संदर्भ:
हाल ही में नीति आयोग ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है – "रसायन उद्योग: भारत की वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भागीदारी को शक्ति देना"। यह रिपोर्ट 2040 तक भारत को एक वैश्विक रसायन निर्माण महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए एक विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत करती है। इसमें इस क्षेत्र की अब तक अनदेखी संभावनाओं को पहचानकर उन्हें उपयोग में लाने और प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान रणनीतिक उपायों के माध्यम से करने की दिशा में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
विजन रिपोर्ट के मुख्य लक्ष्य:
2030 तक के लक्ष्य:
- वैश्विक रसायन मूल्य श्रृंखला (GVC) में भारत की 5–6% हिस्सेदारी
- 7 लाख नए कुशल रोजगारों का सृजन
- रसायन व्यापार में आयात-निर्यात संतुलन (नेट ज़ीरो ट्रेड बैलेंस)
- 35–40 अरब अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त निर्यात आय
2040 का विजन:
- भारत का रसायन उद्योग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँचे
- वैश्विक रसायन मूल्य श्रृंखलाओं में 12% तक की भागीदारी
- लाखों नए कुशल रोजगारों का सृजन
- विशेष (Specialty) और हरित रसायनों (Green Chemicals) के शीर्ष निर्यातकों में भारत की गिनती
वर्तमान में भारत की वैश्विक रसायन मूल्य श्रृंखला में 3.5% हिस्सेदारी है। वर्ष 2023 में इस क्षेत्र में 31 अरब डॉलर का व्यापार घाटा रहा। इसका लक्ष्य है कि 2040 तक यह घाटा खत्म कर रसायन उत्पादन को 1 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाया जाए।
विकास में बाधाएँ:
हालाँकि भारत का रसायन उद्योग आकार की दृष्टि से विशाल और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर भी इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता कुछ गंभीर चुनौतियों के कारण सीमित रह गई है:
· आयात पर अत्यधिक निर्भरता: भारत अभी भी फीडस्टॉक और विशेष रसायनों के लिए काफी हद तक विदेशी आपूर्तियों पर निर्भर है, जिसके चलते वर्ष 2023 में रसायन व्यापार में 31 अरब डॉलर का घाटा दर्ज किया गया।
· कमजोर बुनियादी ढांचा: पुराने औद्योगिक क्लस्टरों, उच्च लॉजिस्टिक्स लागतों और बंदरगाहों की सीमित क्षमताओं के कारण उत्पादन की लागत में अनावश्यक बढ़ोतरी होती है।
· अनुसंधान एवं विकास (R&D) में न्यून निवेश: भारत रसायन क्षेत्र में कुल निवेश का केवल 0.7% R&D पर खर्च करता है, जबकि वैश्विक औसत 2.3% है, जिससे नवाचार और प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ता है।
· नियामकीय प्रक्रियाओं में देरी: पर्यावरणीय मंजूरियों की धीमी प्रक्रिया के कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में अनावश्यक विलंब होता है।
· कुशल जनशक्ति की कमी: हरित रसायन विज्ञान, प्रक्रिया सुरक्षा और उन्नत तकनीकी क्षमताओं जैसे क्षेत्रों में लगभग 30% प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी देखी जा रही है, जो क्षेत्र के सतत विकास में बाधा बन रही है।
नीति आयोग द्वारा सुझाए गए रणनीतिक उपाय:
रसायन क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए नीति आयोग ने वित्तीय सहायता, बुनियादी ढांचा सुदृढ़ीकरण, नियामकीय सरलीकरण और कौशल विकास जैसे कई प्रमुख क्षेत्रों में व्यापक सुधारों की सिफारिश की है:
1. रासायनिक केंद्र:
o मौजूदा औद्योगिक क्लस्टरों को आधुनिक तकनीक से लैस कर उन्नत बनाना।
o नए रसायन पार्कों का निर्माण तथा एक केंद्रीय रसायन फंड और स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों की स्थापना।
2. बंदरगाह बुनियादी ढांचे का विकास:
o एक रसायन पोर्ट समिति (Chemical Port Committee) का गठन, जो बंदरगाह संबंधी मसलों का समाधान करे।
o निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 8 उच्च-क्षमता वाले क्लस्टरों का उन्नयन।
3. ऑपरेशनल सब्सिडी योजना (Opex Subsidy):
o महत्वपूर्ण रसायनों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए संचालन लागत पर सब्सिडी।
o आयात पर निर्भरता घटाकर निर्यात क्षमता को बढ़ाना।
4. अनुसंधान एवं नवाचार (R&D & Innovation):
o उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग को मजबूत करने के लिए एक समर्पित इंटरफेस का निर्माण।
o उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारी।
5. नियामकीय सुधार:
o पर्यावरणीय मंजूरियों की प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाने हेतु DPIIT ऑडिट समिति की निगरानी।
o समग्र नियामकीय प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना।
6. एफटीए (FTA) के माध्यम से व्यापारिक विकास:
o रसायन क्षेत्र के अनुकूल व्यापार समझौतों (FTAs) को सुरक्षित करना।
o निर्यातकों के लिए एफटीए से जुड़ी प्रक्रियाओं को सरल और सुलभ बनाना।
7. कौशल विकास:
o अधिक संख्या में प्रशिक्षण संस्थानों और व्यावसायिक कार्यक्रमों की स्थापना।
o उद्योग उन्मुख पाठ्यक्रमों की शुरुआत और प्रशिक्षकों के कौशल को अद्यतन करना।
निष्कर्ष:
रसायन उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने और 2040 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों, उद्योग जगत, शैक्षणिक संस्थानों तथा निवेशकों के बीच सशक्त और समन्वित प्रयास आवश्यक हैं। यदि नीति आयोग द्वारा सुझाए गए उपायों को समयबद्ध, तीव्र और रणनीतिक ढंग से लागू किया जाए, तो भारत न केवल वैश्विक रसायन मूल्य श्रृंखला में अग्रणी भूमिका निभा सकता है, बल्कि विशेष और हरित रसायनों के क्षेत्र में एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में भी स्थापित हो सकता है।