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Blog / 27 Sep 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) लोकतंत्र में सिविल सेवा (Role of Civil Services in Democracy)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) लोकतंत्र में सिविल सेवा (Role of Civil Services in Democracy)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), टी. आर. रामाचंद्रन (वरिष्ठ पत्रकार)

सामान्यतः लोकतंत्र में शासन के 3 मूलभूत स्तम्भ होते हैं - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इसके अलावा लोकतंत्र में मीडिया को चौथे स्तम्भ के रूप में पेश किया जाता है।

भारत में कार्यपालिका का पुनः दो स्वरूप देखने को मिलता है - एक अस्थाई कार्यपालिका और दूसरी स्थाई कार्यपालिका। अस्थाई कार्यपालिका के रूप में मंत्रिपरिषद की भूमिका होती है, जो जनता के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं। वहीं स्थाई कार्यपालिका में लोक सेवकों की भूमिका होती है, जो अपनी विशेषज्ञता और गुणवत्ता के आधार पर जन सेवा करते हैं।

सिविल सेवकों की भूमिका

सरल शब्दों में कहे तो ये प्रशासनिक अधिकारी या सिविल सेवक किसी राजनैतिक व्यवस्था में रीढ़ की तरह होते हैं, जो सरकारी नीतियों और कानूनों के कार्यान्वयन, नीति-निर्माण, प्रशासनिक काम-काज और राजनेताओं के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। इसके अलावा वे अपने तमाम भूमिकाओं के ज़रिए विधायी कार्य, अर्द्ध न्यायिक कार्य, कर और वित्तीय लाभों का वितरण, रिकॉर्ड रखरखाव और जनसंपर्क स्थापित करने जैसे दूसरे महत्वपूर्ण काम भी करते हैं।

लोकतंत्र और सिविल सेवक

वैसे तो लोकतंत्र का हर स्तंभ बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और सबकी अपनी अपनी भूमिका होती है। लेकिन इन सबमें लोक सेवकों की भूमिका काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि वे जनता और सरकार के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं। सरकार की तरफ से लोक सेवक मुख्यतः तीन प्रकार के काम करते हैं:

  • सूचना प्रदाता और ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ी जानकारियाँ उपलब्ध कराना
  • तमाम मामलों पर सरकार को परामर्श देना
  • नीतियों, समस्याओं और उपायों का विश्लेषण करना

आमजन के नज़रिए से लोक सेवकों के निम्नलिखित प्रमुख काम होते हैं:

  • विधि का शासन - जीरो टॉलरेंस की रणनीति बहाल करना
  • संस्थानों को जीवंत, उत्तरदायी और जवाबदेह बनाना
  • सक्रिय नागरिकों की भागीदारी – विकेंद्रीकरण सुनिश्चित करना
  • शासन में नैतिकता और पारदर्शिता बनाये रखना
  • नागरिक सेवाओं को हर तरीके से दिन-ब-दिन बेहतर बनाना

भारत में सिविल सर्विसेज की मौजूदा स्थिति

प्रशासनिक सुधार के मद्देनज़र सरकार ने साल 2005 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था। जिसने साल 2009 में शासन के तमाम पहलुओं से जुड़ी लगभग 15 रिपोर्टें सरकार को सौंपी थी। इन रिपोर्ट्स में आयोग द्वारा 1514 सिफारिशें की गई थी, जिनमें से 1183 सिफारिशों को केंद्र सरकार ने स्वीकार भी कर लिया था। उसके बाद स्वीकृत सिफारिशों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को बाकायदा निर्देश भेजा गया था। जिसमें इन सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक संस्थागत तंत्र बनाने की बात कही गई थी।

बहरहाल इन तमाम प्रयासों के बावजूद 2nd एआरसी के स्वीकृत सिफारिशों में से कई सिफारिशों को अभी तक पूरी तरीके से लागू नहीं किया गया है। इस बीच, बदलते समय और ज़रूरतों के साथ सिविल सेवा में सुधार की दरकार बढ़ती जा रही है।

