों को शामिल करने बाद इस शैली ने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी।
    • चून पत्थर और संगमरमर को तराश कर व विशेष प्रकार के सीमेंट का प्रयोग करके यह कला लगभग 700 वर्षों तक भारत में चलती रही।