संदर्भ:
हाल ही में दूरसंचार विभाग (DoT) ने निर्देश जारी किया है कि मार्च 2026 से भारत में बेचे जाने वाले सभी नए स्मार्टफोनों में संचार साथी ऐप को पहले से इंस्टॉल (Pre-install) करना अनिवार्य होगा। इस निर्णय ने व्यापक बहस और विवाद को जन्म दिया है। डिजिटल अधिकारों के समर्थकों का कहना है कि यह कदम नागरिकों की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरा पैदा कर सकता है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस फैसले के माध्यम से नागरिकों पर निगरानी बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
संचार साथी ऐप के बारे में:
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- संचार साथी को 2023 में एक ऐसे पोर्टल के रूप में लॉन्च किया गया था जिसके माध्यम से संदिग्ध फोन कॉल की शिकायत दर्ज की जा सके। समय के साथ इसके फीचर्स का विस्तार किया गया और अब यह उपयोगकर्ता के नाम से जुड़े सभी मोबाइल नंबरों की जानकारी उपलब्ध कराता है तथा फोन चोरी होने की स्थिति में उसके IMEI नंबर के आधार पर डिवाइस को ब्लॉक कराने की सुविधा भी देता है।
- फोन चोरी होने की रिपोर्ट दर्ज होने पर दूरसंचार कंपनियों को उस डिवाइस को अपने नेटवर्क से ब्लॉक करने का निर्देश भेजा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप फोन पूरी तरह निष्क्रिय हो जाता है।
- इस प्रकार संचार साथी “उपभोक्ता संरक्षण और कानून प्रवर्तन” दोनों के लिए एक प्रभावी साधन है, जो टेलीकॉम धोखाधड़ी, फोन चोरी तथा मोबाइल कनेक्शनों के दुरुपयोग को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- संचार साथी को 2023 में एक ऐसे पोर्टल के रूप में लॉन्च किया गया था जिसके माध्यम से संदिग्ध फोन कॉल की शिकायत दर्ज की जा सके। समय के साथ इसके फीचर्स का विस्तार किया गया और अब यह उपयोगकर्ता के नाम से जुड़े सभी मोबाइल नंबरों की जानकारी उपलब्ध कराता है तथा फोन चोरी होने की स्थिति में उसके IMEI नंबर के आधार पर डिवाइस को ब्लॉक कराने की सुविधा भी देता है।
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अनिवार्यता (मैंडेट ) के उद्देश्य:
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- सरकार का तर्क है कि स्मार्टफोनों में संचार साथी का अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन बढ़ते टेलीकॉम फ्रॉड, IMEI में छेड़छाड़, चोरी किए गए फोन की दोबारा बिक्री तथा सिम कार्ड के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए आवश्यक है।
- संचार साथी की सहायता से उपयोगकर्ता फोन की वास्तविकता (Authenticity) की पुष्टि कर सकते हैं, अवैध या संदिग्ध डिवाइसों को ब्लॉक कर सकते हैं और उपयोगकर्ता के पर गलत तरीके से जारी की गई सिम कार्डों का पता लगा सकते हैं।
- सरकार का उद्देश्य नागरिकों को टेलीकॉम सुरक्षा से संबंधित एक आसान और एकीकृत सुविधा उपलब्ध कराना, टेलीकॉम सुरक्षा ढांचे को मजबूत बनाना और मोबाइल उपयोग की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
- सरकार का तर्क है कि स्मार्टफोनों में संचार साथी का अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन बढ़ते टेलीकॉम फ्रॉड, IMEI में छेड़छाड़, चोरी किए गए फोन की दोबारा बिक्री तथा सिम कार्ड के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए आवश्यक है।
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कानूनी स्थिति और मुद्दे:
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- दूरसंचार अधिनियम, 2023 में “दूरसंचार” की परिभाषा को अत्यंत व्यापक रखा गया है। इसके अतिरिक्त, टेलीकॉम साइबर सिक्योरिटी नियम, 2024 में हुए संशोधन के बाद उन संस्थाओं को भी इस दायरे में शामिल किया गया है जो पहचान के उद्देश्य से फोन नंबरों का उपयोग करती हैं। संचार साथी के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन का यह प्रावधान इन्हीं विस्तृत कानूनी ढांचों पर आधारित है।
- हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह अनिवार्यता निजता के अधिकार (Right to Privacy) के संदर्भ में “विशेषकर न्यायमूर्ति पुत्तस्वामी के ऐतिहासिक निर्णय के आलोक में” संवैधानिक परीक्षण और कानूनी चुनौती का सामना कर सकती है।
- दूरसंचार अधिनियम, 2023 में “दूरसंचार” की परिभाषा को अत्यंत व्यापक रखा गया है। इसके अतिरिक्त, टेलीकॉम साइबर सिक्योरिटी नियम, 2024 में हुए संशोधन के बाद उन संस्थाओं को भी इस दायरे में शामिल किया गया है जो पहचान के उद्देश्य से फोन नंबरों का उपयोग करती हैं। संचार साथी के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन का यह प्रावधान इन्हीं विस्तृत कानूनी ढांचों पर आधारित है।
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चिंताएँ:
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- आलोचकों का मानना है कि ऐप का अनिवार्य रूप से इंस्टॉल किया जाना नागरिकों की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है। यह अस्पष्टता भी चिंता का विषय है कि क्या उपयोगकर्ता इस ऐप को पूरी तरह अनइंस्टॉल या निष्क्रिय कर पाने का विकल्प रखेंगे, क्योंकि सरकार के वक्तव्यों में इस संबंध में स्पष्टता नहीं है।
- डिजिटल अधिकारों से जुड़े संगठनों का तर्क है कि यह कदम अत्यधिक हस्तक्षेप की भावना उत्पन्न करता है और व्यक्तिगत डिवाइसों पर अनावश्यक नियंत्रण की आशंका बढ़ाता है। इसलिए मजबूत सुरक्षा उपायों, डेटा संरक्षण मानकों और स्पष्ट उपयोगकर्ता सहमति तंत्र की आवश्यकता अनिवार्य रूप से महसूस की जा रही है।
- आलोचकों का मानना है कि ऐप का अनिवार्य रूप से इंस्टॉल किया जाना नागरिकों की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है। यह अस्पष्टता भी चिंता का विषय है कि क्या उपयोगकर्ता इस ऐप को पूरी तरह अनइंस्टॉल या निष्क्रिय कर पाने का विकल्प रखेंगे, क्योंकि सरकार के वक्तव्यों में इस संबंध में स्पष्टता नहीं है।
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निष्कर्ष:
संचार साथी भारत के टेलीकॉम पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक सुरक्षित बनाने और मोबाइल उपयोगकर्ताओं को धोखाधड़ी तथा चोरी से संरक्षण प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। हालांकि इसकी वास्तविक और दीर्घकालिक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन कितनी संवेदनशीलता के साथ स्थापित किया जाता है। पारदर्शिता, मजबूत निजता संरक्षण उपाय और जहाँ तक संभव हो “उपयोगकर्ता की स्वैच्छिक भागीदारी” सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिए अनिवार्य हैं। तभी यह ऐप नागरिक सुरक्षा के साधन के रूप में अपनी भूमिका निभा सकेगा और अनावश्यक निगरानी के उपकरण के रूप में देखे जाने की आशंकाओं से बच सकेगा।