सिविल सेवाओं में सुधार अपने आप में एक सतत प्रक्रिया है और इसके लिए तमाम सरकारों द्वारा समय-समय पर कई पहल किए गए हैं। इनमें मल्टी-स्टेकहोल्डर फीडबैक (एमएसएफ) व्यवस्था लागू करना, प्रदर्शन का मिड-टर्म मूल्यांकन, निचले स्तर के पदों के लिए साक्षात्कार को ख़त्म करना और मूल्यांकन के लिए ऑनलाइन तंत्र की शुरूआत करने जैसे क़दम शामिल हैं। साथ ही हाल के दिनों में ई-ऑफिस जैसे कांसेप्ट को लाना, गुणवत्ता युक्त प्रशिक्षण और योग्यता के आधार पर तैनाती जैसे पहल भी किये गए हैं। लगभग 18 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने निचले स्तर के पदों पर भर्तियों के लिए साक्षात्कार की व्यवस्था ख़त्म कर दी गई है।

सिविल सर्विसेज से जुड़ी मौजूदा दिक्कतें

सरकार द्वारा उठाए गए तमाम कदमों के बावजूद कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह सिविल सेवा आज भी पूरी तरीके से एक हकीक़त नहीं बन पा रही है।

  • लोक सेवकों के पदों और उनके कौशल के बीच तालमेल की कमी है। दरअसल भर्ती की प्रक्रिया योग्यता विशेष के आधार पर नहीं है। जिसके चलते सही व्यक्ति सही पद तक नहीं पहुंच पाता है।
  • जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था की जटिलता बढ़ रही है, उसी हिसाब से नीति निर्माण में विशेषज्ञता की अहमियत बढ़ती जा रही है। ऐसे में, सिविल सेवाओं में विशेषज्ञों के लेटरल एंट्री की जरूरत बढ़ रही है। लेकिन लेटरल एंट्री का काफी विरोध हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में सरकारी नीतियां उतनी दक्ष साबित नहीं हो पाती हैं जितना कि उन्हें होना चाहिए। हालांकि हाल ही में, सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए जॉइंट सेक्रेटरी के स्तर पर कुछ पदों की भर्ती के लिए मंजूरी दी है।
  • सिविल सेवाओं में आवश्यक स्टाफ की संख्या का पूर्वानुमान और सटीक आंकड़ा होना चाहिए। ग़ौरतलब है कि सरकार के कई विभाग ऐसे हैं जहां पर कई महत्वपूर्ण पद लंबे समय तक खाली पड़े रहते हैं। साथ ही, तमाम विभाग ऐसे भी हैं जहां पर सिविल सेवकों को उनके कौशल के हिसाब से पर्याप्त अवसर नहीं मिल पा रहा है।
  • प्रतिभाओं को अपने साथ जोड़ना, क्षमताओं को निखारना, जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना और भागीदारी युक्त निर्णयन व्यवस्था – ये तमाम ऐसे बिंदु हैं जिन पर काफी काम करने की जरूरत है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

उभरती प्रौद्योगिकियों के बदलते स्वरूप और अर्थव्‍यवस्‍था की बढ़ती जटिलताओं के बीच लोगों की लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है। ऐसे में, आमजन की इन अपेक्षाओं को पूरा करने में लोक सेवकों की भूमिका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता।

  • ऐसे में जरूरत है कि 2nd ARC की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू किया जाए।
  • तर्कसंगतता और सेवाओं में सामंजस्य के जरिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर मौजूदा 60 से अधिक अलग सिविल सेवाओं को कम किया जाए।
  • कम उम्र के सिविल सेवकों के मन-मस्तिष्क में ईमानदारी, तटस्थता और निष्पक्षता जैसे मूल्य आसानी से बिठाए जा सकते हैं। इसलिए सिविल सेवाओं के लिए अधिकतम आयु सीमा को कम किया जाए। ताकि शासन में भ्रष्टाचार और पक्षपात जैसी समस्याओं से निपटा जा सके।
  • मोटे तौर पर, भर्ती, प्रशिक्षण, मूल्यांकन और गवर्नेंस - इन सभी स्तरों पर बारीकी से सुधार करके लोक सेवकों की भूमिका को बेहतर बनाया जा सकता है।