होम > Blog

Blog / 13 Dec 2025

विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs)

संदर्भ:

भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs), जिन्हें कभी निर्यात-आधारित विकास (export-led growth) के प्रमुख इंजन के रूप में देखा गया था, वर्तमान में गंभीर दबाव में हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा लोकसभा में साझा किए गए हालिया आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 से 2025 (FY21–FY25) के बीच देश के सात प्रमुख SEZs में कुल 466 इकाइयाँ बंद हो चुकी हैं। यह गिरावट वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, कोविड-19 महामारी से जुड़े व्यवधानों तथा वियतनाम और मलेशिया जैसे उभरते विनिर्माण केंद्रों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच देखी गई है।

मुख्य आँकड़े (FY21–FY25):

·        पिछले पाँच वर्षों में 466 SEZ इकाइयाँ बंद हुईं।

·        वित्त वर्ष 25 में अकेले 100 इकाइयाँ बंद हुईं,कोविड के बाद की अवधि में सर्वाधिक निकास देखने को मिले।

·        रोज़गार FY24 में 31.94 लाख से घटकर FY25 में 31.77 लाख रह गया।

·        निर्यात दोगुना होकर FY21 में ₹7.59 लाख करोड़ से बढ़कर FY25 में ₹14.63 लाख करोड़ हो गया।

·        निवेश इसी अवधि में ₹6.17 लाख करोड़ से बढ़कर ₹7.82 लाख करोड़ हो गया।

Special Economic Zones (SEZs)

भारत के SEZs के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:

    • कमजोर R&D और तकनीकी उन्नयन: SEZs में नवाचार, ऑटोमेशन और अनुसंधान एवं विकास (R&D) अवसंरचना में सीमित निवेश के कारण उच्च मूल्य-वर्धित विनिर्माण  में पिछड़ापन बना हुआ है।
    • बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा: वैश्विक स्तर पर वियतनाम जैसे देश, विदेशी निवेश को आकर्षित करने में आगे निकल रहे हैं, क्योंकि वहाँ निवेशकों के हितों की बेहतर सुरक्षा के लिए मजबूत समझौते, अधिक आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन तथा सुचारु लॉजिस्टिक्स और प्रभावी व्यापार-सुविधा तंत्र उपलब्ध है।
    • नकारात्मक धारणा और सीमित ब्रांडिंग: भारतीय आर्थिक अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण से यह भी सामने आया है कि अनेक अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्रों को प्रशासनिक रूप से अत्यधिक कठोर, नीतियों के मामले में अनिश्चित तथा लागत की दृष्टि से कम प्रतिस्पर्धी मानते हैं।
    • उत्पादकता से जुड़ी समस्याएँ: श्रम-प्रधान क्षेत्रों में, विशेष रूप से रत्न एवं आभूषण उद्योग में, हाल के वर्षों में गंभीर गिरावट देखी गई है। इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत इकाइयों की संख्या में तेज कमी आई है तथा निर्यात में इसकी हिस्सेदारी भी घटकर वित्त वर्ष 2021 में 15.7 प्रतिशत तक रह गई।

सरकारी पहल:

पिछले तीन वर्षों से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय SEZ सुधारों पर कार्य कर रहा है। प्रमुख उपायों में शामिल हैं:

·        विनिर्माण में लचीलापन बढ़ाने हेतु रिवर्स जॉब वर्क  की अनुमति।

·        अनुपालन को सरल बनाने के लिए नियामकीय सुधार।

·        देरी कम करने हेतु डिजिटाइज्ड कस्टम्स प्रक्रियाएँ।

DESH फ्रेमवर्क के अंतर्गत परिवर्तन:

Development of Enterprise and Services Hub (DESH) पहल के तहत व्यापक क्षेत्रीय और नियामकीय सुधार किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य SEZs को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी औद्योगिक हब के रूप में पुनर्गठित करना है।

हालिया संशोधन (2025):

·        सेमीकंडक्टर/इलेक्ट्रॉनिक्स SEZs के लिए भूमि-आवश्यकता 50 हेक्टेयर से घटाकर 10 हेक्टेयर कर दी गई।

·        इलेक्ट्रॉनिक्स इकाइयों को उपयुक्त शुल्क के साथ घरेलू बिक्री  की अनुमति।

·        भूमि को ऋण, विवाद या किसी भी प्रकार के कानूनी बंधन से मुक्त रखने की शर्तों में अधिक लचीलापन प्रदान किया गया है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) क्या हैं?

विशेष आर्थिक क्षेत्र ऐसे शुल्क-मुक्त क्षेत्र होते हैं, जिन्हें व्यापार, विनिर्माण और सेवाओं से संबंधित गतिविधियों के लिए भारत के सीमा शुल्क क्षेत्र से बाहर माना जाता है। इन क्षेत्रों की स्थापना का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना, विदेशी निवेश को आकर्षित करना, बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन करना तथा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी औद्योगिक क्लस्टरों का विकास करना है।

भारत में SEZs का विकास :

    • 1965: भारत ने गुजरात के कांडला में एशिया का पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (EPZ) स्थापित किया। बाद में सूरत, मुंबई, कोचीन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, फाल्टा और नोएडा में EPZ स्थापित हुए।
    • 2000: सरकार ने SEZ नीति लागू की और सभी आठ EPZs को विश्वस्तरीय अवसंरचना एवं प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहनों के साथ SEZs में परिवर्तित किया।
    • 2005: संसद ने SEZ अधिनियम, 2005 पारित किया, जो 10 फरवरी 2006 से लागू हुआ। इसके साथ SEZ नियम बनाए गए, जिससे एक व्यापक विधायी एवं प्रशासनिक ढाँचा तैयार हुआ।

निष्कर्ष:

भारत के SEZs इस समय एक निर्णायक मोड़ पर हैं। जहाँ बड़े पैमाने पर इकाइयों का बंद होना गहरी संरचनात्मक समस्याओं को दर्शाता है, वहीं निर्यात और निवेश में वृद्धि इनके अंतर्निहित सामर्थ्य को भी उजागर करती है। यदि निरंतर सुधार, व्यापार करने में आसानी , तकनीकी क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण और रणनीतिक क्षेत्रीय फोकस बनाए रखा जाए, तो SEZs भविष्य में भी रोज़गार, निवेश और निर्यात वृद्धि के सशक्त इंजन बन सकते हैं तथा भारत को एक वैश्विक विनिर्माण और आपूर्ति-श्रृंखला हब बनाने के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।