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Blog / 19 Dec 2025

सेबी द्वारा म्यूचुअल फंड नियमों में बड़ा सुधार

सन्दर्भ:

सेबी ने म्यूचुअल फंड से संबंधित नियमों में एक व्यापक सुधार को मंज़ूरी प्रदान की है। इसका उद्देश्य निवेशकों के लिए पारदर्शिता बढ़ाना, निवेश की लागत को कम करना तथा नियमों के अनुपालन की प्रक्रिया को सरल बनाना है। यह नया नियामक ढांचा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (म्यूचुअल फंड) विनियम, 2026 के नाम से लागू किया जाएगा, जो लगभग तीन दशक पुराने 1996 के विनियमों का स्थान लेगा। इसमें व्यय संरचना, निधि संचालन तथा शासकीय मानकों से संबंधित व्यापक सुधारों को शामिल किया गया है।

म्यूचुअल फंड नियमों में प्रमुख बदलाव:

1. व्यय अनुपात ढांचे में बदलाव:

सेबी ने कुल व्यय अनुपात को पुनर्परिभाषित करते हुए आधार व्यय अनुपात की शुरुआत की है। वस्तु एवं सेवा कर, प्रतिभूति लेनदेन कर, स्टांप शुल्क और अन्य वैधानिक शुल्क आधार व्यय अनुपात में शामिल नहीं होंगे, बल्कि इन्हें वास्तविक आधार पर अलग से वसूला जाएगा। इससे निवेशकों को फंड की लागत का स्पष्ट और पारदर्शी विवरण मिलेगा।

2. व्यय सीमा में कमी:

विभिन्न म्यूचुअल फंड श्रेणियों में आधार व्यय अनुपात की अधिकतम सीमा घटाई गई है। सूचकांक फंड और विनिमय कारोबार निधि के लिए व्यय सीमा 1.0 प्रतिशत से घटाकर 0.9 प्रतिशत कर दी गई है (वैधानिक शुल्क को छोड़कर)। अन्य फंड श्रेणियों में भी इसी प्रकार की कटौती से दीर्घकाल में निवेश प्रतिफल बेहतर होने की संभावना है।

SEBI Announces Major Overhaul of Mutual Fund Regulations

3. ब्रोकरेज सीमा में कटौती:

सेबी ने म्यूचुअल फंड योजनाओं में लेनदेन से जुड़े अधिकतम ब्रोकरेज शुल्क में उल्लेखनीय कटौती की है। इक्विटी नकद बाज़ार में यह सीमा 12 बेसिस प्वाइंट से घटाकर 6 बेसिस प्वाइंट तथा डेरिवेटिव लेनदेन में 5 बेसिस प्वाइंट से घटाकर 2 बेसिस प्वाइंट कर दी गई है। इस पहल का उद्देश्य लेनदेन की छिपी हुई लागतों को नियंत्रित करना, निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा म्यूचुअल फंड संचालन को अधिक निवेशक-हितैषी और पारदर्शी बनाना है।

4. “स्किन इन द गेमनियम:
एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के वरिष्ठ कर्मचारियों को अब अपने वेतन का एक हिस्सा उन्हीं म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश करना होगा जिन्हें वे प्रबंधित करते हैं। इससे फंड मैनेजर और निवेशकों के हितों में सामंजस्य बनेगा और जवाबदेही बढ़ेगी।

5. अनिवार्य स्ट्रेस टेस्टिंग:

म्यूचुअल फंड योजनाओं को विपरीत बाजार परिस्थितियों में स्ट्रेस टेस्ट करना अनिवार्य होगा। इन परीक्षणों के परिणाम सार्वजनिक रूप से घोषित किए जाएंगे, जिससे निवेशकों को जोखिम का बेहतर आकलन करने में मदद मिलेगी।

6. न्यू फंड ऑफर निवेश नियम:

न्यू फंड ऑफर (NFO) से जुटाई गई राशि को 30 कार्यदिवसों के भीतर निवेश करना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो निवेशकों को बिना एग्ज़िट लोड के बाहर निकलने का विकल्प दिया जाएगा।

निवेशकों पर प्रभाव और लाभ:

    • अधिक पारदर्शिता: प्रबंधन शुल्क और वैधानिक खर्चों को अलग-अलग प्रदर्शित करने से निवेशकों को निवेश की वास्तविक लागत की स्पष्ट और सही जानकारी मिल सकेगी।
    • संभावित रूप से कम लागत: कम व्यय अनुपात और ब्रोकरेज पर निर्धारित सीमा के कारण निवेश की अधिक राशि बाज़ार में बनी रहेगी, जिससे शुद्ध प्रतिफल (नेट रिटर्न) बेहतर होने की संभावना बढ़ेगी।
    • बेहतर गवर्नेंस: कर्मचारियों के अनिवार्य निवेश और सार्वजनिक स्ट्रेस टेस्ट जैसी व्यवस्थाएँ म्यूचुअल फंड उद्योग में जवाबदेही बढ़ाकर निवेशकों के विश्वास को सुदृढ़ करेंगी।
    •  निवेश निर्णय में आसानी: स्पष्ट स्कीम नामकरण और एक ही AMC के अंतर्गत समान रणनीतियों वाली योजनाओं की संख्या कम होने से निवेशकों के लिए उपयुक्त योजना का चयन करना अधिक सरल होगा।

निष्कर्ष:

सेबी का यह सुधार भारत के म्यूचुअल फंड ढांचे को आधुनिक, पारदर्शी और निवेशक-केंद्रित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। लागत में कमी, स्पष्ट व्यय संरचना और मज़बूत गवर्नेंस मानकों के माध्यम से ये सुधार निवेशक विश्वास बढ़ाने, रिटेल भागीदारी को प्रोत्साहित करने और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि म्यूचुअल फंड प्रणाली में निवेशकों के हित सर्वोपरि रहें।