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Blog / 11 Apr 2025

आरबीआई  ने घटाई रेपो रेट

संदर्भ:

अप्रैल 2025 को, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की घोषणा की, जिससे रेपो रेट 6% हो गई। इसके साथ ही, आरबीआई ने अपनी मौद्रिक नीति का रुख " तटस्थ"(Neutral) से बदलकर "अनुकूल" (Accommodative) कर दिया, जो भविष्य में और दरों में कटौती की संभावना को दर्शाता है।

रेपो रेट के बारे में:

  • रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक आरबीआई से ऋण लेते हैं। यह देश की समग्र ब्याज दरों को तय करने में मदद करती है।
  • रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंक अपना अतिरिक्त पैसा आरबीआई में जमा करते हैं और इस पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है।
  • वर्तमान में रेपो रेट 6% और रिवर्स रेपो रेट 3.35% है।
  • जब आरबीआई रेपो रेट को कम करता है, तो बैंकों के लिए सस्ता कर्ज लेना संभव होता है। इससे वे ऋण पर ब्याज दरें कम कर सकते हैं, जिससे व्यापारियों और आम लोगों के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाता है।
  • वहीं दूसरी ओर, जब आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है, तो ऋण महंगे हो जाते हैं। इससे उधारी में कमी आती है और महंगाई पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है।  

RBI Reduces Repo Rate

रेपो रेट घटाने के पीछे कारण:

आरबीआई का रेपो रेट घटाने का फैसला वैश्विक और घरेलू आर्थिक कारणों से प्रभावित है।

1.     वैश्विक अनिश्चितता: अमेरिका द्वारा ट्रंप प्रशासन के तहत लगाए गए पारस्परिक शुल्क (reciprocal tariffs) के कारण वैश्विक बाजारों में अस्थिरता उत्पन्न हुई है।

2.     नियंत्रित महंगाई: जनवरी-फरवरी 2025 में औसत महंगाई दर 3.9% रही, जो वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही के लिए आरबीआई के 4.8% के अनुमान से कम है। चूंकि महंगाई नियंत्रण में है, इसलिए आरबीआई को ब्याज दरें घटाकर आर्थिक विकास को समर्थन देने की अधिक छूट मिलती है।

रेपो रेट कटौती का प्रभाव-

1.    आर्थिक विकास को बढ़ावा: कम ब्याज दरों से कर्ज सस्ते होते हैं, जिससे निवेश, खर्च और रोजगार सृजन को प्रोत्साहन मिलता है।

2.    संभावित महंगाई दबाव: कम ब्याज दरें विकास में मदद करती हैं और मुद्रा की उपलब्धता बढ़ा सकती हैं, जिससे भविष्य में महंगाई बढ़ने की आशंका हो सकती है।

3.    बैंकिंग क्षेत्र में दरों में बदलाव: वाणिज्यिक बैंक अपनी ऋण दरें कम कर सकते हैं, जिससे घर, वाहन और व्यापारिक ऋण सस्ते हो जाएंगे, लेकिन जमा पर ब्याज दरें भी घट सकती हैं।

4.    भविष्य की मौद्रिक नीति: आरबीआई का अनुकूल रुख यह संकेत देता है कि यदि आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो आगे और रेपो रेट में कटौती की जा सकती है ताकि विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।

निष्कर्ष
आरबीआई की रेपो रेट में कटौती वैश्विक चुनौतियों के बीच आर्थिक विकास को समर्थन देने की उसकी रणनीति को दर्शाती है। कर्ज को सस्ता बनाकर, केंद्रीय बैंक निवेश और खर्च को प्रोत्साहित करना चाहता है। हालांकि, संतुलित मौद्रिक नीति बनाए रखने के लिए महंगाई और बाहरी आर्थिक परिस्थितियों पर भी नजर रखना जरूरी होगा।