संदर्भ:
भारत ने 2 दिसंबर 2025 को कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज (सीसीयूएस) प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए पहला अनुसंधान एवं विकास रोडमैप जारी किया है। यह रोडमैप विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा तैयार किया गया है।
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- इस रोडमैप का उद्देश्य समन्वित और संगठित कार्रवाई को बढ़ावा देना, सहयोग को सुदृढ़ करना तथा सीसीयूएस तकनीकों के देशव्यापी अनुप्रयोग को तेज़ी प्रदान करना है।
- यह पहल भारत के 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य को मजबूत समर्थन देती है और विकसित भारत@2047 की दीर्घकालिक राष्ट्रीय दृष्टि के अनुरूप है।
- इस रोडमैप का उद्देश्य समन्वित और संगठित कार्रवाई को बढ़ावा देना, सहयोग को सुदृढ़ करना तथा सीसीयूएस तकनीकों के देशव्यापी अनुप्रयोग को तेज़ी प्रदान करना है।
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रणनीतिक महत्व और उद्देश्य:
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- जलवायु शमन: बिजली, सीमेंट और इस्पात जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर देश के समग्र कार्बन फुटप्रिंट को उल्लेखनीय रूप से घटाना।
- तकनीकी प्रगति: वर्तमान उपलब्ध तकनीकों के व्यावसायिक उपयोग और भविष्य के अत्याधुनिक वैज्ञानिक समाधानों के विकास के बीच संतुलित प्रगति सुनिश्चित करना।
- वैश्विक नेतृत्व: जलवायु संरक्षण और कार्बन न्यूनीकरण के क्षेत्र में भारत की भूमिका को एक उत्तरदायी और सक्षम वैश्विक सहयोगी के रूप में और अधिक सुदृढ़ करना।
- सतत विकास: आर्थिक और औद्योगिक वृद्धि को पर्यावरणीय संरक्षण तथा संसाधन दक्षता के सिद्धांतों के साथ एकीकृत करना।
- जलवायु शमन: बिजली, सीमेंट और इस्पात जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर देश के समग्र कार्बन फुटप्रिंट को उल्लेखनीय रूप से घटाना।
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कार्यान्वयन ढांचा:
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- रूपांतरित अनुसंधान (Translational R&D): विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने औद्योगिक वातावरण में CCUS टेस्ट-बेड स्थापित किए हैं, ताकि तकनीकों को वास्तविक वातावरण में परखा जा सके।
- पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP): तेज़ी से तकनीक लागू करने के लिए नवोन्मेषी साझेदारियों को प्रोत्साहित किया गया है।
- राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने CCUS क्षेत्र में तीन राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं।
- सहायक ढाँचा: कुशल मानव संसाधन, मजबूत नियामक और सुरक्षा मानक, साझे अनुसंधान ढाँचे तथा आवश्यक अवसंरचना की उपलब्धता को प्राथमिकता दी गई है।
- वित्तीय सहायता एवं रणनीतिक दिशा: यह रोडमैप ₹1 लाख करोड़ की अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना से संरेखित है, जो निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी, निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करती है।
- रूपांतरित अनुसंधान (Translational R&D): विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने औद्योगिक वातावरण में CCUS टेस्ट-बेड स्थापित किए हैं, ताकि तकनीकों को वास्तविक वातावरण में परखा जा सके।
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भारत की नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्रतिबद्धता के बारे में:
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- भारत 2070 तक नेट-ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
- यह प्रतिबद्धता COP26 (ग्लासगो, 2021) में की गई पंचामृत घोषणा से जुड़ी हुई है।
- भारत 2070 तक नेट-ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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कम अवधि और लंबी अवधि के जलवायु लक्ष्य के बारे में:
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- 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता स्थापित करना।
- 2030 तक देश की कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का कम से कम 50% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से पूरा करना।
- 2030 तक CO₂ उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी लाना।
- 2030 तक कार्बन तीव्रता को 45% से नीचे लाना।
- 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता स्थापित करना।
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उपरोक्त सभी लक्ष्य मिलकर 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के राष्ट्रीय संकल्प की मजबूत आधारशिला बनाते हैं।
भारत द्वारा अपनाई गई प्रमुख रणनीतियाँ:
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- सौर, पवन और जल विद्युत जैसे स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की ओर तीव्र संक्रमण को बढ़ावा देना।
- हाइड्रोजन ऊर्जा पहलों का समर्थन, जिसमें राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentives) शामिल हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार करना।
- उभरती तकनीकों का विकास और प्रायोगिक कार्य, जैसे 2G एथेनॉल पायलट, हाइड्रोजन वैलीज़, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए कंफर्ट क्लाइमेट बॉक्स और हीटिंग एवं कूलिंग वर्चुअल रिपॉजिटरी।
- सौर, पवन और जल विद्युत जैसे स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की ओर तीव्र संक्रमण को बढ़ावा देना।
- जैव-आधारित अर्थव्यवस्था: 2025 तक $150 बिलियन के लक्ष्य की दिशा में वृद्धि करना, जिसमें एडवांस्ड बायोफ्यूल और वेस्ट-टू-एनर्जी तकनीकों को विशेष समर्थन दिया गया है।
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निष्कर्ष:
सीसीयूएस R&D रोडमैप भारत की जलवायु कार्रवाई के लिए एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक उपकरण है, जो तकनीकी विकास, वित्तीय निवेश और समन्वित सहयोग के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। यह न केवल भारत को 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने में सक्षम बनाता है, बल्कि सतत विकास को भी मजबूत करता है और वैश्विक जलवायु नेतृत्व में भारत की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाता है।

