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Video Section / 26 Aug 2020

(इनफोकस - InFocus) भादभूत परियोजना (Bhadbhut Project)

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(इनफोकस - InFocus) भादभूत परियोजना (Bhadbhut Project)



सुर्ख़ियों में क्यों?

  • हाल ही में, गुजरात सरकार ने भरूच में भादभूत परियोजना के अनुबंध के लिए सहमति दे दी है।
  • गौरतलब है कि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterway Authority of India) पहले ही इस परियोजना को अपनी मंजूरी दे चुका है।

इस परियोजना की जरूरत

दरअसल मीठे पानी के कम प्रवाह के चलते उच्च ज्वार के दौरान नर्मदा के मुहाने पर खारा समुद्री जल काफी ज्यादा मात्रा में जमा हो जाता है.

  • इस वजह से नदी के किनारों पर लवणता अंतर्ग्रहण की दिक्कत बढ़ती जा रही है।
  • आपको बता दें कि मीठे पानी वाले क्षेत्रों में खारे पानी के अधिक होने की प्रक्रिया को लवणता अंतर्ग्रहण कहते हैं.
  • इसी दिक्कत को कम करने के लिए इस प्रोजेक्ट का निर्माण किया जा रहा है.

परियोजना के फायदे

यह सरदार सरोवर बांध से बहने वाले अतिरिक्त जल को समुद्र समुद्र में व्यर्थ ही बहने से रोकेगा.

  • इससे संभव है कि इस नदी पर 600 MCM मीठे पानी की एक झील का निर्माण हो जाए.
  • इस प्रकार, भरूच में मीठे पानी की दिक्कत दूर हो सकती है।
  • इतना ही नहीं, इस प्रोजेक्ट की मदद से जलाशय में नर्मदा, महिसागर और साबरमती नदियों के अतिरिक्त जल का भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।

परियोजना से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु

भादभूत परियोजना वृहद कल्पसर परियोजना का ही एक हिस्सा है.

  • बता दें कि वृहद कल्पसर परियोजना के तहत भरूच और भावनगर ज़िलों के बीच खंभात की खाड़ी में 30 किलोमीटर के बांध का निर्माण कराया जाना है।
  • कल्पसर परियोजना का लक्ष्य गुजरात के 25 फ़ीसदी औसत सालाना जल संसाधनों को इकट्ठा करना है।
  • यह नर्मदा नदी के पार, भादभूत गाँव से करीब 5 किमी. और नदी के मुहाने से तकरीबन 25 किमी. दूर मौजूद है.
  • यही वह जगह है जहां नर्मदा नदी खंभात की खाड़ी में मिलती है।

प्रोजेक्ट का क्या असर हो सकता है?

जहां सरकार इस प्रोजेक्ट के सकारात्मक पहलू को दर्शा रही है तो वहीं कुछ लोगों ने इसके नकारात्मक पहलू पर चिंता जाहिर की है.

  • दरअसल इस परियोजना से हिल्सा मछली के प्रवास और प्रजनन चक्र में हस्तक्षेप होने की आशंका जताई जा रही है, क्योंकि बैराज बनने से इन मछलियों की प्राकृतिक आवाजाही में बाधा पैदा हो सकती है।
  • बता दें कि हिल्सा एक समुद्री मछली है, जो नदी की उल्टी धारा में बहती हुई भरूच के नजदीक नर्मदा नदी के मुहाने के खारे पानी में प्रवेश करती है।
  • अमूमन यह मछली जुलाई-अगस्त से नवंबर तक ऐसा करती है।
  • पिछले कई सालों से इस इलाके में हिलसा मछलियों के आवाजाही में काफी कमी देखी जा रही है. इसके लिए बांध से पानी का कम बहाव, नदी में बहाए जाने वाले औद्योगिक कचरे और बढ़ती लवणता को जिम्मेदार माना जा रहा है।
  • इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट के बनने से आलिया बेट (Aliya Bet) का एक हिस्सा जल में डूब सकता है। साथ ही, इस द्वीप में जंगल का एक हिस्सा भी प्रभावित होगा।
  • बता दें कि आलिया बेट नर्मदा के डेल्टा में एक द्वीप है जो झींगा की खेती के लिये काफी मशहूर है.