सन्दर्भ:
हाल ही में केंद्र सरकार ने लोकसभा में प्रतिभूति बाज़ार संहिता विधेयक, 2025 (Securities Markets Code Bill, 2025) प्रस्तुत किया है, जिसका उद्देश्य भारत में प्रतिभूति बाज़ार के विनियमन को एकीकृत और व्यापक रूप से पुनर्गठित करना है।
पृष्ठभूमि:
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- वर्तमान में भारत के प्रतिभूति बाज़ार विभिन्न कालखंडों में बनाए गए अनेक क़ानूनों द्वारा शासित हैं जिनमें प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956, सेबी अधिनियम, 1992, तथा डिपॉजिटरीज़ अधिनियम, 1996 प्रमुख हैं। समय के साथ इन क़ानूनों में परस्पर आच्छादित प्रावधान, अप्रासंगिक हो चुकी विनियामक अवधारणाएँ तथा प्रक्रियात्मक जटिलताएँ विकसित हो गई हैं, जिससे नियामक अस्पष्टता और अनुपालन से जुड़ी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- प्रस्तावित विधेयक इन बिखरे हुए क़ानूनों को निरस्त कर उनके स्थान पर एक एकीकृत, सिद्धांत-आधारित प्रतिभूति बाज़ार संहिता लागू करने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य विकसित होती बाज़ार प्रथाओं, तकनीकी नवाचार और वैश्विक मानकों के अनुरूप नियामक स्पष्टता, सुसंगतता और लचीलापन सुनिश्चित करना है।
- वर्तमान में भारत के प्रतिभूति बाज़ार विभिन्न कालखंडों में बनाए गए अनेक क़ानूनों द्वारा शासित हैं जिनमें प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956, सेबी अधिनियम, 1992, तथा डिपॉजिटरीज़ अधिनियम, 1996 प्रमुख हैं। समय के साथ इन क़ानूनों में परस्पर आच्छादित प्रावधान, अप्रासंगिक हो चुकी विनियामक अवधारणाएँ तथा प्रक्रियात्मक जटिलताएँ विकसित हो गई हैं, जिससे नियामक अस्पष्टता और अनुपालन से जुड़ी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।

प्रमुख विशेषताएँ:
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- एकीकरण और सरलीकरण
- यह विधेयक प्रतिभूति बाज़ार को शासित करने वाले तीन पुराने क़ानूनों को एक संयुक्त वैधानिक संहिता में समाहित करता है। इस एकीकरण से दोहराव वाले प्रावधान समाप्त होते हैं और क़ानूनी भाषा सरल बनती है, जिससे व्याख्यात्मक विवाद कम होंगे तथा बाज़ार सहभागियों पर अनुपालन का बोझ घटेगा।
- यह विधेयक प्रतिभूति बाज़ार को शासित करने वाले तीन पुराने क़ानूनों को एक संयुक्त वैधानिक संहिता में समाहित करता है। इस एकीकरण से दोहराव वाले प्रावधान समाप्त होते हैं और क़ानूनी भाषा सरल बनती है, जिससे व्याख्यात्मक विवाद कम होंगे तथा बाज़ार सहभागियों पर अनुपालन का बोझ घटेगा।
- सेबी को सुदृढ़ बनाना
- प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) संहिता के अंतर्गत मुख्य नियामक के रूप में कार्य करता रहेगा।
- सेबी बोर्ड के सदस्यों की संख्या नौ से बढ़ाकर अधिकतम पंद्रह करने का प्रस्ताव है, जिससे विविध विशेषज्ञता और निर्णय-क्षमता में वृद्धि होगी।
- हितों के टकराव से संबंधित कठोर मानदंड लागू किए गए हैं, जिनके तहत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वित्तीय हितों का प्रकटीकरण अनिवार्य होगा। यदि ऐसे हित नियामक स्वतंत्रता या न्यासीय दायित्वों को प्रभावित करते हैं, तो सरकार को बोर्ड सदस्य को हटाने का अधिकार होगा।
- प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) संहिता के अंतर्गत मुख्य नियामक के रूप में कार्य करता रहेगा।
- विनियामक ढाँचा और प्रवर्तन
- मामूली प्रक्रियात्मक और तकनीकी उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर नागरिक दायित्व के रूप में निपटाने का प्रस्ताव है, जिससे व्यापार सुगमता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- गंभीर अपराध—जैसे बाज़ार का दुरुपयोग, नियामक निर्देशों का पालन न करना तथा जाँच में बाधा डालना—पर कड़े दंड लागू रहेंगे।
- एक एकीकृत और सुव्यवस्थित निर्णय-निर्धारण व्यवस्था स्थापित की गई है, जिसमें जाँच और अंतरिम आदेशों के लिए समयबद्ध सीमाएँ निर्धारित होंगी, जिससे प्रवर्तन की पूर्वानुमेयता, एकरूपता और दक्षता बढ़ेगी।
- मामूली प्रक्रियात्मक और तकनीकी उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर नागरिक दायित्व के रूप में निपटाने का प्रस्ताव है, जिससे व्यापार सुगमता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- निवेशक संरक्षण और बाज़ार की शुचिता
- संहिता निवेशक अधिकार-पत्र, समयबद्ध शिकायत निवारण तंत्र तथा अनसुलझी शिकायतों के लिए लोकपाल की नियुक्ति को वैधानिक आधार प्रदान करती है।
- सेबी को नियामक सैंडबॉक्स स्थापित करने का अधिकार दिया गया है, जिससे प्रणालीगत स्थिरता और निवेशक हितों की सुरक्षा के साथ नवाचारी वित्तीय उत्पादों और सेवाओं का नियंत्रित परीक्षण संभव होगा।
- संहिता निवेशक अधिकार-पत्र, समयबद्ध शिकायत निवारण तंत्र तथा अनसुलझी शिकायतों के लिए लोकपाल की नियुक्ति को वैधानिक आधार प्रदान करती है।
- अंतर-नियामक समन्वय
- विधेयक वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न नियामकों के बीच बेहतर समन्वय को सक्षम बनाता है तथा उन वित्तीय उपकरणों की सूचीबद्धता और निगरानी को सुगम करता है, जो एक से अधिक नियामक अधिकार क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं।
- विधेयक वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न नियामकों के बीच बेहतर समन्वय को सक्षम बनाता है तथा उन वित्तीय उपकरणों की सूचीबद्धता और निगरानी को सुगम करता है, जो एक से अधिक नियामक अधिकार क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं।
- एकीकरण और सरलीकरण
निष्कर्ष:
प्रतिभूति बाज़ार संहिता विधेयक, 2025 भारत के पूँजी बाज़ार ढाँचे के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण विधायी पहल है। एक सुसंगत और सिद्धांत-आधारित विनियामक संरचना प्रस्तुत कर यह विधेयक निवेशकों का विश्वास सुदृढ़ करने, नियामक शासन में सुधार लाने तथा घरेलू एवं विदेशी निवेश को आकर्षित करने का लक्ष्य रखता है। अनुपालन सरलीकरण, समयबद्ध प्रवर्तन, नवाचार को समर्थन और बाज़ार की शुचिता पर इसका ज़ोर भारत के व्यापक वित्तीय क्षेत्र सुधारों के अनुरूप है, जो पूँजी बाज़ार को गहरा करने और दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बनाए रखने की दिशा में उन्मुख हैं।
