संदर्भ:
हाल ही में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश किया है, जिसमें भारत के दल-बदल विरोधी कानून (दसवीं अनुसूची) में व्यापक सुधारों का प्रस्ताव रखा गया है। यह उनका 2010 और 2021 के बाद तीसरा प्रयास है। बिल का उद्देश्य संसद सदस्यों के मतदान पर पार्टी के अत्यधिक नियंत्रण को कम करना है।
प्रस्तावित विधेयक के मुख्य प्रावधान:
· व्हिप केवल निम्नलिखित मामलों में ही लागू होगा:
o विश्वास प्रस्ताव
o अविश्वास प्रस्ताव
o स्थगन प्रस्ताव
o धन विधेयक
o ऐसे अन्य वित्तीय विषय, जो सीधे सरकार की स्थिरता को प्रभावित करते हों
· बाकी सभी विधेयकों और प्रस्तावों पर सांसद निम्न आधारों पर स्वतंत्र रूप से मतदान कर सकेंगे:
o व्यक्तिगत विवेक
o अपने निर्वाचन क्षेत्र के हित
o नीतिगत तर्क
· प्रस्तावित प्रक्रियात्मक सुधार:
o पार्टी के निर्देश (व्हिप) को स्पीकर/चेयरमैन द्वारा सार्वजनिक रूप से घोषित किया जाए।
o निर्देश का उल्लंघन करने पर सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
o सांसद को 15 दिनों के भीतर अपील करने का अधिकार होगा।
o अध्यक्ष/सभापति को अपील का निपटारा 60 दिनों के भीतर करना होगा।
दल-बदल विरोधी कानून (दसवीं अनुसूची) के बारे में:
यह 52वां संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से लागू किया गया।
उद्देश्य:
o लगातार पार्टी बदलने की प्रवृत्ति को रोकना।
o सरकार की स्थिरता बनाए रखना।
o पार्टी अनुशासन को मजबूत करना और राजनीतिक भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना।
· लागू: लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों (MLC) के सदस्य।
अयोग्यता के आधार:
• स्वेच्छा से त्यागपत्र: पार्टी की सदस्यता को स्वेच्छा से छोड़ देना।
• पार्टी व्हिप का उल्लंघन: बिना अनुमति पार्टी निर्देश के विपरीत वोट करना या मतदान से अनुपस्थित रहना।
• निर्दलीय सदस्य: चुनाव जीतने के बाद किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होना।
• नामित सदस्य: सदन की सदस्यता ग्रहण करने के छह महीने बाद किसी पार्टी में शामिल होना।
अपवाद:
• विलय (Merger): 91वें संविधान संशोधन, 2003 के अनुसार यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य किसी दूसरी पार्टी में विलय का निर्णय लेते हैं और उसका समर्थन करते हैं, तो यह अयोग्यता के दायरे में नहीं आता।
• अविश्वास प्रस्ताव: ऐसे मामलों में पार्टी अपने सदस्यों को व्हिप से छूट दे सकती है।
निर्णय का अधिकार और न्यायिक समीक्षा:
• अधिकार: अयोग्यता से संबंधित अंतिम निर्णय लेने का अधिकार स्पीकर/चेयरमैन के पास होता है।
• न्यायिक समीक्षा: स्पीकर/चेयरमैन के निर्णय न्यायालयों में चुनौती योग्य हैं (सुप्रीम कोर्ट: किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू, 1992 मामला)।
वर्तमान दल-बदल कानून की आलोचनाएँ:
• व्हिप का अत्यधिक प्रयोग संसद की चर्चा-योग्यता और विचार-विमर्श की क्षमता को कम करता है।
• वित्तीय जवाबदेही के मामलों में सांसदों की स्वतंत्र निगरानी-भूमिका कमजोर पड़ जाती है।
निजी सदस्य विधेयक (PMBs):
· परिभाषा:
o मंत्री को छोड़कर चुना हुआ या नामित कोई भी सांसद निजी सदस्य कहलाता है।
o ऐसे सांसद द्वारा प्रस्तुत किया गया विधेयक निजी सदस्य विधेयक कहलाता है।
o विधेयक का मसौदा तैयार करने की ज़िम्मेदारी उसी सांसद की होती है।
· प्रक्रिया:
o नोटिस: विधेयक पेश करने के लिए एक माह पूर्व नोटिस देना अनिवार्य है।
o समय आवंटन:
§ लोकसभा: हर शुक्रवार के अंतिम 2.5 घंटे।
§ राज्यसभा: हर दूसरे शुक्रवार दोपहर 2:30 से 5:00 बजे तक।
o पहला पारित निजी सदस्य विधेयक: सैयद मोहम्मद अहमद काज़मी द्वारा मुस्लिम वक्फ़ विधेयक, 1952।
निष्कर्ष:
संसद सदस्य द्वारा प्रस्तुत यह विधेयक भारत की दल-आधारित मतदान व्यवस्था और सांसदों की स्वतंत्रता के बीच मौजूद असंतुलन को रेखांकित करता है। दल-बदल कानून का उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना था, लेकिन समय के साथ इसने कई मामलों में सांसदों की स्वायत्त भूमिका को सीमित कर दिया है। यदि सरकार की स्थिरता से जुड़े अहम प्रस्तावों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में सांसदों को स्वतंत्र रूप से वोट करने की अनुमति दी जाए, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक मजबूत होगी और सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र व जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बन सकेंगे।

