संदर्भ:
हाल ही में क्वाक्क्वारेली साइमंड्स (Quacquarelli Symonds - QS) ने अपनी “क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स: एशिया 2026” का 17वां संस्करण जारी किया है। इस रैंकिंग में एशिया के 25 देशों की उच्च शिक्षा प्रणालियों से 1,500 से अधिक विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है। भारत अब इस सूची में दूसरा सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला देश बन गया है, जहाँ 294 विश्वविद्यालयों और संस्थानों को स्थान मिला है, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक बड़ी वृद्धि है। हालाँकि, चीन 395 संस्थानों के साथ इस रैंकिंग में शीर्ष स्थान पर बना हुआ है।
क्यूएस एशिया रैंकिंग्स 2026 में शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालय:
• आईआईटी दिल्ली: एशिया में 59वां स्थान, 78.6 का स्कोर — उच्च प्रभावशाली शोध (रिसर्च साइटेशन) के लिए प्रसिद्ध।
• आईआईएससी बेंगलुरु: एशिया में 64वां स्थान, 76.5 का स्कोर — उत्कृष्ट शोध गुणवत्ता और नवाचार के लिए सराहा गया।
• आईआईटी मद्रास: एशिया में 70वां स्थान, 75.1 का स्कोर — शैक्षणिक उत्कृष्टता और तकनीकी नेतृत्व का उदाहरण।
• आईआईटी बॉम्बे: एशिया में 71वां स्थान, 75.0 का स्कोर — मजबूत फैकल्टी-छात्र अनुपात और उच्च शिक्षण मानकों के कारण पहचान प्राप्त।
क्षेत्रीय तुलना (एशिया के शीर्ष प्रदर्शनकर्ता):
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देश |
शीर्ष विश्वविद्यालय |
रैंक |
विशेषताएँ |
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हांगकांग |
यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग |
1 |
शैक्षणिक उत्कृष्टता और वैश्विक सहयोग में अग्रणी |
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चीन |
पेकिंग यूनिवर्सिटी |
2 |
अग्रणी शोध पारिस्थितिकी तंत्र |
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सिंगापुर |
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (NUS) |
3 |
लगातार उच्च शैक्षणिक प्रतिष्ठा |
भारत के लिए महत्व:
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- सॉफ्ट पावर और ज्ञान कूटनीति: विश्वविद्यालय किसी देश की वैश्विक प्रभावशक्ति के साधन होते हैं। उच्च रैंक वाले संस्थान वैश्विक प्रतिभा, शोध साझेदारी और निवेश आकर्षित करते हैं, जिससे भारत की “विश्वगुरु” बनने की शैक्षिक दृष्टि को बल मिलता है।
- आर्थिक विकास: उच्च शिक्षा क्षेत्र भारत के जीडीपी में लगभग 4% योगदान देता है। वैश्विक पहचान बढ़ने से भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था, नवाचार प्रणाली और मानव पूंजी की प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी।
- शोध और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय अभी जीडीपी का केवल 0.7% है, जबकि चीन का 2.4% और दक्षिण कोरिया का 4.9% है। यदि सार्वजनिक और निजी R&D निवेश में वृद्धि नहीं की गई, तो भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष शोध क्षमता बनाए नहीं रख पाएगा।
- सॉफ्ट पावर और ज्ञान कूटनीति: विश्वविद्यालय किसी देश की वैश्विक प्रभावशक्ति के साधन होते हैं। उच्च रैंक वाले संस्थान वैश्विक प्रतिभा, शोध साझेदारी और निवेश आकर्षित करते हैं, जिससे भारत की “विश्वगुरु” बनने की शैक्षिक दृष्टि को बल मिलता है।
क्यूएस एशिया रैंकिंग्स 2026 में भारत से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:
कई भारतीय संस्थानों ने अपने कुल स्कोर में सुधार किया है, फिर भी उनकी रैंकिंग में गिरावट दर्ज की गई है।
• आईआईटी दिल्ली लगभग 15 स्थान कम होकर एशिया में 59वें स्थान पर आ गया, जबकि आईआईटी बॉम्बे 48वें स्थान से हटकर 71वें स्थान पर पहुँच गया।
• भारतीय विश्वविद्यालयों में “अंतरराष्ट्रीय छात्र अनुपात (International Student Ratio - ISR)” और अंतरराष्ट्रीय फैकल्टी की उपस्थिति अब भी बहुत कम है। उदाहरण के लिए, कुछ आईआईटी संस्थानों का आईएसआर स्कोर मात्र 2.5 दर्ज किया गया है।
• कई भारतीय संस्थानों के लिए संकाय-छात्र अनुपात (Faculty-Student Ratio) जैसे मानक अब भी कमजोर हैं। उदाहरणस्वरूप, आईआईटी दिल्ली ने इस मीट्रिक में 40.9 अंक प्राप्त किए, जबकि शीर्ष एशियाई विश्वविद्यालयों का स्कोर 80–90 के बीच है।
सरकारी पहलें:
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पहल |
उद्देश्य |
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 |
उच्च शिक्षा में लचीलापन, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। |
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इंस्टीट्यूशंस ऑफ एमिनेंस (IoE) |
चुनिंदा विश्वविद्यालयों को विश्व-स्तरीय संस्थान के रूप में विकसित करना। |
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नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) |
गुणवत्तापूर्ण शोध और नवाचार के लिए वित्तीय सहायता को सुदृढ़ बनाना। |
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स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम |
विदेशी छात्रों को आकर्षित करने हेतु प्रोत्साहन और छात्रवृत्ति प्रदान करना। |
निष्कर्ष:
क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2026 में भारत की बढ़ती उपस्थिति यह दर्शाती है कि देश वैश्विक शैक्षणिक पहचान की दिशा में निरंतर प्रगति कर रहा है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शैक्षणिक नेतृत्व प्राप्त करने के लिए भारत को गुणवत्तापूर्ण शोध, उत्कृष्ट फैकल्टी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देनी होगी।
